Bhadra Kya Hai: आपने अक्सर सुना होगा कि भद्रा काल में शुभ काम करना वर्जित होता है। पर कभी आपने सोचा है कि आखिर ये भद्रा क्या होती है। इसमें ऐसा क्या होता है कि इस दौरान काम करना अच्छा नहीं मानते हैं।
पौराणिक कथाओं में क्या है भद्रा
ज्योतिषाचार्य पंडित रामगोविंद शास्त्री का कहना है कि पुराणों के अनुसार भद्रा भगवान सूर्यदेव की पुत्री और राजा शनि की बहन है। चूंकि शनि उग्र स्वभाव के हैं। उन्हीं की तरह इसका स्वभाव भी कड़क है।
ब्रहृमा ने सुझाया था ये उपाय
भद्रा के स्वभाव को नियंत्रित करने के लिए ही भगवान ब्रह्मा ने उन्हें कालगणना या पंचांग में एक प्रमुख अंग विष्टि करण में स्थान दिया था। आपको बता दें भद्रा की स्थिति में कुछ शुभ कार्यों, यात्रा और उत्पादन आदि कार्यों को निषेध माना गया। पर भद्रा काल में तंत्र कार्य, अदालती और राजनीतिक चुनाव कार्य सुफल देने वाले माने गए हैं।
पंचांग में भद्रा का महत्व
ज्योतिष में हिन्दू पंचांग के 5 प्रमुख अंग माने जाते हैं। जिसमें तिथि, वार, योग, नक्षत्र और करण शामिल हैं। इनमें से करण एक महत्वपूर्ण अंग होता है। जो एक तिथि का आधा भाग होता है।
आपको बता दें करण की संख्या 11 होती है। जो चर और अचर में दो भागों में बांटे गए हैं। इनमें से चर या गतिशील करण में बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज और विष्टि आते हैं जबकि अचर या अचलित करण में शकुनि, चतुष्पद, नाग और किंस्तुघ्न आते हैं। यहां जो 11 करण हैं इनमें से 7वें करण विष्टि का नाम ही भद्रा है। ये हमेशा गतिशील होती है। पंचांग शुद्धि में भद्रा का विशेष महत्व होता है।
भद्रा का शाब्दिक अर्थ
यूं तो ‘भद्रा’ का शाब्दिक अर्थ ‘कल्याण करने वाली’ है, लेकिन इस अर्थ के विपरीत भद्रा या विष्टि करण में शुभ कार्य निषेध बताए गए हैं।
तीनों लोकों में घूमती है भद्रा
ज्योतिष शास्त्र और विज्ञान के अनुसार अलग-अलग राशियों के अनुसार भद्रा तीनों लोकों में घूमती है। जब यह मृत्युलोक में होती है, तब सभी शुभ कार्यों में बाधक या उनका नाश करने वाली मानी गई है।
जब चन्द्रमा कर्क, सिंह, कुंभ व मीन राशि में विचरण करता है और भद्रा विष्टि करण का योग होता है, तब भद्रा पृथ्वीलोक में रहती है। इस समय सभी कार्य शुभ कार्य वर्जित होते हैं। इसके दोष निवारण के लिए भद्रा व्रत का विधान भी धर्मग्रंथों में बताया गया है।
ज्योतिषाचार्य पंडित रामगोविंद शास्त्री पर इस बार रक्षाबंधन का त्योहार 19 अगस्त को मनाया जाएगा। लेकिन भद्रा काल एक दिन पहले 18 अगस्त की दोपहर 3 बजे ही आ जाएगी। जो 19 अगस्त को दोपहर 1:30 बजे तक रहेगी। यानी इसके बाद ही रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जा सकेगा।
भद्राकाल में सूर्पनखा ने रावण को बांधी थी राखी
शास्त्रो के अनुसा भद्रा का जन्म विकृत रूप में हुआ था। भद्रा के हाथ पैर की बनावट दूसरे जीवों जैसी नहीं थी। ऐसे में सूर्यदेव को ज्यादा चिंता होने लगी। अपनी परेशानी को लेकर वे ब्रम्हा जी के पास गए। उस समय ब्रम्हा जी ने भद्रा (Bhadra Time) को आशीर्वाद दिया, कि जहां मांगलिक और शुभ कार्य होते हैं वहां तुम्हारा निवास स्थान होगा।
भद्रा पर इसलिए नहीं बांधी जाती राखी
शास्त्रों में भद्रा काल को लेकर कई उल्लेख मिलते हैं। शुभकार्य करने के पहले पंचांग में भद्रा देखी जाती है। इसके होने पर शुभकाम नहीं होते। विशेष रूप से रक्षाबंधन (Raksha Bandhan 2024 ) और होलिका दहन में भद्रा काल का विशेष ध्यान रखा जाता है।
शास्त्रों में ऐसा प्रमाण है कि रावण की बहन सूर्पनखा ने भद्राकाल में अपने भाई रावण को राखी बांधी थी। जिसके चलते उनका पूरा समूल परिवार सहित नष्ट हो गया था। ऐसे में उनका सब कुछ तबाह हो गया था। इसलिए रक्षाबंधन और होलिका दहन में भद्रा काल का विशेष ध्यान दिया जाता है।
यह भी पढ़ें: