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Bastar News: दशहरा के लिए वनों की कटाई, संरक्षण के लिए लिखा पत्र, पढ़ें पूरी रिपोर्ट

Bastar News: क्या आने वाले वर्षों में विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा के रथ निर्माण के लिए लगने वाली लकड़ी का टोटा हो जाएगा।

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Bansal News
Bastar News: दशहरा के लिए वनों की कटाई, संरक्षण के लिए लिखा पत्र, पढ़ें पूरी रिपोर्ट

Bastar News: क्या आने वाले वर्षों में विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा के रथ निर्माण के लिए लगने वाली लकड़ी का टोटा हो जाएगा। बदलते समय में एक सच्चाई यह भी है कि बस्तर में वन लगातार सिमटते जा रहे हैं, जिसके अनेक कारण हैं।

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सदियों से मना रहे पर्व

अब एक बड़ा सवाल उठता है कि क्या वास्तव में ऐसा है या फिर पत्र किसी के दबाव में लिखा गया है, क्योंकि दशहरा पर्व विशुद्ध रूप से बस्तर की आराध्य और जन-जन की देवी मांई दन्तेश्वरी की पूजा-अर्चना का पर्व है, जिसमें सदियों से लोग न केवल स्वस्फूर्त शामिल होते हैं, बल्कि उनके क्षेत्र को सौंपी गई जिम्मेदारियों को सहर्ष-बेहिचक पूरा भी करते हैं।

दरभा नक्सल प्रभावित इलाका है और नक्सली हमेशा इस ताक में रहते हैं कि ग्रामीणों को ऐसे आयोजन से दूर रखा जाए ताकि उनका आपसी सामंजस्य और एकता न बढ़े, लेकिन फिलहाल ये केवल और केवल कयास ही है, जब तक पत्र की जांच न हो और सच्चाई सामने न आ जाए।

लकड़ियां समाप्ति की ओर

यदि दरभा, ककालगुर और छिंदावाड़ा की वन अधिकार समिति, ग्राम पंचायत द्वारा विधायक को लिखे पत्र का अवलोकन करें तो उसमें स्पष्ट उल्लेख है कि इलाके के जंगल में लकड़ियां प्रायः समाप्ति की ओर हैं। अतः इनके संरक्षण के लिए जरूरी है कि दशहरे के रथ निर्माण के लिए लकड़ी कुरन्दी, पुलचा और तिरिया के जंगल से लाई जाए।

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जिन पर वनों की सुरक्षा की जवाबदारी है, उनने कभी इसे गम्भीरता से नहीं लिया पर हक जरूर जताया। लिहाजा अब यह बेहद जरूरी हो गया है कि आवेदन की जांच हो ताकि सच्चाई उजागर हो।

हरियाली का महत्व समझना होगा

साथ ही ग्रामीणों के इस सवाल पर नए पौधों के रोपण की दिशा में भी प्रयास होने चाहिए ताकि बस्तर में घटते वनों के रकबे को पहले की तरह घना किया जा सके।

अब चाहे किसी के दबाव में ही यह पत्र लिखा गया हो, लेकिन एक बात को स्पष्ट है कि पिछड़े, अनपढ़ कहे जाने वाले बस्तर के आदिवासियों को भी जंगलों का महत्व अब समझ में आने लगा है।

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पढ़े-लिखे और तथाकथित सभ्य समाज को भी हरियाली का महत्व समझना होगा, खासकर जिम्मेदारों को ताकि आने वाली पीढ़ी के लिए सांसें कम न पड़ें।

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