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Bastar News: बस्तर जिले के बड़े बोदल गांव में आज भी विकास के काम कोसों दूर

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Bansal news
Bastar News: बस्तर जिले के बड़े बोदल गांव में आज भी विकास के काम कोसों दूर

बस्तर। पंचायती राज की असली तस्वीर देखना है तो बस्तर जिले के बड़े बोदल गांव आइए। यहां की पंचायत काँग्रेस-भाजपा में जरूर बंटी है, लेकिन विकास के मुद्दे पर कहीं कोई राजनीतिक विवाद नजर नहीं आता, क्योंकि सभी जनप्रतिनिधि मिलकर निर्णय ले काम करते हैं। फिर भी गांव के लोग मूलभूत सुविधाओं के लिए मोहताज हैं।

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पंचायत में फंड का अभाव

सरपंच बड़ी मासूमियत से स्वीकार करते हैं कि विकास कार्य न होने की वजह फंड का अभाव है। उन्होंने कहा पर मैं अपेक्षा के अनुरूप काम नहीं कर पाया। जिसका मुझे खेद है। काश पूरे प्रदेश में ऐसा हो सकता। बड़े बोदल के सरपंच खुद को भाजपा समर्थित बताते हैं। जबकि अधिकतर पंच कांग्रेस समर्थित हैं। बावजूद पंचायत में कभी को राजनैतिक विवाद नहीं हुआ।

मूलभूत सुविधाओं का अभाव

नल-जल, सड़क, पुलिया निर्माण के लिए कई बार पत्र लिखकर दिए जाने के बावजूद अब तक काम पूरा नहीं हो पाया। सरपंच विकास के लिए प्रयासरत हैं, लेकिन अब तक उनके प्रयासों को प्रतिफल नहीं मिल सका। इसलिए उच्चाधिकारियों सहित सभी जिम्मेदार जनप्रतिनिधियों को लिखकर आवेदन दिया गया हैं। अब विकास की बयार बहने की आस बोदल के लोग लगाकर बैठे हैं।

ग्राम पंचायत ने किया प्रस्ताव पास

गांव में पंचायत भवन अधूरा, सड़क अधूरी और  नल-जल योजना अधूरी है। तत्काल कार्रवाई की उम्मीद में ग्राम पंचायत ने प्रस्ताव पास कर आगे भिजवाया है। 4 साल बीत जाने के बावजूद नल-जल योजना अधूरी पड़ी है, जिसकी वजह से ग्रामीणों को हैंडपंप का पानी पीना पड़ रहा है। स्ट्रीट लाइट लगी पर सिर्फ 5 खंबों में रौशनी है। गांव वालों की अपेक्षा है कि पंचायत के काम ढंग से होने चाहिए, इसमें यदि लापरवाही है तो जांच हो जानी चाहिए।

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ग्रामीणों ने की जांच की मांग

विकास की ललक और तड़प ऐसी कि जनपद कार्यालय जाकर विकास के स्वीकृत हुए कामों की लिस्ट गांव वालों ने निकाली और फिर गांव के लोग जिम्मेदारों के दरवाजे पर पहुंचे। सरपंच कहते हैं कि फंड के अभाव में काम रुके हुए हैं। इसी बात पर शंका जता रहे ग्रामीण पूरे मामले की जांच की मांग कर रहे हैं।

बोदल नक्सलियों के प्रभाव वाला गांव था

दरअसल 6-7 साल पहले तक बड़े बोदल नक्सलियों के प्रभाव वाला गांव था। अब माओवादियों का आतंक थमा है तो गांव वालों में विकास की चाह दिख रही है। वे चाहते हैं कि दूसरी विकसित पंचायतों की तरह ही उनके गांव को भी बेहतर पहचान मिले। शासन-प्रशासन यदि थोड़ा धक्का दे दे तो बड़े बोदल पंचायत के विकास की गाड़ी सरपट दौड़ती दिखाई दे सकती है। शायद यही बदलते बस्तर की झलक है।

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