नई दिल्ली। 1 जून को बुध की Budhaditya Yoga :मार्गी चाल शुरू हो रही है। ये अभी वृष राशि vrash me budh में सीधी चाल चलना शुरू कर देंगे। लेकिन इसके बाद जैसे ही ये मार्गी चाल में sury-budh ka milan चलते हुए 30 जून grah gochar june 2022 को अपना राशि परिवर्तन करके मिथुन में प्रवेश करेंगे। तो पहले सूर्य के साथ मिथुन राशि में बुधादित्य योग बना लेंगे। आपको बता दें पंडित रामगोविंद शास्त्री के अनुसार जब भी सूर्य और बुध एक राशि में आते हैं तो वह योग बुधादित्य योग गहलाता है।
क्या है सूर्य की प्रकृति —
सूर्य आत्मा का कारक ग्रह है। ज्योतिष शास्त्र में इस ग्रह को प्रधान ग्रह माना गया है। पूरी संसार में सूर्य का प्रभाव ही स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। मानव शरीर में आत्मा सूर्य से ही प्राप्त होती है। हृदय का स्पंदन, श्वास, प्रश्वास, उदरस्थ अग्नि इसी के परिणाम हैं।
जन्मांक चक्र में प्राय: 70 प्रतिशत संभावना सूर्य, बुध के एक साथ बने रहने की ही होती है। ज्योतिषाचार्यों की मानें तो बुधादित्य योग का फल अतिविशिष्ट माना जाता है।
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लग्न में बुधादित्य योग —
- बुधादित्य योग यदि लग्न में हो तो बालक का कद माता-पिता के बीच का होता है।
- यदि वृष, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, कुंभ, राशि लग्न में हो तो लंबा कद होता है।
- जातक का स्वभाव कठोर तथा वात-पित्त-कफ से पीड़ित होता है।
- बाल्यावस्था में कान, नाक, आंख, गला, दांत आदि में कष्ट सहन करना पड़ता है।
- स्वभाव से वीर, क्षमाशील, कुशाग्र बुद्धि, उदार, साहसी एवं आत्मसम्मानी होता है।
- स्त्री जातक में प्राय: चिड़चिड़ापन तथा बालों में भूरापन भी देखा जाता है।
दूसरे भाव में बुधादित्य योग —
यदि जातक की कुंडली में दूसरे भाव में बुधादित्य योग होता है तो व्यक्ति तार्किक अभिव्यक्ति वाला होता है। लेकिन साथ ही व्यवहार में शून्यता-सी झलकती है। कई अभियंताओं, घूसखोरों एवं ऋण लेकर तथा दूसरों के धन से व्यवसाय करने वाले या दूसरों की पुस्तकें लेकर अध्ययन करने वाले लोगों के लिए स्थिति प्राय: बनी हुई होती है।
दूसरे स्थान पर बुधादित्य योग —
यदि कुंडली के दूसरे स्थान पर बुधादित्य योग हो तो जातक स्वयं परिश्रमी होता है। लेकिन भाई-बहनों से आत्मीय स्नेह नहीं पा सकता। मां की बहन यानि मौसी को कष्ट रहता है। ऐसे लोग भाग्योदय के अनेक अवसर खो देते हैं। पात्रता के अनुरूप नौकरीपेशा तथा व्यवसाय अवश्य प्रदान करवाता है, लेकिन पारिवारिक खुशहाली में बाधक होता है।
तृतीय स्थान के बुधादित्य योग —
तृतीय स्थान के बुधादित्य योग को अधिकतर विद्वान एवं ग्रंथ श्रेष्ठ मानते हैं। लेकिन 70 प्रतिशत जन्मांग चक्रों के अनुसार यह योग आज के युग में श्रेष्ठ नहीं है।
चतुर्थ भाव में बुधादित्य योग —
चतुर्थ भाव में बुधादित्य योग मनुष्य को आशातीत सफलता प्रदान करने वाला होता है। संस्था प्रधान, तार्किक मति, कुलपति, प्रोफेसर, इंजीनियर, सफल राजनेता, न्यायाधीश या उच्च कोटि का अपराधी भी बना देता है। माता का स्वास्थ्य चिंताजनक तथा पत्नी के भाग्य का भी सहारा मिलता है। अपनी स्थायी संपत्ति होते हुए भी दूसरों या सरकारी वाहनों, भवनों का उपयोग करने वाला तथा विषमलिंगी मित्रों का सहयोग एवं प्रेम करने वाला होता है।
