भोपाल। आपको पता होगा कि भारत की आजादी के करीब दो साल बाद भी भोपाल आजाद नहीं पाया था। यहां देश की आजादी के बाद भी रियासत काम कर रही थी। जिसके नवाब हमीदुल्ला खां (Hamidullah Khan) भारत की जगह पाकिस्तान में मिलना चाहते थे। हालांकि यह भौगोलिक रूप से संभव नहीं था। लेकिन इस दौरान जो भी भारत के लिए आवाज उठाता था उसे सजाएं दी जाती थीं। भारतीय तिरंगा लहराना यहां अपराध माना जाता था।
आजाद भारत में भी भोपाल में तिरंगा लहराना था पाप
नवाब के इस फैसले से जनता में भारी आक्रोश था। वे नवाब के गुलामी से बाहर निकलकर भारत में शामिल होना चाहते थे। यही कारण है कि 14 जनवरी 1994 को मकर संक्रांति (Makar Sankranti) के दिन रायसेन जिले में स्थित बोरास गांव के लोगों ने मेले में तिरंगा लहराने का फैसला किया। लेकिन इस बात की भनक नवाब हमीदुल्ला खां को लग गई और उन्होंने उस दौरान के सबसे क्रूर थानेदार जाफर खान को वहां भेज दिया। उसने वहां पहुंचते ही लोगों को चेतावनी देनी शुरू कर दी। कहने लगा, कोई नारा नहीं लगाएगा, कोई झण्डा नहीं फहराएगा। नहीं तो सभी को गोलियों से भून दिया जाएगा।
गोली खाने के बाद भी तिरंगे को झुंकने नहीं दिया था
थानेदार की बाद सुनकर मेले में पहुंचे लोग गुस्से में आ गए। सबसे पहले 16 साल का एक किशोर छोटेलाल तिरंगा लेकर सामने आया। उसने भारत माता की जय का नारा लगाया। यह सुनते ही क्रुर थानेदार जाफर खान ने छोटेलाल पर गोली चला दी। किशोर नीचे गिर गया लेकिन उसने तिरंगे को नहीं गिरने दिया। जैसे ही तिरंगा नीचे गिरता उससे पहले ही 30 वर्षीय युवा मंगल सिंह ने उसे थाम लिया। थानेदार ने उस पर भी गोली चला दी। वो जैसे ही शहीद हुए एक और 25 वर्षीय युवा विशाल सिंह ने आगे बढ़कर ध्वज को थाम लिया और भारत माता की जय के नारे लगाने लगे। क्रुर थानेदार की गोलियों ने इस युवक के भी सिने को भेद दिया। हालांकि विशाल ने तिरंगे को गिरने नहीं दिया। उसने ध्वज को छाती से लगाकर थानेदार की बंदूक पकड़ ली। मेले में आए कई लोग इस गोली काण्ड में गंभीर रूप से घायल भी हुए थे।
इस कांड के बाद ही भोपाल को मिली आजादी
इस गोली काण्ड की खबर जैसे ही उस वक्त के गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल को लगी। उन्होंने अपने प्रशासनिक अधिकारी वीपी मेनन को भोपाल भेज दिया। मेनन ने भोपाल आते ही नवाब को सख्त लहजे में कहा, आपको भारत में तो मिलना ही पड़ेगा। नहीं तो सेनाएं यहां कूच करेगी। शुरूआत में नवाब ने मिलने से मना कर दिया लेकिन सरदार वल्लभ भाई पटेल का उस वक्त इतना दवाब था कि आखिरकार 01 जून 1949 को भोपाल रियासत भारत गणराज्य में शामिल हो गया।
उनकी याद में बनाया गया है शहीद स्मारक
साल 1984 में 14 जनवरी के दिन ही इन शहीदों की स्मृति में रायसेन के ग्राम बोरास में नर्मदा के तट पर शहीद स्मारक को स्थापित किया गया और आज भी यहां मकर संक्रांति के दिन विशाल मेले का आयोजन किया जाता है।