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Bhojpur Shiv Temple: भोजपुर शिव मंदिर, एक अद्भुत और रहस्यमय निर्माण, किंतु अधूरा!

Bhojpur Shiv Temple: मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से लगभग 25 किलोमीटर दूर रायसेन जिले में स्थित भोजपुर नामक गाँव में बना एक शिव मन्दिर है।

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Bhojpur Shiv Temple: भोजपुर शिव मंदिर, एक अद्भुत और रहस्यमय निर्माण, किंतु अधूरा!

Bhojpur Shiv Temple: मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से लगभग 25 किलोमीटर दूर रायसेन जिले में स्थित भोजपुर नामक गाँव में बना एक शिव मन्दिर है। इसे भोजपुर मन्दिर भी कहते हैं। यह मन्दिर बेतवा नदी के तट पर विन्ध्य पर्वतमालाओं के मध्य एक पहाड़ी पर स्थित है।

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भोजपुर का यह शिव मंदिर(Bhojpur Shiv Temple) एक अद्भुत और अनेक रहस्यों से भरा हुआ परन्तु अधूरा है। मंदिर 115 फीट (35 मी॰) लंबे, 82 फीट (25 मी॰) चौड़े तथा 13 फीट (4 मी॰) ऊंचे चबूतरे पर खड़ा है।

विशालतम शिवलिंग है यहां की विशेषता

पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अनुसार, इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यहाँ का विशालतम शिवलिंग है जिसे ‘उत्तर भारत का सोमनाथ’ माना जाता है। चिकने लाल बलुआ पत्थर से बने इस शिवलिंग को एक ही पत्थर से बनाया गया है।

आधार सहित शिवलिंग की कुल ऊंचाई 40 फीट (12 मी॰) से अधिक है। अगर आधार को छोड़ दिया जाए तो सिर्फ शिवलिंग की ऊंचाई 7.5 फीट (2.3 मी॰) तथा व्यास 5.8 फीट (2 मी॰) है। यह शिवलिंग एक 21.5 फीट (6.6 मी॰) चौड़े वर्गाकार आधार (जलहरी) पर स्थापित है।

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मंदिर से प्रवेश के लिए पश्चिम दिशा में सीढ़ियां हैं। इस मंदिर का प्रवेश द्वार वर्तमान में किसी भी मंदिर के प्रवेश द्वारों में सर्वाधिक विशाल है। शिवलिंग के आकार के हिसाब से इसका प्रवेश द्वार प्रासंगिक भी है। इसकी एक विशेषता यह भी है कि इसका अधूरा छत 40 फ़ीट की ऊँचाई वाले 4 स्तम्भों पर टिकी हुई है।

क्या है इस मंदिर का इतिहास

इस मंदिर को लेकर दो मान्यताएं प्रचलित हैं।

पौराणिक मान्यता

पहली जनकथा के अनुसार वनवास के समय इस शिव मंदिर को पांडवों ने बनवाया था। ऐसा माना जाता है कि माता कुंती को पूजा करने के लिये पांडवों ने इस मंदिर को एक ही रात में बनाने का प्रण लिया था, किंतु मंदिर बनाते बनाते सुबह हो गयी तो जहाँ तक बना था वहीं छोड़ दिया। इस प्रकार यह मन्दिर आज तक अधूरा है।

ऐतिहासिक मान्यता

इस मान्यता के अनुसार, इस मन्दिर का निर्माण कला, स्थापत्य और विद्या के महान संरक्षक मध्य-भारत के परमार वंशीय राजा भोजदेव ने 11वीं शताब्दी में करवाया। मन्दिर का निर्माण कभी पूरा नहीं हो पाया

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अतः यहाँ एक शिलान्यास या निर्माण शिला की कमी है। फिर भी यहां का नाम भोजपुर ही है जो राजा भोज के नाम से ही जुड़ा हुआ है। कुछ मान्यताओं के अनुसार यह मन्दिर एक ही रात में निर्मित होना था किन्तु इसकी छत का काम पूरा होने के पहले ही सुबह हो गई, इसलिए काम अधूरा रह गया।

राजा भोज द्वारा निर्माण की मान्यता को स्थल के शिल्पों से भी समर्थन मिलता है, जिनकी कार्बन आयु-गणना इन्हें 11वीं शताब्दी का ही सुनिश्चित करती है।

पुरातत्त्व विभाग द्वारा राष्ट्रीय स्मारक चिह्नित

मन्दिर परिसर को भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा राष्ट्रीय महत्त्व का स्मारक चिह्नित किया गया है व इसका पुनरुद्धार कार्य कर इसे फिर से वही रूप देने का सफ़ल प्रयास किया है। मन्दिर के बाहर लगे पुरातत्त्व विभाग के शिलालेख अनुसार इस मंदिर का शिवलिंग भारत के मन्दिरों में सबसे ऊँचा एवं विशालतम शिवलिंग है।

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इस मन्दिर का प्रवेशद्वार भी किसी हिन्दू भवन के दरवाजों में सबसे बड़ा है। मन्दिर के निकट ही इस मन्दिर को समर्पित एक पुरातत्त्व संग्रहालय भी बना है। शिवरात्रि के अवसर पर राज्य सरकार द्वारा यहां प्रतिवर्ष भोजपुर उत्सव का आयोजन किया जाता है।

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