जगदलपुर। अंचल में हो रही लगातार बारिश के कारण तीरथगढ़ जलप्रपात का सौंदर्य निखर गया है। सैकड़ों की संख्या में हर दिन पर्यटक यहां पहुंच रहे हैं। 90 फीट की ऊंचाई से चट्टानों से टकराते हुए गिरता जल काफी आकर्षक लग रहा है।
प्रपात से अनवरत गिरता रहता है जल
कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान क्षेत्र की शोभ यह जलप्रपात बढ़ाता है। गणेश बहार नाले का जल इस प्रपात से अनवरत गिरता रहता है। पहाड़ियों और घने जंगलों के बीच इस प्रपात का सौंदर्य देखते ही बनता है। स्थानीय पर्यटकों के अलावा राष्ट्रीय उद्यान में हर साल हजारों की संख्या में लोग पहुंचते हैं और इस मनोरम दृश्य का आनंद लेते हैं।
मुहाने पर बैठे लोगों को मिल रहा रोजगार
तीरथगढ़ वॉटरफाल न केवल पर्यटकों को प्राकृतिक सौंदर्य का नजारा करवाता है, बल्कि सैकड़ों लोग इसके मुहाने पर बैठकर रोजगार कमाते हैं। यहां आने वाले सैलानियों से उनके परिवार की रोजी-रोटी चलती है। यही वजह है कि बारिश और ठंड के दिनों में इन दुकानदारों की बांछें खिली रहती हैं।
बारिश के दिनों में दिखता है मनोरम दृश्य
दूसरे प्रदेशों से यहां आने वाले लोगों के मन में भी इस प्रपात को देखने की इच्छा है। इस झरने के बारे में सुन चुके लोग यहां जाकर इसका सौंदर्य निहारने की प्लानिंग कर रहे हैं ताकि बारिश के दिन में दिखने वाले नजारे का आनंद ये भी ले सकें।
आदिवासी नहीं जाते है तीरथगढ़
लेकिन यहां बस्तर में ही आदिवासियों के पचास से अधिक परिवार हैं, जो तीरथगढ़ जाने से कतराते हैं। किसी मजबूरीवश यदि तीरथगढ़ जाना भी पड़ गया तो वहां का अन्न-जल ग्रहण नहीं करते। बस्तर, मांदलापाल, सिलकझोड़ी, कावड़गांव आदि दो दर्जन गांवों में निवासरत इन परिवारों के बड़े बुजुर्ग कभी दो सौ-ढ़ाई सौ साल पहले तीरथगढ़ के ही मूल निवासी थे।
यह है वहज तीरथगढ़ न जाने की
किन्हीं कारणों से तीरथगढ़ से पलायन कर ये परिवार निकल गए और जाते-जाते इन्होंने कसम खाई थी कि ये तीरथगढ़ का जल ग्रहण नहीं करेंगे। पूर्वजों की उस कसम का आज भी ये परिवार पालन करते हैं और इनकी कोशिश यही रहती है कि इन्हें तीरथगढ़ जाना न पड़े।
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