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Basant Panchami 2021: भोजशाला परिसर की कहानी, जिस पर हिंदू और मुस्लिम दोनों करते हैं अपना दावा

Basant Panchami 2021: भोजशाला परिसर की कहानी, जिस पर हिंदू और मुस्लिम दोनों करते हैं अपना दावाBasant Panchami 2021: The story of Bhojshala complex, which both Hindus and Muslims claim

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Bansal Digital Desk
Basant Panchami 2021: भोजशाला परिसर की कहानी, जिस पर हिंदू और मुस्लिम दोनों करते हैं अपना दावा

Image source- @KshatriyaItihas

भोपाल। वसंत पंचमी के मौके पर मध्य प्रेदश के धार में हर साल भोजशाला परिसर को लेकर विवाद शरू हो जाता है। प्रशासन के तरफ से पूरे परिसर को एक छावनी में तब्दिल करना पड़ता है। इस साल भी सुरक्षा की दृष्टि से पुलिस ने यहां कड़े इंतजाम किए थे। पूरे परिसर के करीब 100 मीटर के दायरे को बैरिकेड किया गया था। तो वहीं 400 से 500 पुलिसकर्मियों को यहां सुरक्षा में तैनात किया गया था। लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि आखिर ये विवाद होता क्यों है और इसके पीछे की कहानी क्या है।

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इस कारण से हो जाता है विवाद
यह विवाद सदियों से चला आ रहा है। मुस्लिम जहां इसे मस्जिद मानते हैं, तो वहीं हिंदू इसे भोजशाला सरस्वती मंदिर। आम दिनों की बात करें तो भोजशाला में सभी लोग आ सकते हैं। यहां मंगलवार को हिंदु पुजा पाठ करते हैं तो वहीं शुक्रवार को मुस्लिम नमाज़ अदा करते हैं। लेकिन विवाद तब खड़ा होता है जब शुक्रवार को ही वसंत पंचमी का त्योहार पड़ जाता है। हिंदु पक्ष यहां हवन करने के लिए पहुंचते हैं तो दोपहर में मुस्लिम समाज के लोग नमाज़ अदा करने के लिए पहुंच जाते हैं इस कारण से यहां विवाद हो जाता है।

इतिहास में झांकने पर
वहीं अगर इस जगह के इतिहास की बात करें तो धार में परमार वंश के राजा भोज ने 1010 से 1055 ईसवीं तक शासन किया था। उन्होंने अपने शासन के दौरान ही यहां 1034 ईसवीं में सरस्वती सदन की स्थापना की थी। उस दौरान यह एक महाविद्यालय था, जिसे लोग बाद में भोजशाला के नाम से जानने लगे। राजा भोज ने अपने शासन में ही यहां मां सरस्वती जिसे वहां के लोग वाग्देवी भी कहते हैं। उनकी प्रतिमा भी स्थापित करवाई थी।

लेकिन 1305 से 1401 ईसवीं के दौरान यहां अलाउद्दीन खिलजी और दिलावर खां गौरी की सेना ने आक्रमण किया और 1401 से लेकर 1531ईसवीं तक मालवा में स्वतंत्र सल्तनत की स्थापना की गई। कहा जाता है कि इसी शासनकाल के दौरान 1456 में भोजपाल परिसर में महमूद खिलजी ने मौलाना कमालुद्दीन के मकबरे और दरगाह का निर्माण करवाया।

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खुदाई में मिली थी वाग्देवी की प्रतिमा
भोजशाला परिसर को लेकर दोनों पक्ष अपने-अपने दावे करते हैं। हिंदु जहां इसे सरस्वती मंदिर मानते हैं वहीं मुस्लिम कहते हैं कि हम यहां सालों से नामाज पढ़ते आ रहे हैं। यह जामा मस्जिद है, जिसे भोजशाला-कमाल मौलाना मस्जिद कहते हैं। हालांकि 1875 में जब भोजशाला के समीप जब खुदाई की गई थी तो वहां से मां वाग्देवी की एक प्रतिमा मिली थी। जिसे 1880 में भोपावर का पॉलिटिकल एजेंट मेजर किनकेड, अपने साथ लंदन ले कर चला गया था। कई बार इस स्थान को लेकर विवाद हुए और आज यह आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के पास है।

कब-कब हुए विवाद
हालांकि मंदिर और मस्जिद को लेकर यहां विवाद तो सदियों से चला आ रहा है। लेकिन हाल के कुछ सालों में अगर देखे तो विवाद यहां ज्यादा बढ़ा है।

1. साल 1995, मामूली विवाद हुआ। इसके बाद प्रशासन ने मंगलवार को पूजा और शुक्रवार को नमाज पढ़ने की अनुमति दी।

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2. 12 मई 1997 में धार के कलेक्टर ने भोजशाला में आम लोगों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया। साथ ही मंगलवार की पूजा भी रोक दी गई। बस हिन्दुओं को बसंत पंचमी पर पूजा करने की इजाजत दी गई। वहीं मुसलमानों को शुक्रवार के दिन 1 से 3 बजे तक नमाज पढ़ने की अनुमति दी गई। ये प्रतिबंध 31 जुलाई 1997 तक जारी रहा।

3. इस बार 6 फरवरी 1998 को पुरातत्व विभाग ने आगामी आदेश तक प्रवेश पर रोक लगा दिया।

4. 2003 में हिंदुओं को फिर से मंगलवार को पूजा करने की अनुमती दी गई और एक शर्त भी लगाया गया जिसमें कहा गया कि बिना फूल-माला के हिंदु यहां पूजा कर सकेंगे। साथ ही पर्यटकों के लिए भी भोजशाला को खोल दिया गया।

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5. 18 फरवरी 2003 को भोजशाला परिसर में सांप्रदायिक तनाव के बाद हिंसा फैली और पूरे शहर में दंगा हो गया। तब राज्य में कांग्रेस की सरकार थी और केंद्र में भाजपा की। केंद्र सरकार ने उस समय तीन सांसदों की एक कमेटी बनाकर दंगे की जांच कराई थी।

6. 2013 में बसंत पंचमी और शुक्रवार एक दिन पड़ जाने के कारण भी धार में माहौल बिगड़ गया था।

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