Bhopal Girl Rape Case POCSO Judgement Controversy: मध्यप्रदेश के भोपाल में पांच साल की मासूम से दुष्कर्म और हत्या के चर्चित मामले में पाक्सो कोर्ट का एक आदेश सामने आया है। जिस पर मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने कड़ी नाराजगी जताई है।
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के जस्टिस विवेक अग्रवाल और जस्टिस अवनिंद्र कुमार सिंह की डिवीजन बेंच ने यह मामला चीफ जस्टिस के समक्ष रखने के निर्देश दिए है, जिसमें उन्होंने जज के खिलाफ कार्रवाई का उल्लेख किया है।
क्या है पूरा मामला ?
दरअसल, भोपाल के शाहजहांनाबाद में मासूम के दुष्कर्म और हत्या के मामले में इस मामले में ट्रायल कोर्ट मुख्य आरोपी अतुल निहाल को फांसी की सजा सुना चुका है। इस मामले में अदालत ने एक और आदेश जारी किया, जिसकी ट्रायल कोर्ट के फैसले में पॉक्सो कोर्ट की जज कुमुदिनी पटेल की अदालत ने साक्ष्य छिपाने के आरोप में मां बसंती बाई और बहन चंचल की सजा सुनाई है, इसमें सजा की अवधि अलग-अलग जगह एक साल और दो साल का लिखी गई।
जस्टिस के जनरल रजिस्ट्रार को निर्देश
पॉक्सो कोर्ट की जज की कोर्ट के आदेश पर जस्टिस विवेक अग्रवाल और जस्टिस अवनींद्र कुमार सिंह की डिवीजन बेंच ने नाराज जताई और जनरल रजिस्ट्रार को निर्देश दिए है कि इस मामले को मुख्य न्यायाधीश के सामने रखा जाएं। इसमें डिवीजन बेंच ने प्रशासनिक स्तर पर जज के खिलाफ कार्रवाई का भी उल्लेख किया है।
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कॉस्ट न भरने पर जेल की अवधि बढ़ाई
आदेश में पृष्ठ संख्या 78-79 पर अंतिम तालिका में सजा की अवधि को एक साल की जगह दो साल लिखी गई थी। जुर्माने का भुगतान न करने पर जेल की अवधि एक महीने से बढ़ाकर तीन महीने कर दी गई थी। आरोपियों को 27 सितंबर 2024 को गिरफ्तार किया गया था और 10 मार्च 2025 को सजा सुनाई गई थी।
ऐसा ये कोई पहला मामला नहीं
– साल 2019 के इंदौर के एक मर्डर के मामले में आजीवन कारावास की सजा का मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा, जिसमें अवधि गलत लिखी गई थी, हालांकि बाद में संशोधन कर लिया गया।
– साल 2022 के भोपाल पॉक्सो मामले में सात साल की सजा को 10 साल लिख दिया था। इस मामले में हाईकोर्ट ने स्पष्टीकरण मांगा और बाद में उसमें सुधारकर जज को चेताया था।
– साल 2024 के ग्वालियर में दुष्कर्म मामले में मूल आरोपी का नाम ही नहीं लिखा था। आदेश में किसी ओर का नाम लिखा था, जिसे हाई कोर्ट से सुधार किया गया। दोबारा ट्रायल भी नहीं हुआ।
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