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Bombay HC Wife Adultery Suspicion:पत्नी के चरित्र पर शक, तो ये मतलब नहीं कि बेटे का DNA टेस्ट कराया जाए- बॉम्बे हाईकोर्ट

Bombay HC Wife Adultery Suspicion Case: बॉम्बे हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के एक फैसले को रद्द करते हुए एक बड़ा फैसला सुनाया है। अदालत ने कहा है कि पत्नी के चरित्र पर शक हो तो इसका मतलब यह नहीं कि बच्चे का डीएनए टेस्ट कराया जाए।

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Vishalakshi Panthi
Bombay HC Wife Adultery Suspicion Case

Bombay HC Wife Adultery Suspicion Case: बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने कहा है कि अगर किसी पति को अपनी पत्नी के चरित्र पर शक हो, तो इसका यह मतलब नहीं कि उनके नाबालिग बेटे का डीएनए टेस्ट करवाया जाए। कोर्ट ने इस बात को साफ किया कि ऐसा टेस्ट सिर्फ खास और गंभीर मामलों में ही करवाया जा सकता है।

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यह बात हाईकोर्ट ने उस फैसले को रद्द करते हुए कही जो एक फैमिली कोर्ट ने दिया था। फैमिली कोर्ट ने फरवरी 2020 में 12 साल के एक लड़के का डीएनए प्रोफाइलिंग टेस्ट कराने का आदेश दिया था, ताकि उसके पितृत्व को लेकर फैसला लिया जा सके।

न्यायमूर्ति आरएम जोशी ने सुनाया फैसला

न्यायमूर्ति आरएम जोशी ने 1 जुलाई को दिए अपने फैसले में कहा कि सिर्फ इसलिए कि पति अपनी पत्नी पर व्यभिचार (अवैध संबंध) का आरोप लगाकर तलाक चाहता है, यह डीएनए जांच का उचित कारण नहीं बनता।

कोर्ट ने कहा कि अगर किसी महिला के चरित्र पर शक है तो उसे साबित करने के और भी तरीके हो सकते हैं। बच्चे को इस तरह की जांच में शामिल करना ठीक नहीं है, खासकर जब वह खुद यह तय करने की स्थिति में नहीं है कि वह टेस्ट के लिए तैयार है या नहीं।

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कोर्ट ने कहा कि जब माता-पिता के बीच विवाद होता है, तो कई बार बच्चा भी उस लड़ाई का हिस्सा बन जाता है। ऐसे में अदालत की जिम्मेदारी होती है कि वह बच्चे के अधिकारों की रक्षा करे। अदालत को केवल पति-पत्नी के बीच के झगड़े का फैसला नहीं करना होता, बल्कि बच्चे के हितों को भी ध्यान में रखना होता है।

पति ने दावा किया पत्नी का चाल-चलन ठीक नहीं

इस मामले में पति ने दावा किया था कि उसकी पत्नी का चाल-चलन ठीक नहीं है और वह तलाक चाहता है। शादी 2011 में हुई थी और दोनों जनवरी 2013 में अलग हो गए, जब पत्नी तीन महीने की गर्भवती थी। पति ने डीएनए टेस्ट की मांग की थी, ताकि यह साबित किया जा सके कि वह बच्चे का पिता नहीं है। लेकिन कोर्ट ने पाया कि पति ने कभी यह साफ तौर पर नहीं कहा कि वह बच्चा उसका नहीं है, इसलिए सिर्फ शक के आधार पर बच्चे को डीएनए टेस्ट के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।

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