हाइलाइट्स
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किडनी में कैंसर होने पर भी बचाई मरीज की किडनी
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31 साल के युवा मरीज का ट्यूमर निकालकर बचाई किडनी
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दूसरे अस्पतालों में मिली थी किडनी निकालने की सलाह
Bansal Hospital Kidney Treatment: भोपाल के बंसल हॉस्पिटल में किडनी ट्रांसप्लांट सर्जन की टीम ने एक जटिल ऑपरेशन कर युवा मरीज की किडनी से बड़े आकार का कैंसर ट्यूमर निकालकर किडनी को पूरी तरह सुरक्षित बचाने में सफलता अर्जित की है। उत्तर प्रदेश के ललितपुर निवासी मरीज को दूसरे बड़े अस्पतालों में ट्यूमर से ग्रसित किडनी पूरी तरह निकलवाने की सलाह दी गई थी। लेकिन बंसल हॉस्पिटल के नेफ्रोलॉजी डिपार्टमेंट के डॉक्टरों ने मरीज की युवा अवस्था को देखते हुए किडनी से बड़ा ट्यूमर निकालने के लिए जटिल सर्जरी करने की चुनौती ली और वे मरीज की किडनी बचाने में कामयाब रहे। वह भी मुंबई-दिल्ली के बड़े कॉर्पोरेट अस्पताल की तुलना में आधे खर्च में।
सिर्फ 30 मिनट में सर्जरी करने की चुनौती
किडनी का ये ऑपरेशन इस मायने में जटिल था कि पीड़ित बैंक कर्मी युवक की एक किडनी में ट्यूमर का आकार बढ़कर 5.5 सेंटीमीटर हो गया था। युवक की कम उम्र (31 साल) और आगे के जीवन को देखते हुए किडनी बचाने के लिए आवश्यक जटिल सर्जरी सिर्फ 30 मिनट की समय सीमा में पूरी करना जरूरी था। इसलिए कि ट्यूमर निकालने के लिए किडनी को खून की सप्लाई रोकनी पड़ती है।
बढ़ जाता है किडनी खराब होने का जोखिम
खून की सप्लाई आधा घंटे से ज्यादा रोकने पर किडनी खराब होने का जोखिम बढ़ जाता है। इस जटिल सर्जरी को अंजाम देने वाले बंसल हॉस्पिटल के किडनी ट्रांसप्लांट सर्जन डॉ. संतोष अग्रवाल स्पष्ट करते हैं कि मरीज की किडनी बचाने के लिए इसे खोलकर ट्यूमर काटकर बाहर निकालने और किडनी को सुरक्षित बंद करने की प्रक्रिया अधिकतम आधे घंटे में करनी पड़ी। बंसल हॉस्पिटल में इस जटिल लेकिन सफल ऑपरेशन को अंजाम देने वाली टीम में डॉ. मानव गिडियन (यूरोलॉजिस्ट) और एनेस्थीसिया टीम में डॉ. हरभजन सिंह सैनी एवं डॉ. अभिनव सराफ की भी विशेष भूमिका रही।
जानें वो सब जो जानना जरूरी है
अब आप सवाल-जवाब के फॉर्मेट में समझिए कि किडनी से बड़े आकार का ट्यूमर निकालने और किडनी को सुरक्षित बचाने की यह सर्जरी कितनी जटिल और चुनौतीपूर्ण थी। मरीज को अस्पताल से डिस्चार्ज होने, सामान्य रूप से कामकाज करने में कितने दिन लगे। सर्जरी और इलाज में कितना खर्च आया। किडनी में पनपने वाले ट्यूमर की पहचान जल्द और किन लक्षणों के आधार पर की जा सकती है। किडनी को दुरुस्त रखने के लिए क्या और कैसी सावधानियां रखनी जरूरी हैं।
सवाल – मरीज को दूसरे अस्पतालों में किडनी निकलवाने की सलाह दी गई थी, आपने कैसे बचाई ?
जवाब – आमतौर पर किडनी में ट्यूमर/कैंसर के मरीज एडवांस स्टेज में ही अस्पताल पहुंचते हैं। इसका बड़ा कारण यह है कि कैंसर ट्यूमर बड़ा होने पर या कैंसर बढ़ जाने पर ही लक्षण सामने आना शुरू होते हैं। पहले मेडिकल साइंस में ट्यूमर का आकार बड़ा होने पर पूरी किडनी निकालने की सलाह दी जाती थी। ललितपुर निवासी युवा बैंक कर्मी की किडनी में भी ट्यूमर का साइज बड़ा (5.5 सेंटीमीटर) था। इसलिए दूसरे अस्पतालों में उसे किडनी निकलवाने की सलाह दी गई थी। ये मरीज जब बंसल अस्पताल में जांच और सलाह लेने के लिए आया तो हमें सीटी स्कैन करने पर यह संभावना दिखी कि ट्यूमर को हटाते हुए मरीज की किडनी बचाई जा सकती है। इसके बाद लैप्रोस्कोपिक पार्शियल नेफ्रेक्टॉमी करने की योजना बनाई गई।
सवाल – मरीज को कैंसर ट्यूमर होने पर भी किडनी बचाई जा सकती है ?
