Bilaspur High Court Decision: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने बड़ा ही उलझे हुए मामले में सुनवाई कर बड़ा फैसला सुनाया है। इसमें बिना शादी किए जन्म लेने वाले बच्चे को उसके जैविक पिता की संपत्ति में हक दिलाया है।
यह हक उस बेटे को 29 साल बाद मिला है। इतना ही नहीं कोर्ट ने इस पुत्र को वैध माना है और उसको जैविक पिता से भी लाभ अर्जित करने का हकदार बताया। वहीं हाईकोर्ट (Bilaspur High Court Decision) ने परिवार न्यायालय के द्वारा दिए गए निर्णय को कानून के अनुरूप नहीं माना। परिवार न्यायालय के निर्णय को खारिज कर दिया है।
परिवार न्यायालय ने खारिज किया केस
जानकारी के अनुसार छत्तीसगढ सरगुजा संभाग के सूरजपुर जिले के एक युवक ने अपने जैविक पिता से भरण पोषण की मांग की। जैविक पिता की संपत्ति में हक दिलाने परिवार न्यायालय में अपील की।
जहां सुनवाई शुरू हुई। इस सुनवाई के के बाद परिवार न्यायालय (Bilaspur High Court Decision) ने मामले को खारिज कर दिया। इसके बाद युवक ने हाईकोर्ट में परिवाद दायर किया।
प्रेम संबंध में गर्भवती हो गई मां
परिवार न्यायालय में मामला खारिज होने के बाद युवक ने हाईकोर्ट (Bilaspur High Court Decision) में अपील की। हाईकोर्ट में की गई अपील में युवक के द्वारा जानकारी दी गई कि उसके जैविक पिता और मां आस पड़ोस में रहते थे। दोनों के बीच प्रेम प्रसंग शुरू हो गया। यह प्रेम प्रसंग संबंध में बदल गया। इस प्रेम संबंध में मां गर्भवती हो गई।
बिना शादी के दिया बच्चे को जन्म
हाईकोर्ट (Bilaspur High Court Decision) में की अपील में कहा गया कि प्रेम प्रसंग के बाद जैविक पिता और युवक की मां ने शारीरिक संबंध बना लिए। इससे मां गर्भवती हो गई। मां के गर्भवती होने की जानकारी पिता को लगी, पिता ने गर्भपात कराने के लिए कहा।
मां नहीं मानी और गर्भपात कराने से इनकार कर दिया। इसी के साथ मां ने इसकी रिपोर्ट थाने में दर्ज कराई। इसके बाद नवंबर 1995 को कुंवारी मां ने एक लड़के को जन्म दिया।
जैविक पिता से की भरण पोषण की मांग
बच्चे के जन्म के बाद वह लड़का अपनी मां के साथ ही रहा। इसी दौरान मां ने अपने लिए और बेटे के लिए भरण पोषण को लेकर परिवार न्यायालय (Bilaspur High Court Decision) में प्रकरण दर्ज कराया। इस केस की परिवार न्यायालय ने संपत्ति के अधिकारों की घोषणा वैवाहिक पक्ष के दायरे से बाहर माना। इसके कारण इस केस में मां-बेटे के भरण पोषण की मांग को योग्य नहीं माना। इसके बाद हाईकोर्ट में इसकी अपील की गई।
युवक बीमार हुआ तो किया दावा पेश
जानकारी मिली है कि अप्रैल 2017 में बिन ब्याही मां का बेटा जो युवक हो चुका है, बीमार हो गया था। इस दौरान उसके सामने वित्तीय संकट खड़ा हो गया। युवक ने जैविक पिता के घर जाकर इलाज कराने के लिए आर्थिक मदद की मांग की।
जैविक पिता ने युवक को आर्थिक मदद करने से इनकार कर दिया। इस बात से नाराज युवक ने पहले परिवार न्यायालय (Bilaspur High Court Decision) में संपत्ति का दावा पेश किया, जहां से युवक की अपील पारिवारिक न्यायालय खारिज कर दी।
इसके बाद युवक ने हाईकोर्ट में संपत्ति की मांग को लेकर अपील की। जहां जस्टिस गौतम भादुड़ी और जस्टिस रजनी दुबे की डिवीजन बेंच में इस पूरे मामले की सुनवाई की गई।
हाईकोर्ट ने युवक को माना वैध पुत्र
युवक की अपील की सुनवाई हाईकोर्ट (Bilaspur High Court Decision) में जस्टिस गौतम भादुड़ी और जस्टिस रजनी दुबे की डिवीजन बेंच में हुई। जहां कोर्ट ने दोनों पक्षों की सुनवाई की। सुनवाई के बाद कोर्ट ने परिवार न्यायालय के निष्कर्ष को खारिज किया और नया फैसला सुनाया।
हाईकोर्ट (Bilaspur High Court Decision) ने युवक को दोनों का वैध पुत्र माना और घोषित किया। इसके साथ ही युवक को पिता से मिलने वाले सभी लाभ का हकदार भी घोषित कर दिया। अब युवक को उसके जैविक पिता की संपत्ति में पूरा अधिकार मिल गया है।
अपीलकर्ता युवक का जन्म 1995 में हुआ, अब वह लगभग 29 वर्ष का हो चुका है। युवक ने इस मामले में लंबी लड़ाई लड़ी है। इसके बाद हाईकोर्ट से उसको अपने जैविक पिता से मिलने वाला अधिकार का हक मिला है।