Betwa River Crisis: मध्य प्रदेश की प्राचीन और पवित्र नदियों में से एक, बेतवा नदी, जो कभी विंध्याचल की गोद से अविरल बहती थी, आज सूख चुकी है। जिस नदी ने राजाओं के साम्राज्यों को सींचा, ऋषि-मुनियों के तप को सहेजा और अनगिनत पीढ़ियों को जल दिया, वह अब अंतिम सांसें गिन रही है।
सूख चुका है बेतवा का उद्गम स्थल
बेतवा नदी, जिसे वैदिक काल में वेत्रवती के नाम से जाना जाता था, मध्य प्रदेश के रायसेन जिले के झिरी गांव से निकलती है। सदियों तक इसे अखंड प्रवाहमान माना गया, लेकिन अब उसका उद्गम स्थल ही सूख (Betwa River Crisis) चुका है। जहां कभी जलधारा बहती थी, वहां अब सिर्फ सूखी पड़ी हुई दरारें हैं, जो लालच और अतिक्रमण की शिकार है।
इस बारे में वर्षों से इस नदी की देखभाल से जुड़े गोपाल दास महाराज बताते हैं, “बेतवा वेदों में वर्णित नदी है। इसके उद्गम पर एक बावड़ी हुआ करती थी, लेकिन अब वह भी सूख चुकी है।”
अवैध बोरिंग और खनन से दम तोड़ रही है नदी
विदिशा से रायसेन तक बेतवा के प्रवाह को अवैध बोरिंग और बालू खनन लगातार कमजोर कर रहे हैं। नदी का जलस्तर निर्माण कार्यों, जंगलों की कटाई और अवैध खुदाई के कारण तेजी से घट रहा है।
बेतवा की दुर्दशा को बघारते हुए, पर्यावरणविद् राकेश मीना कहते हैं, “बेतवा को मारने की साजिश हो रही है। अवैध बोरिंग के जरिए पानी निकाला जा रहा है, जंगल काटे जा रहे हैं और प्राकृतिक जल स्रोतों को खत्म किया जा रहा है।”
कंक्रीट की दीवारों में कैद हो गई बेतवा की आत्मा
कभी सदानीरा कही जाने वाली बेतवा अब सीमेंट की दीवारों में कैद हो गई है। आसपास के जंगल, जो इस नदी की रक्षा कवच थे, उन्हें बेरहमी से काट दिया गया है। समाजसेवी बृजेंद्र पांडेय बताते हैं, “40 साल पहले हम तब भी विरोध कर रहे थे जब भोपाल का गंदा पानी इसमें डाला गया था। हमने प्रशासन से अपील की, लेकिन कुछ नहीं हुआ। आज बेतवा खत्म हो रही है, फिर भी कोई नहीं सुन रहा।”
जंगलों की कटाई से बिगड़ रहा पारिस्थितिकी संतुलन
उद्गम स्थल के पास बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य चल रहे हैं। जंगलों को समतल कर मैदानों में बदला जा रहा है। हालांकि सामने कुछ पेड़ लगे दिखते हैं, लेकिन पीछे पूरा जंगल काटा जा चुका है। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि जल्द ही सरकार ने इस ओर ध्यान नहीं दिया, तो बेतवा नदी की मुख्य धारा कमजोर हो जाएगी और यह क्षेत्र जल संकट (Betwa River Crisis) का शिकार हो सकता है।
किसानों के खेत सूखे, जीवन संकट में
किसान, जो इस नदी पर निर्भर थे, अब खेतों में पानी के लिए तरस रहे हैं। लक्ष्मण मीना, जो एक किसान हैं, कहते हैं, “नदी का प्रवाह टूट चुका है। सरकार ने बेतवा को बेसहारा छोड़ दिया, जैसे हमें छोड़ दिया है।”
सरकारी वादे, लेकिन कार्रवाई नदारद
प्रशासन ने इस संकट को लेकर संभावित कदम उठाने की बात कही है, लेकिन जमीन पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं दिख रही। रायसेन कलेक्टर अरुण कुमार विश्वकर्मा ने बेतवा की खराब हालत को लेकर कहा, ‘रायसेन के लिए यह सौभाग्य की बात है कि बेतवा का उद्गम यहीं से होता है। यह एक आस्था का केंद्र भी है। हमने इस पर काम करने की योजना बनाई है और जल्द ही इसके परिणाम दिखाई देंगे।’
बचाने के लिए अब भी समय है, लेकिन कब तक?
नदियां एक दिन में नहीं मरतीं। वे उपेक्षा, अतिक्रमण और लालच के कारण धीरे-धीरे खत्म होती हैं। बेतवा सिर्फ एक नदी नहीं, बल्कि रायसेन, विदिशा और मध्य प्रदेश की धरोहर है। अगर समय रहते हमने इसे बचाने के लिए कदम नहीं उठाए, तो आने वाली पीढ़ियां सिर्फ सूखी नदी का इतिहास ही पढ़ेंगी। मध्य प्रदेश को सिर्फ एक नदी नहीं, बल्कि अपनी सांस्कृतिक और प्राकृतिक विरासत को बचाना है। यदि हमने आज कदम नहीं उठाए, तो कल सिर्फ पछतावा बचेगा।
बेतवा नदी के उद्गम स्थल पर संकट: सूख गई जलधारा, जंगलों की कटाई से बढ़ा खतरा CM से कार्रवाई की मांग
Betwa River Origin Crisis: भोपाल के पास बेतवा नदी के उद्गम स्थल पर बड़ा संकट खड़ा हो गया है। यहां बेतवा के उद्गम स्थल से बहने वाली जलधारा पूरी तरह से सूख गई है। इसके पीछे आसपास हो रहे पक्के निर्माण, जंगलों की कटाई और अनियंत्रित विकास कार्य जिम्मेदार बताए जा रहे हैं। स्थानीय पर्यावरणविदों और जागरूक नागरिकों ने इस मुद्दे पर चिंता जाहिर की है और नदी बचाओ अभियान की शुरुआत करने का संकल्प लिया है। पढ़ें पूरी खबर..