Bhupesh Baghel Supreme Court News: छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court of India) से बड़ी राहत मिली है। साल 2023 के विधानसभा चुनावों में पाटन सीट से विजय बघेल द्वारा दायर चुनाव याचिका (Election Petition against Bhupesh Baghel) की वैधानिकता पर सवाल उठाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने भूपेश बघेल को उच्च न्यायालय व चुनाव न्यायाधिकरण (High Court and Election Tribunal) के समक्ष चुनौती देने की अनुमति दे दी है। यह फैसला जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की डिवीजन बेंच ने सुनाया।
मौन अवधि में प्रचार का आरोप और चुनाव याचिका
2023 के छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में पाटन सीट से कांग्रेस प्रत्याशी भूपेश बघेल (Bhupesh Baghel Congress) और भाजपा उम्मीदवार विजय बघेल (Vijay Baghel BJP) आमने-सामने थे। मतगणना के बाद भूपेश बघेल विजयी घोषित हुए। इसके बाद विजय बघेल ने हाई कोर्ट में एक चुनाव याचिका दायर की, जिसमें आरोप लगाया गया कि भूपेश बघेल ने मतदान से पूर्व निर्धारित 48 घंटे की मौन अवधि (48 Hours Silent Period Violation) के दौरान रोड शो और जनसभा आयोजित की थी।
याचिका में कहा गया कि भूपेश बघेल द्वारा आचार संहिता का उल्लंघन (Model Code of Conduct Violation) कर “भ्रष्ट आचरण” किया गया, जो जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 126 (Section 126 of Representation of People Act) के तहत दंडनीय है। विजय बघेल के चुनाव एजेंट द्वारा इस कथित उल्लंघन की वीडियो रिकॉर्डिंग भी की गई, जिसे साक्ष्य के रूप में कोर्ट में पेश किया गया।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने हाई कोर्ट में याचिका खारिज करने के लिए आदेश 7 नियम 11 (Order 7 Rule 11 CPC) के तहत आवेदन दिया था, जिसे खारिज कर दिया गया। इसके खिलाफ उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। वरिष्ठ अधिवक्ता विवेक तन्खा और अधिवक्ता सुमीर सोढ़ी ने भूपेश बघेल की ओर से दलील दी कि मौन अवधि का उल्लंघन “भ्रष्ट आचरण” नहीं माना जा सकता और इसलिए चुनाव याचिका विचारणीय नहीं है (Election Petition Not Maintainable)।
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court News) की डिवीजन बेंच ने इस पर कहा कि भूपेश बघेल को यह मुद्दा हाई कोर्ट और चुनाव न्यायाधिकरण में प्रारंभिक मुद्दे के रूप में उठाने की स्वतंत्रता होगी। कोर्ट ने साफ किया कि इस आदेश की कोई टिप्पणी याचिका की योग्यता या दोषों पर असर नहीं डालेगी (No Prejudice on Merits of Election Petition)।
जनता और नेताओं के लिए क्या है संकेत?
यह फैसला न सिर्फ भूपेश बघेल के लिए एक बड़ी कानूनी राहत है, बल्कि यह चुनावी राजनीति में बढ़ते कानूनी दांव-पेंचों की ओर भी इशारा करता है। सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय इस बात को पुष्ट करता है कि चुनाव याचिकाओं की वैधानिकता को भी प्राथमिक चरण में चुनौती दी जा सकती है (Challenge to Maintainability in Election Law)।
इसके साथ ही यह मामला देशभर में चुनाव के दौरान मौन अवधि के पालन और उसके उल्लंघन से जुड़े मामलों में आने वाले समय में एक मिसाल (Legal Precedent in Silent Period Cases) बन सकता है।
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अभी लंबी है कानूनी लड़ाई, पर बघेल को मिली शुरुआती जीत
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने विजय बघेल की चुनाव याचिका को खारिज नहीं किया है, लेकिन भूपेश बघेल को इसे प्रारंभिक स्तर पर चुनौती देने का अवसर जरूर मिल गया है। अब हाई कोर्ट और चुनाव न्यायाधिकरण में यह बहस होगी कि क्या मौन अवधि का कथित उल्लंघन वाकई चुनाव को प्रभावित करने वाला गंभीर कृत्य था या नहीं।
यह मामला राजनीतिक हलकों में गहरी दिलचस्पी ले रहा है और आने वाले दिनों में यह छत्तीसगढ़ की राजनीति को एक बार फिर सुर्खियों में ला सकता है।
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