हाइलाइट्स
- गांधी मेडिकल कॉलेज भोपाल में अवैध नियुक्तियों का मामला।
- हाई कोर्ट ने दिए नए सिरे से मेरिट लिस्ट तैयार करने के निर्देश।
- कोर्ट ने पूर्व डीन सलिल भार्गव पर लगाया 2 लाख का जुर्माना।
Bhopal Gandhi Medical College Recruitment High Court Fine: मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की जबलपुर खंडपीठ ने भोपाल के गांधी मेडिकल कॉलेज (Gandhi Medical College) में हुई अवैध भर्तियों (illegal appointments) को लेकर सख्ती दिखाई है। जस्टिस विवेक जैन (Justice Vivek Jain) की एकलपीठ ने कॉलेज में हुई नितिन अग्रवाल सहित अन्य की अवैध नियुक्तियों को निरस्त कर दिया। इसके साथ ही पूर्व डीन सलिल भार्गव पर दो लाख का जुर्माना भी लगाया। साथ ही अदालत ने नए सिरे से मेरिट लिस्ट बनाने और इंटरव्यू लेने के निर्देश दिए हैं। मामला योग्य आवेदक को नौकरी से वंचित करने व फर्जी शपथ पत्र पेश करने से जुड़ा है।
अवैध नियुक्तियों पर हाई कोर्ट सख्त
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की जबलपुर खंडपीठ ने गांधी मेडिकल कॉलेज, भोपाल में हुई अवैध नियुक्तियों के मामले में कड़ा रुख अपनाया है। न्यायमूर्ति विवेक जैन की एकलपीठ ने सख्त फैसला सुनाते हुए नितिन अग्रवाल सहित अन्य की नियुक्तियों को निरस्त करने का आदेश दिया है। अदालत ने स्पष्ट किया कि चयन प्रक्रिया में पारदर्शिता का गंभीर उल्लंघन हुआ है।
पूर्व डीन भार्गव पर 2 लाख का जुर्माना
कोर्ट ने कॉलेज के पूर्व डीन डॉ. सलिल भार्गव पर 2 लाख रुपए का जुर्माना लगाते हुए कहा कि उनकी सेवानिवृत्ति की स्थिति को देखते हुए एफआईआर दर्ज करने के बजाय आर्थिक दंड ही पर्याप्त माना गया है। यह दंड उनके प्रशासनिक कर्तव्यों में लापरवाही के कारण लगाया गया है।
जुर्माने की राशि कहां जमा करनी है?
पूर्व डीन से वसूली गई 2 लाख रुपए की जुर्माना राशि को अदालत ने विभिन्न सामाजिक और न्यायिक संस्थानों में वितरित करने के आदेश दिए हैं।
- ₹80,000 → मध्यप्रदेश पुलिस कल्याण कोष
- ₹40,000 → राष्ट्रीय रक्षा कोष
- ₹20,000 → राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण
- ₹20,000 → हाईकोर्ट बार एसोसिएशन
इस राशि को जमा करने के लिए 90 दिन की मोहलत दी गई है। यदि निर्धारित समयसीमा में राशि जमा नहीं की जाती, तो भोपाल के पुलिस आयुक्त को स्वतंत्र रूप से कानूनी कार्रवाई करने का अधिकार प्रदान किया गया है।
3 माह में दोबारा इंटरव्यू और मेरिट लिस्ट
अदालत ने स्पष्ट आदेश दिया कि नई मेरिट लिस्ट तैयार की जाए और इंटरव्यू प्रक्रिया को नए सिरे से तीन माह के भीतर पूरा किया जाए। यह निर्देश नियुक्तियों की निष्पक्षता और पात्रता की फिर से समीक्षा के उद्देश्य से जारी किया गया है।
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क्या है पूरा मामला?
इस पूरे विवाद की शुरुआत भोपाल निवासी मनोहर सिंह से हुई, जिन्हें गांधी मेडिकल कॉलेज में अस्पताल प्रबंधक, सहायक प्रबंधक और डिप्टी रजिस्ट्रार जैसे पदों के लिए आवेदन करने के बावजूद अयोग्य घोषित कर दिया गया।
शुरुआत में उन्होंने कॉलेज प्रशासन को अपनी आपत्ति दर्ज कराई (अभ्यावेदन प्रस्तुत किया), लेकिन जब कोई समाधान नहीं निकला, तो उन्होंने सीधे हाईकोर्ट की शरण ली।
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चयन प्रक्रिया में विरोधाभास
अदालत में दायर याचिका में बताया गया कि मनोहर सिंह को पहले डिप्टी रजिस्ट्रार पद के लिए योग्य माना गया था, लेकिन बाद में अस्पताल प्रबंधक और सहायक प्रबंधक पदों के लिए अयोग्य बता दिया गया। यह विरोधाभासी निर्णय अपने आप में भर्ती प्रक्रिया में गड़बड़ी का संकेत देता है।
ओबीसी प्रमाणपत्र पर उठे सवाल, कोर्ट ने किया स्पष्ट
गांधी मेडिकल कॉलेज के पूर्व डीन डॉ. सलिल भार्गव ने कोर्ट में हलफनामा देकर कहा था कि याचिकाकर्ता का ओबीसी प्रमाण पत्र डिजिटल नहीं था, इसीलिए उसे अपात्र माना गया। लेकिन कोर्ट ने रिकॉर्ड की जांच में पाया कि प्रमाणपत्र पूरी तरह डिजिटल था और उस पर मौजूद क्यूआर कोड के जरिए वैरिफिकेशन भी संभव था। इससे यह साफ हुआ कि चयन प्रक्रिया में पारदर्शिता नहीं रखी गई और गलत तथ्यों के आधार पर पात्र व्यक्ति को वंचित किया गया।
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कोर्ट ने भर्ती प्रक्रिया को बताया फर्जी
हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता के वकील की दलीलें सुनने के बाद गांधी मेडिकल कॉलेज में हुई भर्ती प्रक्रिया को अवैध करार दिया। कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि याचिकाकर्ता को जानबूझकर नियुक्ति से वंचित किया गया, जो पूरी तरह अवैधानिक और अनुचित है।
न्यायालय ने आश्चर्य जताया कि याचिकाकर्ता को डिप्टी रजिस्ट्रार पद के लिए तो पात्र माना गया, लेकिन फिर भी उसे इंटरव्यू के लिए बुलाया तक नहीं गया, जो चयन प्रक्रिया की पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़े करता है।
डिग्री को लेकर भ्रम, कोर्ट में खुली सच्चाई
कॉलेज प्रशासन ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि याचिकाकर्ता के पास मास्टर ऑफ हॉस्पिटल एडमिनिस्ट्रेशन (MHA) की डिग्री नहीं है, बल्कि केवल MBA की डिग्री है, इसलिए उसे चयन प्रक्रिया से बाहर किया गया।
लेकिन याचिकाकर्ता की ओर से कोर्ट को स्पष्ट किया गया कि उसने पंजाब टेक्निकल यूनिवर्सिटी, जालंधर से MBA इन हॉस्पिटल एडमिनिस्ट्रेशन की पढ़ाई की है, जो कि संबंधित पद के लिए पूरी तरह योग्य है।
यह तर्क कोर्ट के समक्ष प्रमाणित होने के बाद यह साफ हो गया कि भर्ती प्रक्रिया में पक्षपात और जानबूझकर अयोग्यता दिखाने की कोशिश की गई थी।