Bilaspur High Court: छत्तीसगढ़ के वक्फ बोर्ड में मनोनीत सदस्य की नियुक्ति पर हाई कोर्ट (Bilaspur High Court) ने एक्शन लेते हुए रोक लगा दी है। जस्टिस पीपी साहू की सिंगल बेंच ने याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि वक्फ बोर्ड में मुतवल्लियों का चुनाव नहीं हुआ है। ऐसे में नियुक्ति पर रोक लगाई जाती है।
बता दें कि हाई कोर्ट में याचिका में डॉ. सलीम राज के मनोनयन को चुनौती दी गई है। बिलासपुर के रहने वाले मुतवल्ली मोहम्मद इस्त्राइल ने अपने एडवोकेट के जरिए हाई कोर्ट (Bilaspur High Court) में एक याचिका दायर की थी। उन्होंने अपनी याचिका में वक्फ बोर्ड (CHHATTISGARH STATE WAQF BOARD) के सदस्य के पद पर डॉ. सलीम राज की नियुक्ति पर आपत्ति जताई थी।
मुतवल्ली ने याचिका में कहा कि राज्य सरकार वक्फ बोर्ड (CHHATTISGARH STATE WAQF BOARD) के सदस्य के रूप में सांसद, विधायक और बार के सदस्य का मनोनयन कर सकती है, लेकिन डॉ. सलीम राज न तो सांसद हैं और ना ही विधायक। वह वकील भी नहीं है, फिर भी उनकी नियुक्ति की गई है।
धारा 14 का दिया हवाला
याचिका में नियमों का हवाला देते हुए कहा गया कि वक्फ बोर्ड (CHHATTISGARH STATE WAQF BOARD) में मुतवल्लियों का प्रतिनिधित्व आवश्यक है। डॉ. सलीम राज की नियुक्ति के बाद सदस्य के लिए कोई पद रिक्त नहीं है। मुतवल्लियों के प्रतिनिधित्व के बिना बोर्ड की मान्यता नहीं रह जाएगा।
इसको लेकर याचिकाकर्ता ने वक्फ बोर्ड (CHHATTISGARH STATE WAQF BOARD) की धारा 14 का हवाला देते हुए कहा कि इसमें दिए गए प्रविधान और शर्तों के अनुसार बोर्ड में मुतवल्लियां की तरफ से एक सदस्य होना अनिवार्य होता है। मुतवल्लियों का प्रतिनिधित्व जरूरी होता है। मौजूदा बोर्ड में मुतवल्लियों का प्रतिनिधित्व नहीं है। इसका कारण, मुतवल्लियों का चुनाव नहीं कराया गया है।
राज्य सरकार कर सकती है मुस्लिम व्यक्ति को नामित
प्रमुख पक्षकार डॉ. राज के एडवोकेट ने कोर्ट को बताया कि छत्तीसगढ़ में विधानसभा या फिर लोकसभा चुनाव के बाद जो सदस्य चुनाव जीतकर सदन में जाते हैं उनमें से एक भी मुस्लिम सदस्य नहीं है। विधायक और सांसद एक भी मुस्लिम नहीं है। इसके अलावा स्टेट बार काउंसिल भंग है। बार स्टेट बार काउंसिल का चुनाव नहीं हो पाया है।
डॉ. राज के अधिवक्ता ने नियमों का हवाला देते हुए कहा कि राज्य में सांसद, विधायक और बार काउंसिल में मुस्लिम सदस्य निर्वाचित ना होने की स्थिति में राज्य सरकार में कोई भी मुस्लिम सदस्य नहीं है, ऐसे में राज्य सरकार किसी अन्य मुस्लिम व्यक्ति को नामित कर सकती है। इसमें प्राविधान का उल्लंघन संबंधी कोई बात नहीं है।
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