नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने गुरूवार को एक बड़ा फैसला दिया है। कोर्ट ने एक मामले में फैसला सुनाते हुए कहा कि राज्य पुनर्गठन के बाद आरश्रित श्रेणी का व्यक्ति किसी भी एक राज्य में ही लाभ का दावा कर सकता है। पुनर्गठन के बाद एक साथ दोनों राज्यों में लाभ का दावा नहीं कर सकता है।
कई राज्यों का हुआ है पूनर्गठन
बतादें कि देश में कई ऐसे राज्य हैं जिनका पूनर्गठन हुआ है। जैसे बिहार-झारखंड, मध्य प्रदेश-छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश- उत्तराखंड, आंध्र प्रदेश- तेलंगाना आदि। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला काफी अहम है। न्यायमूर्ति यू. यू. ललित और न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी की पीठ ने निर्णय देते हुए कहा कि कोई भी व्यक्ति किसी एक राज्य में आरक्षण का लाभ ले सकता है।
हाई कोर्ट ने नियुक्ति देने से इंकार कर दिया था
दरअसल, यह मामला अनुसूचित जाति के सदस्य पंकज कुमार से संबंधित था। पंकज ने झारखंड हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। झारखंड हाई कोर्ट ने 2:1 के बहुमत से फैसला देते हुए राज्य सिविल सेवा परीक्षा 2007 में उन्हें इस आधार पर नियुक्ति देने से इंकार कर दिया कि उनका पता दिखाता है कि वह बिहार के पटना के स्थायी निवासी हैं। ऐसे में उन्हें झारखंड में आरक्षित सीट पर नियुक्ति नहीं दी जा सकती।
SC ने HC के फैसले को खारिज किया
हालांकि अब सुप्रीम कोर्ट के पीठ ने कहा कि व्यक्ति दोनों राज्यों में से किसी एक में आरक्षण का दावा करने का हकदार है। क्योंकि पंकज राज्य पूनर्गठन के पहले से ही झारखंड में रह रहे थे। पूनर्गठन के बाद के लोग ऐसा दावा नहीं कर सकते हैं, लेकिन पहले के लोग दोनों राज्यों में से किसी एक में आरक्षण का दावा कर सकते हैं। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि 24 फरवरी 2020 का उच्च न्यायालय का बहुमत से दिया गया फैसला कानून में अव्यावहारिक है और इसलिए इसे खारिज किया जाता है।
पंकज के मामले को वैद्य करार दिया गया
इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि अगर किसी व्यक्ति को दोनों राज्यों में एक साथ आरक्षण लेने की अनुनमति दी जाती है तो इससे संविधान के अनुच्छेद 341 (1) और 342 (1) के प्रावधानों का उल्लंघन होगा। हालांकि, पंकज ने केवल झारखंड में आरक्षण लेने का दावा किया है तो यह वैद्य है। कोर्ट ने छह हफ्ते के अंदर नियुक्त करने का आदेश दिया और कहा कि वह वेतन एवं भत्तों के साथ ही वरीयता के भी हकदार हैं।