भोपाल। शायद यह पहला मौका है जब एमपी की सियासत में जातियों का बोलबाला देखने को मिल रहा है। बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही जातिगत समीकरण पर काम करते दिख रहे है। फिर चाहे वह चुनावी घोषनाएं हो या नेताओं के चुनावी दौरे जातियों पर ही फोकस नजर आता है।
एमपी में जाति की राजनीति
हाल में ही कुछ घटनाओं ने जातिगत राजनीति को और हवा दी है। आदिवासियों के अस्मिता के मुद्दे को लेकर बीजेपी पिछले एक साल से काम कर रही है। तो वहीं कांग्रेस सीधी और छतरपुर कांड जैसी घटनाओं ने कांग्रेस को सरकार को घेरने का मौका दिया है।
और इस बार खुद राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने मोर्चा खोला और ट्वीट कर बीजेपी आदिवासी विरोधी करार दे डाला। हालांकि बीजेपी ने भी पलटवार करने में देर नहीं की इधर कांग्रेस ने रणनीति के साथ जातियों को साधने की सियासत में जुटी हुई है।
पीएम करेंगे बुदेंलखण्ड में सभा
कमलनाथ क्या आदिवासी क्या दलित और क्या सर्वण सभी को साधने की कोशिश में जुटे है। तो इधर पीएम मोदी ने विंध्य से चुनाव अभियान की शुरुआत की अब वो बुदेंलखण्ड के सागर में सभा करने जा रहे है। इन दौरों को भी बीजेपी की जातियों को साधने की रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है। कांग्रेस भी ऐसा ही मानती है और इस पर मुखर भी है।
राज्य की 70 सीटों पर जाति असरदार
सभी गणनों पर नजर डाले तो सूबे की 70 सीटों पर जाति और धर्म का प्रभाव दिखाई देता है। विंध्य की कई सीटों पर जाति आधारित ही चुनाव होता है। यहां पर 14 फीसदी ब्राम्हण में असर डालते हैं। सूबे में जनजाति 23 फीसदी है। मालवा-निमाड़ और महाकौशल रीजन की लगभग 37 पर इनका प्रभाव रहता है।
ग्वालियर-चंबल में एससी वोट काफी अहम
इधर ग्वालियर-चंबल में एससी वोट काफी अहम होता है। नबम्बर में चुनाव होना है। और जब तक अगर कोई चुनावी मुद्दा हावी नहीं होता है जातिगत समीकरण खाते मायने रखेंगे। ये दोनों पार्टियां समझ रही है। और दोनों की रणनीति में है। इसका असर भी देखा जा सकता है।
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