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Glaucoma tal 34th annual conference
Kala Motiyabind 34th Annual Conference: ग्लॉकोमा सोसाइटी ऑफ इंडिया का 34वां वार्षिक सम्मेलन "ग्लूकोताल" का आयोजन 12 से 14 सितंबर तक भोपाल के ताज होटल में होने जा रहा है। जहां 12 से 14 सितंबर तक सिंगापुर, अमेरिका समेत देशभर के 600 से अधिक स्पेशलिस्ट ग्लॉकोमा पर किए अपने रिसर्च साझा करेंगे।
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ग्लूकोताल की आयोजक सेक्रेटरी व बंसल हॉस्पिटल की डॉ विनिता रमानी के मुताबिक, ग्लॉकोमा को काला मोतियाबिंद भी कहा जाता है। यह बीमारी अंधत्व का दूसरा सबसे बड़ा कारण है। काला मोतियाबिंद होने पर किसी प्रकार का दर्द नहीं होता। यह धीरे-धीरे और बिना किसी शुरुआती लक्षण के आंखों की रोशनी को कम करती जाती है। इस बीमारी में आंखों का दबाव बढ़ जाता है, जिससे देखने वाली नसें कमजोर हो जाती हैं और दृष्टि प्रभावित होती है। अक्सर, मरीजों को इसका पता तब चलता है जब उनकी आंखों की रोशनी काफी कम हो चुकी होती है। ऐसे में इसकी पहचान के अभाव में कई बार लोग अपनी आंखों की रोशनी खो बैठते है। अब आंख की रोशन जाने से पहले उनकी एआई पद्धति से पहचान आसान हो चुकी है।
MIGS तकनीक से उपचार संभव
बंसल हॉस्पिटल की डॉ विनिता रमानी ने बताया कि इस सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य ग्लॉकोमा के बारे में जागरूकता बढ़ाना और इसके नवीनतम उपचारों पर चर्चा करना है। सम्मेलन में लेजर उपचार और मिनिमल इनवेसिव ग्लॉकोमा सर्जरी (MIGS) जैसी नई और प्रभावी तकनीकों पर भी चर्चा होगी। डॉ विनिता रमानी ने बताया कि सम्मेलन से देशभर के सामान्य नेत्र रोग विशेषज्ञों को भी समय पर जांच और उपचार के महत्व के बारे में जागरूक करना है।
ग्लॉकोमा लक्षण और उपचार
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ग्लॉकोमा, जिसे आम भाषा में काला पानी या काला मोतियाबिंद भी कहा जाता है, आंखों की एक गंभीर बीमारी है। इसमें आंखों का दबाव बढ़ जाता है, जिससे देखने वाली नसें धीरे-धीरे कमजोर हो जाती हैं और मरीज की दृष्टि कम होने लगती है।
आंखों का सामान्य दबाव और माप
आंखों का सामान्य दबाव 10-20 mmHg (पारे का मिलीमीटर) होता है। यदि यह दबाव 21 mmHg से ऊपर चला जाता है, तो यह ग्लॉकोमा का एक संभावित लक्षण हो सकता है। आंखों का दबाव मापने के लिए कई मशीनें उपलब्ध हैं, जिनमें सबसे विश्वसनीय मशीन एप्लेनेशन टोनोमीटर है।
क्या हैं ग्लॉकोमा के लक्षण ?
ग्लॉकोमा को 'साइलेंट किलर' (बेआवाज हमलावर) भी कहा जाता है, क्योंकि इसके शुरुआती चरण में कोई खास लक्षण दिखाई नहीं देते। मरीज को अक्सर इस बीमारी का पता नियमित आंखों की जाँच के दौरान ही चलता है।
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भारत में ग्लॉकोमा की स्थिति
ग्लॉकोमा, मोतियाबिंद के बाद अंधेपन का दूसरा सबसे बड़ा कारण है, जिसकी रोकथाम संभव है। यह एक अनुवांशिक रोग है। यदि परिवार में किसी को ग्लॉकोमा है, तो उनके भाई-बहन, माता-पिता और बच्चों में यह रोग होने की संभावना 7 से 10 गुना ज्यादा होती है। 40 साल से अधिक उम्र के लोगों में लगभग 4% अंधेपन का कारण ग्लॉकोमा ही होता है।
किन लोगों को है ग्लॉकोमा का खतरा?
- कुछ लोगों में ग्लॉकोमा विकसित होने का खतरा अधिक होता है:
- बढ़ा हुआ आंखों का दबाव
- बढ़ती उम्र
- आनुवंशिक इतिहास वाले लोग
- ब्लडप्रेशर और मधुमेह के रोगी
- मायोपिया (निकट दृष्टि दोष)
- आंखों में लगी चोट या ऑपरेशन के बाद
- स्टेरॉयड जैसी दवाओं के इस्तेमाल से।
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