नई दिल्ली। आज तक आपने काले चने के बारे Black Genhu में तो बहुत सुना होगा। पर क्या आपने कभी काले गेंहू को देखा है। काले गेहूं दिखने में थोड़े काले व बैंगनी होते हैं। टेस्ट भी इनका नार्मल गेहूं से काफी अलग व गुणकारी होता है। इसमें एंथ्रोसाइनीन पिंगमेंट की मात्रा अधिक होने के कारण इसका रंग काला व बैंगनी हो जाता है। आज हम आपको बताते हैं। इसकी खासियत। क्या हैं इसके फायदें।
कहां हो रहा है यह गेंहू
सूरजगढ में क्षेत्रीय किसान अब सामान्य गेहूं के साथ काले गेहूं Black Genhu की खेती भी करने लगे हैं। इस वर्ष घरडू गांव के दो किसानों द्वारा अपने खेतों में काले गेहूं की फसल बोई गई फसल अब बड़ी होने लगी है। घरडू गांव के धर्मवीर व लीलाधर भडिय़ा ने इस वर्ष नेशनल एग्री फूड बायो टेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट मोहाली से काले गेहूं के बीज खरीद कर करीब दस बीघा खेत में बोये हैं।
इतना ही नहीं इन फसलों की खेती वे पूर्णतया ऑर्गेनिक तरीके से कर रहे हैं। किसान लीलाधर के अनुसार वे अपने खेतों में पिछले 4 वर्ष से ऑर्गेनिक खेती करते आ रहे हैं। इसलिए उन्होंने अपना सम्पर्क नेशनल एग्री फूड बायो टेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट मोहाली (पंजाब) से किया है। अभी भी उनके संपर्क बने हुए हैं।
रिसर्च में पाए गुण
संस्थान की डॉ. मोनिका गर्ग द्वारा लगातार 10 वर्ष से काले गेहूं के औषधीय तत्वों पर रिसर्च किया जा रहा है। उनके द्वारा बताए गए परिणामों से प्रेरित होकर इस साल काले गेहूं के बीज इंस्टीट्यूट से मंगवाए गए हैं।किसान लीलीधर के अनुसार ऑर्गनिक फसल स्वास्थ्य के लिए काफी फायदेमंद होती है। इतना ही नहीं इस खेती में लागत भी कम आती है और पैदावार में मुनाफा भी अधिक होता है।
कम लागत, मुनाफ ज्यादा
सामान्य रूप से गेहूं-बाजरे से 18 से 22 रुपए किलो तक के भाव मिलते हैं, जबकि काले गेहूं में औषधीय तत्वों के कारण यह बाजारों में 150 से 200 रुपए किलो तक में बेचे जाते हैं। काले गेहूं की फसल के पैदावार के बाद किसान की आर्थिक स्थिति भी काफी मजबूत होगी। वहीं कई जगह इसकी मांग सामान्य गेहूं से ज्यादा है।
क्या है इसकी खासियत
काले गेहूं दिखने में थोड़े काले व बैंगनी होते हैं। टेस्ट भी इनका नार्मल गेहूं से काफी अलग व गुणकारी होता है। इसमें एंथ्रोसाइनीन पिंगमेंट की मात्रा अधिक होने के कारण इसका रंग काला व बैंगनी हो जाता है। जबकि साधारण गेहूं की बात करें तो उसमें इसकी मात्रा 5 से 15 प्रतिशत पीपीएम तक ही होती है। इसकी अपेक्षा काले गेहूं में इनकी मात्रा 40 से 140 प्रतिशत तक होती है। इनके पौधे तो हरे रंग के ही होते हैं। परंतु बाद में पकने पर इनकी बाली काली हो जाती है। अभी इसकी खेती कम रकबे में की गई है लेकिन फायदा देखते हुए इसका रकबा आगे बढ़ाया जा सकता है।
किस बीमारी में होता है उपयोग
ये काला गेहूं रोग प्रतिरोगी होने के साथ—साथ कीट प्रतिरोधी प्रजाति का भी होता है। काले गेहूं में प्रोटीन ज्यादा होता है। जानकारों की मानें तो शुगर के मरीजों के लिए ये बड़ा लाभदायक है। शुगरवालों को फायदा होता है। सूरजगढ़ सहित कई जगह इसकी खेती हो रही है।