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UPSC Lateral Entry
UPSC Lateral Entry: केंद्रीय सरकार में कार्मिक मंत्री जितेंद्र सिंह ने यूपीएससी के अध्यक्ष को चिट्ठी लिकी है। मंत्री ने यूपीएससी की तरफ से सीधी भर्ती (लेटरल एंट्री) से जुड़े विज्ञापन को रद्द करने के लिए कहा गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्देश पर सीधी भर्ती के विज्ञापन पर रोक लगाई गई है। वहीं, DOPT ने यूपीएसी चेयरमैन को चिट्ठी भेजी है।
प्रधानमंत्री ने दिए निर्देश
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्देश पर सीधी भर्ती के विज्ञापन पर रोक लगाई गई है। इससे पहले यूपीएससी ने 17 अगस्त को एक विज्ञापन जारी किया था, जिसमें लेटरल एंट्री के माध्यम से 45 जॉइंट सेक्रेटरी, डिप्टी सेक्रेटरी और डायरेक्टर लेवल पर भर्तियां निकाली गई थीं। वहीं, लेटरल भर्ती में उम्मीदवार बिना यूपीएससी की परीक्षा दिए रिक्रूट किए जाते हैं।
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इसमें आरक्षण के नियमों का भी फायदा नहीं मिलता है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इसका विरोध करते हुआ यह कहा था कि महत्वपूर्ण पदों पर लेटरल एंट्री के माध्यम से भर्ती कर खुलेआम SC, ST और OBC वर्ग का आरक्षण छीना जा रहा है।
केंद्रीय मंत्री ने संभाला था मोर्चा
वहीं, इस पर विवाद बढ़ने के बाद केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने मोर्चा संभालाते हुए कहा था कि नौकरशाही में लेटरल एंट्री को नई बात नहीं है, इससे पहले 1970 के दशक से कांग्रेस की अगुवाई वाली सरकारों के दौरान लेटरल एंट्री होती रही है और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और मोंकेट सिंह अहलूवालिया भी ऐसी पहलों के प्रमुख उदाहरण हैं।
केंद्रीय मंत्री ने चिट्ठी में ये तर्क रखे
- 1. यूपीएससी अध्यक्ष को लिखे पत्र में केंद्रीय मंत्री ने पहला तर्क दिया कि 2005 में वीरप्पा मोईली की अध्यक्षता में बने दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग ने लेटरल एंट्री का सैद्धांतिक अनुमोदन किया था। 2013 में छठे वेतन आयोग की सिफारिशें भी इसी दिशा में की गई थीं। हालांकि, इससे पहले और इसके बाद लेटरल एंट्र्री के कई हाई प्रोफाइल मामले सामने आ रहे हैं।
- 2. पूर्ववर्ती सरकारों में विभिन्न मंत्रालयों के सचिवों, UIDAI के नेतृत्व जैसे अहम पदों पर आरक्षण की नियुक्ति के बिना लेटरली एंट्री वालों को मौके दिए जाते रहे हैं।
- 3. यह भी सर्वविदित है कि बदनाम हुए नेशनल सलाहकार परिषद के सदस्य सुपर ब्योरोक्रेसी चलाया करते थे, जो प्रधानमंत्री कार्यालय को नियंत्रित किया करती थी।
- 4. प्रधानमंत्री का यह पुरजोर तरीके से मानना है कि विशेषकर आरक्षण के प्रावधानों के परिप्रेक्ष्य में संविधान में उल्लेखित समानता और समाजिक न्याय के सिद्धांतों के लिए अनुरूप लेटरली एंट्री की प्रक्रिया को सुसंगत बनाया जाए।
क्या है पूरा मामला
बता दें कि यूपीएससी ने हाल ही में लेटरल एंट्री के माध्यम से केंद्रीय मंत्रालयों और विभागों में 45 पदों पर संयुक्त सचिवों, निदेशकों और उपसचिवों की भर्ती के लिए विज्ञापन जारी किया था, लेकिन विज्ञापन जारी करने के बाद कांग्रेस समेत पूरे विपक्षी दलों ने इसका विरोध किया। विपक्ष का आरोप था कि यह ओबीसी, एससी और एसटी के आरक्षण को दरकिनार करता है।
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