पंचम भाव में बुधादित्य योग —
पंचम भाव में यह योग अल्प संतान लेकिन प्रतिभा संपन्न संतान प्रदान करवाता है। चित्त में उद्विग्नता वात रोग एवं यकृत विकार की प्रबल संभावना बन जाती है। घर में भाभी या बड़ी बहन से वैचारिक मतभेद होते हैं। मेष, सिंह, वृश्चिक, धनु, मीन राशि में यह योग अल्प संतान प्रदाता होता है। स्त्री ग्रहों से दृष्ट होने पर कन्या संतान की अधिकता संभव होती है।
छठे भाव में बुधादित्य योग —
छठे भाव में सूर्य बुध के साथ हो तो शत्रुओं की मिथ्या विरोधी क्रियाओं से चिंतायुक्त होते हुए भी आत्मविश्वास बना रहता है। मामा पक्ष से बचपन में लाभ मिलता है, लेकिन आवश्यकता पड़ने पर सहयोग नहीं मिल पाता है।
सप्तम भाव में बुधादित्य योग —
सप्तम भाव में सूर्य बुध के साथ हो तो शत्रुओं की मिथ्या विरोधी क्रियाओं से चिंतायुक्त होते हुए भी आत्मविश्वास बना रहता है। मामा पक्ष से बचपन में लाभ मिलता है लेकिन आवश्यकता पड़ने पर सहयोग नहीं मिल पाता है। सप्तम भाव में बुधादित्य योग यौग रोगों को उत्पन्न करने वाला तथा अत्यंत कामी भाव को समय एवं परिस्थिति को ध्यान में रखकर उत्पन्न करने वाला होता है। ऐसे लोग अपने जीवनसाथी की उपेक्षा कर दूसरों की ओर विशेष आकृष्ट होने वाले होते हैं लेकिन कभी भी अंतरंग संबंधों में नहीं बंध पाते हैं। सप्तम के बुधादित्य योग वाले प्राय: चिकित्सक, अभिनेता निजी सहायक, रत्न व्यवसायी, समाजसेवा एवं स्वयंसेवी संस्थाओं से संबद्ध होते हैं। सिंह या मेष राशि सप्तम में हो तो एकनिष्ठ होते हैं। शुभ ग्रहों की दृष्टि एवं सान्निध्य इन योगों में बड़ा भारी परिवर्तन भी कर देता है।
अष्टम भाव में बुधादित्य योग —
अष्टम भाव में यदि बुधादित्य योग हो तो जातक किसी को सहयोग करने के चक्कर में स्वयं उलझ जाता है। दुर्घटना में पैर, हाथ, गाल, नाखून एवं दांत पर चोट का भय बना रहता है। विदेशी मुद्रा से व्यापार, किडनी स्टोन, आमाशय में जलन तथा आंतों में विकार भी इस योग का परिणाम बन जाता है।
नवम स्थान में बुधादित्य योग —
नवम स्थान पर यह योग स्वाभिमानी के साथ-साथ अहंकारी बना देता है तथा प्रारंभ में कई सुअवसरों का परित्याग बड़े भारी पश्चाताप का कारण बनता है। पैतृक संपत्ति का परित्याग कर स्वोपार्जित संपत्ति अर्जित कराता है।
दशम भाव में बुधादित्य योग —
दशम भाव में बुधादित्य योग बुद्धिमान, धन कमाने में चतुर, साहसी एवं संगीत प्रेमी बनाता है। पुत्र-पौत्रादि सुख से संपन्न लेकिन एक संतान से चिंतित भी बनाता है। धार्मिक स्थानों का निर्माण लंबी ख्याति प्रदान कराता है।
ग्यारहवें भाव में बुधादित्य योग —
ग्यारहवें भाव में यदि सूर्य बुध के साथ हो तो यशस्वी, ज्ञानी, संगीत विद्या प्रिय, रूपवान एवं धनधान्य से संपन्न करवाता है। लोकसेवा के लिए सरकार एवं अनेक प्रतिष्ठानों से धन की प्राप्ति होती है।
द्वादश भाव में बुधादित्य योग —
द्वादश भाव में बुधादित्य योग चाचा-ताऊ से विरोध करवाता है तथा अपनी संपत्ति उनके चंगुल में फंस जाती है। जुआ, सट्टा, शेयर या अन्य आकस्मिक धन-लाभ के व्यवसायों में फंसकर अपना सर्वस्व लुटा जाता है। बुधादित्य योग को राशि एवं अन्य ग्रहों के संबंध भी प्रभावित करते हैं लेकिन अलग-अलग भावों में एकाकी हो तो ऐसा ही फल प्रदान करता है।
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