हाइलाइट्स
-
सरकार की मंशा स्वदेशी खाद को बढ़ावा देने की है।
-
अब नैनो डीएपी के उपयोग को प्रोत्साहित किया जाएगा।
-
मार्केट में नैनो यूरिया पहले से ही मौजूद है।
Nano Urea in Budget: बजट में कृषि क्षेत्र पर कोई बहुत महत्वपूर्ण घोषणा नहीं की गई है। वैसे भी जानकारों की मानें तो अंतरिम बजट में नीतिगत घोषणा की उम्मीद भी नहीं थी।
बजट में नैनो यूरिया (Nano Urea in Budget) की तरह नैनो डीएपी पर जोर देने की बात कही गई है। सरकार की मंशा स्वदेशी खाद की ओर जाने की है। आइये हम आपको इसकी हकीकत बताते हैं।
प्रचार-प्रसार नहीं होने से गोडाउन में ही रखा रहता है नैनो यूरिया
फसलों में खाद के समय किसानों की लंबी कतारें मानों अब आम बात हो गई है। खाद संकट से उभरने के लिये मार्केट में नैनो यूरिया (Nano Urea in Budget) तो लाया गया, लेकिन इसका कभी प्रचार प्रसार नहीं हुआ।
नतीजा ये रहा कि यह गोडाउन से निकलकर खेत तक पहुंच ही नहीं पाता है। इफको के डीलर मानसिंह राजपूत के अनुसार किसानों के बीच नैनो यूरिया की ज्यादा डिमांड नहीं है क्योंकि न तो इसका सही तरीके से प्रचार किया गया और न ही किसानों के बीच जागरूकता फैलाई गई। यदि यह सब किया जाता तो यूरिया की किल्लत से बने हालात से बचा जा सकता था।
दुकानदार वापस कर रहे नैनो यूरिया
राजधानी भोपाल की सीमा से सटे गांव सूखी सेवनिया के किसान राधेकिशन सैनी, रामचरण अहिरवार और बलवीर मीणा के अनुसार स्थानीय कृषि सेवा केंद्र से लेकर कृषि विभाग तक के किसी भी कर्मचारी, अधिकारी ने उन्हें नैनो यूरिया (Nano Urea in Budget) के उपयोग के बारे में कुछ नहीं बताया। यदि हमें बताया जाता तो यूरिया के लिए मारे-मारे फिरने के बजाय हम नैनो यूरिया का इस्तेमाल करके जरूर देखते।
सूखी सेवनिया थाने के पास कृषि सेवा केंद्र का संचालन करने वाले एक दुकानदार ने बताया कि उन्होंने एक पेटी नैनो यूरिया बुलाया था पर एक भी किसान नहीं लिया। इसलिए उन्होंने पूरा नैनो यूरिया डीलर (Nano urea dealer) को वापस करना पड़ा।
नैनो यूरिया अपनाने के हैं ये फायदे
– नैनो यूरिया की एक बॉटल आधे लीटर की होती है, जो एक बोरी यूरिया के बराबर का असर करती है। फसलों के बेहतर उत्पादन के लिहाज से दोनों में ही नाइट्रोजन की पर्याप्त मात्रा होती है।
– 2000 रूपए की सब्सिडी के आधार पर यूरिया की बोरी किसान को 268 रूपए में मिलती है। जबकि नैनो यूरिया की एक बॉटल बिना सब्सिडी के करीब 240 रूपए में मिल जाती है।
– एमपी में ही हर साल रबी सीजन (Rabi crop season) में 4.50 करोड़ बोरी यूरिया की खपत होती है। यदि इसकी जगह नैनो यूरिया का उपयोग किया जाए तो सिर्फ 2.25 करोड़ लीटर नेनो यूरिया की खपत होती।
– यदि नैनो यूरिया के उपयोग को प्रोत्साहित किया जाए तो एमपी के सरकारी खजाने में रबी सीजन में यूरिया की सब्सिडी पर 8 हजार 888 करोड़ रूपए बच जाएं। किसानों को भी खाद के ऊपर होने वाले खर्च में करीब 26 प्रतिशत की बचत होती।
संबंधित खबर: Budget 2024: बजट में महिलाओं के लिए बड़ी घोषणा,3 करोड़ लखपति दीदी बनाने का लक्ष्य, ‘नारी शक्ति’ की अहमियत पर ज़ोर’,
किसानों में नैनो यूरिया से कम पैदावार का डर
भोपाल में मिसरोद गांव के किसान घनश्याम पाटीदार के अनुसार अपने 5 एकड़ के खेत में नैनो यूरिया (Nano Urea in Budget) का इस्तेमाल किया और कहीं कोई शिकायत नहीं आई।
पाटीदार के अनुसार ज्यादातर किसानों को इस बात का डर है कि यूरिया के बजाय नैनो यूरिया के उपयोग से उनकी पैदावार कम हो सकती है।
यही सबसे बड़ी वजह है जिसके कारण किसानों ने नेनो यूरिया से दूरी बनाई हुई है। यदि इसका समय पर पर्याप्त प्रचार किया और जागरूकता फैलाई जाती तो किसान जरूर इसका उपयोग करते।