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बिलासपुर HC ने 21 साल पुराने भ्रष्टाचार मामले में क्लर्क को किया बरी: कहा- सिर्फ नोट मिलने से रिश्वत साबित नहीं होती

Bilaspur High Court: बिलासपुर HC ने 21 साल पुराने भ्रष्टाचार मामले में क्लर्क को किया बरी, कहा- सिर्फ नोट मिलने से रिश्वत साबित नहीं होती

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Harsh Verma
Chhattisgarh Sharab Ghotala 2025 Vijay Bhatia, Bilaspur High Court

Chhattisgarh Bilaspur High Court

Bilaspur High Court: बिलासपुर (Bilaspur) हाईकोर्ट ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम (Prevention of Corruption Act) के तहत दोषी ठहराए गए बिल्हा तहसील (Bilha Tehsil) के तत्कालीन रीडर और क्लर्क बाबूराम पटेल (Baburam Patel) को बरी कर दिया है।

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जस्टिस सचिन सिंह राजपूत (Justice Sachin Singh Rajput) की सिंगल बेंच ने कहा कि अभियोजन यह साबित करने में असफल रहा कि आरोपी ने रिश्वत की मांग की थी या उसे अवैध लाभ के रूप में स्वीकार किया था।

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5000 रुपए की रिश्वत मांगने का था आरोप

यह मामला साल 2002 का है। शिकायतकर्ता मथुरा प्रसाद यादव (Mathura Prasad Yadav) ने लोकायुक्त कार्यालय (Lokayukt Office) में शिकायत दी थी कि बाबूराम पटेल ने उसके पिता की जमीन का खाता अलग करने के नाम पर ₹5000 रिश्वत मांगी, जो बाद में ₹2000 में तय हुई।

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लोकायुक्त पुलिस (Lokayukt Police) ने ट्रैप की कार्रवाई करते हुए आरोपी को 1500 रुपए लेते हुए पकड़ने का दावा किया था। 2004 में विशेष न्यायाधीश (Special Judge) ने आरोपी को एक-एक वर्ष की सजा और 500-500 रुपए जुर्माने की सजा सुनाई थी।

आरोपी ने कहा- झूठा फंसाया गया था

आरोपी बाबूराम पटेल ने इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी। उनके वकील विवेक शर्मा (Advocate Vivek Sharma) ने तर्क दिया कि शिकायतकर्ता की पत्नी पूर्व सरपंच (Former Sarpanch) थीं और आरोपी ने उनके खिलाफ जांच में हिस्सा लिया था, जिससे निजी रंजिश के कारण झूठा फंसाया गया। वकील ने कहा कि 1500 रुपए रिश्वत नहीं, बल्कि ग्रामवासियों से पट्टा शुल्क (Lease Fee) की बकाया राशि थी।

सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला, “सिर्फ नोट मिलने से अपराध सिद्ध नहीं”

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हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के मामलों बी. जयाराज बनाम स्टेट ऑफ आंध्र प्रदेश (2014) और सौंदर्या राजन बनाम स्टेट (2023) का हवाला देते हुए कहा कि केवल नोटों की बरामदगी से रिश्वत का अपराध साबित नहीं होता।

कोर्ट ने पाया कि गवाहों के बयान विरोधाभासी थे — किसी ने कहा नोट दाएं पॉकेट से मिले, तो किसी ने कहा पीछे की जेब से। रिकॉर्डिंग में भी आरोपी की आवाज साफ नहीं थी।

अदालत ने दी संदेह का लाभ, सभी आरोपों से बरी

जस्टिस राजपूत ने कहा कि अभियोजन अपना मामला संदेह से परे सिद्ध नहीं कर सका। ट्रायल कोर्ट ने साक्ष्यों का गलत मूल्यांकन किया था। इसलिए 30 अक्टूबर 2004 का निर्णय निरस्त किया जाता है और आरोपी बाबूराम पटेल को सभी आरोपों से बरी किया जाता है।

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