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Bastar Dussehra 2023: बस्तर दशहरे में रस्‍मों की परंपरा, 75 दिनों में निभाते हैं 12 से अधिक अनोखी रस्‍में

बस्तर का दशहरा पर्व सिर्फ छत्तीसगढ़ में ही नहीं बल्कि पूरे देश में प्रसिद्ध है।इस दशहरे को 75 दिनों तक मनाया जाता है।

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Bansal News
Bastar Dussehra 2023: बस्तर दशहरे में रस्‍मों की परंपरा, 75 दिनों में निभाते हैं 12 से अधिक अनोखी रस्‍में

Bastar Dussehra 2023: विश्व प्रसिद्ध ऐतिहासिक बस्तर दशहरा पर्व का आगाज हो चुका है। इस पर्व की खास बात ये है कि असुरों की नगरी रहे बस्तर में रावण का पुतला दहन नहीं करते हैं। साथ ही 75 दिनों तक चलने वाले इस दशहरे में 12 से अधिक अनोखी रस्मों को निभाया जाता है।

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यही कारण है कि विश्व प्रसिद्ध ऐतिहासिक बस्तर दशहरा पर्व को करीब से दिखते के लिए हर साल देश- विदेश के लोग हजारों की संख्‍या में बस्‍तर पहुंचते हें। ये हैं बस्तर दशहरा की मुख्‍य रस्‍में।

1. पाठजात्रा रस्‍म

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बस्तर दशहरे की पहली रस्म पाठजात्रा है। जिसे हरियाली अमावस्या के दिन निभाते हैं। जिसके बाद दशहरा पर्व का शुभारंभ हो जाता है।

बता दें कि इस रस्म में बिरिंगपाल गांव से रथ निर्माण के लिए पहली लकड़ी लाने की परंपरा है। जिसे ठुरलू खोटला कहा जाता है।

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2. डेरी गढ़ई पूजा

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यह रस्‍म बस्तर दशहरा की दूसरी महत्‍वपूर्व रस्‍म है। परंपराओं के अनुसार इसी रस्म के बाद रथ निर्माण का कार्य शुरू हो जाता है। साथ ही इस रस्‍म में अंडे और जीवित मछली की बलि दी जाती है।

3. काछनगादी पूजा

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बस्‍तर दशहरे की तीसरी मुख्‍य रस्‍म काछनगादी पूजा है। इसमें एक नाबालिक कुंवारी कन्या कांटों के झूले पर लेटकर दशहरे पर्व को आरंभ करने की अनुमति देती है। कहा जाता है कि इस कन्या के अंदर साक्षात देवी आकर अनुमति देती है।

4. जोगी बिठाई पूजा विधान

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बस्तर दशहरे की यह चौथी महत्‍वपूर्ण रस्‍म है, जिसे जगदलपुर के सिरहासार भवन में विधि-विधान के साथ निभाया जाता है। इस रस्म में एक विशेष जाति का युवक हर साल 9 दिन तक निर्जल उपवास कर तपस्या करता है।

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5. रथ परिक्रमा पूजा विधान

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बस्तर दशहरा की पांचबी महत्‍वपूर्ण रस्‍म रथ परिक्रमा पूजा होती है। इस रस्‍म में पारंपरिक तरीके से बनाए गए लकड़ियों के 30 फीट ऊंचे रथ पर मां दंतेश्वरी देवी को सवार कर शहर का भ्रमण कराते हैं। इस रथ का निर्माण 14 दिन में विशेष वर्ग बेड़ाउमरगांव, झाड़उमरगांव के लोग करते हैं।

6. बेल पूजा

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बस्तर दशहरे में बेल पूजा की रस्‍म का भी विधान है। यह रस्म जगदलपुर के सरगीपाल गांव में बेल चबूतरे पर राज परिवार पूजा अर्चना करके निभाते हैं।

कहा जाता है है राजा और रानी जब भी इस क्षेत्र में शिकार करने जाते थे, तब यहां से चीजें अदृश्य हो जाती थी। लोगों कहा मानना है क हर साल केवल एक ही ऐसा दिन होता है, जब एक पेड़ पर एक साथ दो बेल जोड़े के रूप में दिखाई देते हैं।

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7. निशा जात्रा पूजा

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निशा जात्रा पूजा बस्तर दशहरे की अद्भुत रस्‍म है, जिसे काले जादू के नाम से भी जाना जाता है। मान्‍यजा है कि बस्‍तर के राजा प्रेत आत्माओं से अपने रात्य की रक्षा के लिए से हजारों बकरों, बैल के अलावा नर की बलि देकर निभते थे। लेकिन अब इसे 11 बकरों की बलि देकर निभाया जाता है।

8. मावली परघाव

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बस्तर दशहरे की अठवीं और महत्‍वपर्ण रस्‍म मावली परघाव है। इस रस्‍म को दंतेश्वरी मंदिर के परिसर में अदा किया जाता है। नवरात्रि के नवमी में मनाए जाने वाली इस रस्म को देखने के लिए लिए बड़ी संख्या में लोगों की भीड़ उमड़ती है।

9. भीतर रैनी

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भीतर रैनी बस्तर दशहरे की नौंवी रस्‍म है, जिसे विजयदशमी के दिन अदा किया जाता है, इस दिने पूरे देश में रावन का पुतला दहन किया करते हैं, लेकन शांति अहिंसा और सद्भाव का प्रतीक बस्‍तर में रावन का पुतला दहन नहीं किया जाता है, मान्‍यता है कि इस बस्तर कभी असुरों की नगरी हुआ करता था।

10. डोली विदाई

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डोली विदाई बस्तर दशहरा की सबसे महत्‍वपूर्ण और अंतिम रस्‍म है, जो जिया डेरा से दंतेवाड़ा के लिए विदाई देकर अदा की जाती है। इस परंपरा में विदाई से पहले डोली और छत्र को दंतेश्वरी मंदिर के सामने बने मंच पर महाआरती की जाती है और ऐतिहासिक बस्तर दशहरा पर्व का समापन हो जाता है।

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