जवाब – जी हां, बचाई जा सकती है। लेकिन इसके लिए अस्पताल में ऐसी सर्जरी करने का पर्याप्त अनुभव रखने वाले विशेषज्ञ डॉक्टर, सर्जन और आधुनिक उपकरण होना बेहद जरूरी है। कारण यह है कि बड़े ट्यूमर खून की नसों के ज्यादा करीब होते हैं। इसलिए इन्हें कम समय में बेहद सावधानीपूर्ण काटकर निकालना पड़ता है किडनी को कोई नुकसान पहुंचाए बगैर। बंसल हॉस्पिटल में इसके लिए अनुभवी डॉक्टर्स की टीम के साथ ऐसी जटिल सर्जरी के लिए एडवांस 3D लेप्रोस्कोपिक सिस्टम, रुबीना 4K सिस्टम और थंडर बीट जैसी लेटेस्ट एनर्जी डिवाइस उपलब्ध हैं। इनकी मदद से ही हम युवा मरीज की किडनी बचाने में सफल रहे। हमने उसकी किडनी की पूरी 3D मैपिंग की, सावधानी से यह देखा कि कहां-कहां से ब्लड सप्लाई हो रही है, कैसे ट्यूमर को काटकर अलग करेंगे और किडनी को कैसे सुरक्षित करेंगे।
सवाल – किडनी बचाने का ऑपरेशन कम समय में क्यों करना होता है ?
जवाब – किडनी में ट्यूमर के मामले में किडनी निकालना आसान होता है लेकिन उसे बचाने का ऑपरेशन मुश्किल होता है। कारण यह है कि ऐसी सर्जरी में किडनी की ब्लड सप्लाई बंद करनी पड़ती है। किडनी में खून की सप्लाई आधे घंटे से ज्यादा रोकने पर किडनी खराब होने का जोखिम बढ़ जाता है। इसलिए पूरी सर्जरी अधिकतम आधा घंटे में करनी होती है ताकि किडनी को कोई नुकसान न पहुंचे।
सवाल – सर्जरी के बाद मरीज कितने दिन में ठीक हो जाता है ?
जवाब – ऑपरेशन के 3 दिन बाद ही मरीज को अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया था। घर में 15 दिन बाद ही उसने अपनी सामान्य दिनचर्या शुरू कर दी थी। दरअसल, लेप्रोस्कोपिक सर्जरी में मरीज के शरीर में लंबी चीरफाड़ की जरूरत नहीं पड़ती। किडनी तक उपकरणों की पहुंच बनाने के लिए 4-5 छोटे-छोटे होल किए जाते हैं। ट्यूमर को शरीर से बाहर निकालने के लिए सिर्फ एक छोटा-सा चीरा लगाने की जरूरत पड़ती है।
सवाल – किडनी की ऐसी सर्जरी में कितना खर्च आता है ?
जवाब – बंसल हॉस्पिटल में मरीज की जांचों और सर्जरी के बाद प्राइवेट वार्ड में रखने के बाद भी कुल ढाई लाख रुपए का खर्च आया है। ऐसी ही सर्जरी नई दिल्ली या मुंबई के किसी बड़े कॉर्पोरेट हॉस्पिटल में कराने पर खर्च दोगुना यानी 5 लाख रुपए तक आता है। दरअसल, किडनी निकालने के बजाय उसे बचाने की सर्जरी का खर्च ज्यादा होता है। चूंकि इसमें ज्यादा महंगे उपकरणों और चिकित्सा सामग्री का उपयोग किया जाता है।
सवाल – किडनी में दोबारा ट्यूमर होने की कितनी संभावना होती है ?
जवाब – किडनी से एक बार ट्यूमर निकालने के बाद उसमें दोबारा ट्यूमर पनपने की संभावना महज 0.5 से 1.0 फीसदी होती है। हम ऑपरेशन होने के बाद सभी मरीज को 3 महीने तक रेगुलर फॉलोअप चेकअप कराने को कहते हैं। इसके अलावा हर 6 महीने में सीटी स्कैन कर यह देखते हैं कि कहीं कोई नया ट्यूमर तो विकसित नहीं हो रहा है।
सवाल – किडनी में ट्यूमर का जल्द पता लगाना संभव है ?
जवाब – किडनी में ट्यूमर की प्रारंभिक अवस्था में कोई लक्षण सामने नहीं आते, लेकिन जब ट्यूमर का साइज (3-4 सेमी से ज्यादा) बढ़ता है तो मरीज को पेट दर्द या यूरीन में खून आने लगता है।
पहले इस तरह के लक्षण होने पर जनरल फिजिशियन मरीज को दवाएं लिख देते थे लेकिन अब सोनोग्राफी जांच भी कराई जाने लगी है। यह ट्यूमर का पता लगाने के लिए जरूरी होती है। इससे पता लग जाता है कि ट्यूमर है या नहीं और यदि है तो वो कितने आकार का है। अपनी सेहत को लेकर जागरूक रहने वाले ऐसे लोग जो अपना रुटीन हेल्थ चेकअप कराते रहते हैं, उन्हें ट्यूमर की शिकायत होने पर वो जल्द पकड़ में आ जाता है।
सवाल – किन लोगों को ज्यादा सावधान रहने की जरूरत है ?
जवाब – ट्यूमर के प्रति ऐसे लोगों को जागरूक और ज्यादा सावधान रहने की जरूरत है जिनकी फैमिली (ब्लड रिलेशन) में किसी को कैंसर हुआ हो। आमतौर पर किडनी में ट्यूमर बढ़ने के लक्षण 45-50 साल की उम्र के बाद ही सामने आना शुरू होते हैं। ऐसे लोगों के 40-50 साल की उम्र के बाद साल में एक बार सोनोग्राफी जरूर करानी चाहिए।