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दर्दभरी कहानी : दिल्ली में अपनी पहचान छुपाकर रह चुकी है बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना

दर्दभरी कहानी : दिल्ली में अपनी पहचान छुपाकर रह चुकी है बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना Bangladesh Prime Minister Sheikh Hasina has been hiding her identity in Delhi vkj

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deepak
दर्दभरी कहानी : दिल्ली में अपनी पहचान छुपाकर रह चुकी है बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना

किसी महिला के परिवार के 18 सदस्यों की हत्या कर दी गई हो, तो सोचों की उसपर क्या बीती होगी। यह सोचना भी मुश्किल है। अगर सोचा भी जाए तो रूह कांप उठे। हम बात कर रहें है। बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना (Bangladesh PM Sheikh Hasina) के परिवार की। जब बांग्लादेश नया-नया आजाद हुआ था, तब देश के फादर ऑफ नेशन कहे जाने वाले शेख मुजीबुर्रहमान की हत्या कर दी गई थी। इतना ही नहीं उनकी दो बेटियों को भी मौत के घाट उतार दिया गया। परिवार के कुल 18 सदस्यों की हत्या कर दी गई, बची सिर्फ शेख हसीना, जो देश की वर्तमान में प्रधानमंत्री (Bangladesh PM Sheikh Hasina) है।

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क्या है शेख हसीना की दर्दभरी कहानी

बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना (Bangladesh PM Sheikh Hasina)आज भारत की धरा पर है। आज वह भारत के दौरे पर पहुंची है। शेख हसीना (Bangladesh PM Sheikh Hasina) का विमान जब भारत के गगन में पहुंचा होगा तो उन्हें वो दौर जरूर याद आया होगा जब उन्होंने गुप्त तरीके से भारत में अपनी पहचान छुपाकर रहीं थी। आज भले ही शेख हसीना कड़ी सुरक्षा के बीच भारत के चार दिनों के दौरे पर आई है। लेकिन एक दौर था जब उनकी जान खतरे में थी। न कोई सुरक्षा, न कोई पहचान वाला, जान खतरे में, कब कोई उन्हें मौत के घाट उतार जाए। दिल्ली एयरपोर्ट पर जब वह पहुंची थी तब उन्हें बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था की वह अपने देश कब लौटेंगी।

पिता की तस्वीर वाले प्लेन से भारत के लिए उड़ान भरने से पहले ANI को दिए इंटरव्यू में उन्होंने 1971 की जंग में भारत के योगदान को तो याद किया ही, उस खौफनाक घटना का भी जिक्र किया जब पिता समेत परिवार के सभी सदस्यों की हत्या के बाद उन्हें भारत ने शरण दी थी। आप शायद नहीं जानते होंगे की बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना (Bangladesh PM Sheikh Hasina) के पिता की हत्या के बाद भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हें दिल्ली में शरण दी थी।

हसीना की खतरे में थी जान

1971 में भारत की मदद से बांग्लादेश का जन्म हुआ था। शेख हसीना (Bangladesh PM Sheikh Hasina) बताती हैं कि केवल 15 दिन पहले मैं और मेरी बहन ने देश छोड़ा था। मैं अपने पति के पास जर्मनी गई। वह एक न्यूक्लियर साइंटिस्ट थे। मैं अपने पिता से आखिरी बार 30 जुलाई को मिली थी। 15 अगस्त को सुबह हमें खबर मिली जिस पर हम यकीन नहीं कर पा रहे थे। पता चला कि तख्तापलट हुआ है और फिर हमने सुना कि मेरे पिता की हत्या कर दी गई। लेकिन हम नहीं जानते थे कि परिवार के सभी सदस्यों को भी मार दिया गया। उस समय इंदिरा गाधी ने फौरन मेरे पास खबर भिजवाई कि वह मुझे सुरक्षा और शरण देना चाहती है। मेरे पास इंदिरा गांधी और यूगोस्लाविया से मार्शल टीटो का संदेश आया था। मैंने दिल्ली जाने का फैसला किया क्योंकि वहां से मैं अपने देश जा सकती थी। जर्मनी में राजदूत हुमायू राशिद चौधरी ने मुझे मेरे परिवार के बारे में बताया। उस समय डर था कि जिन लोगों ने मेरे माता-पिता की हत्या की है, वे मुझे भी टारगेट कर सकते हैं। उनके परिवार में वह और उनकी बहन शेख रिहाना ही बचे थे।

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पहचान छुपाने के मजबूर हुई हसीना

भारतीय अधिकारियों ने हसीना (Bangladesh PM Sheikh Hasina) को जर्मनी से दिल्ली लाने का काम गुप्त तरीके से किया। 24 अगस्त की दोपहर में शेख हसीना (Bangladesh PM Sheikh Hasina) ने फ्रैंकफर्ट छोड़ा और 25 अगस्त को तड़के दिल्ली पहुंचीं। इसके बाद वह साढ़े छह साल तक दिल्ली में रहीं। दिल्ली में उनके रहने के दौरान इंदिरा गांधी ने एक मां की तरह उनकी देखभाल की। उन्हें 56 रिंग रोड पर एक सेफ हाउस में रखा गया। बाद में उन्हें डिफेंस कॉलोनी के एक घर में शिफ्ट किया गया। यहां उनके लिए तीन रूल बनाए गए। पहला, उन्हें घर से बाहर नहीं निकलना होगा। दूसरा, उन्हें किसी को भी अपनी असली पहचान नहीं बतानी है और तीसरा, दिल्ली में किसी के भी साथ संपर्क में न रहें। शेख हसीना (Bangladesh PM Sheikh Hasina) और उनके पति को मिस्टर और मिसेज मजूमदार बनकर ठहराया गया। कुछ दिन बाद शेख हसीना (Bangladesh PM Sheikh Hasina) को सी ब्लॉक, पंडारा पार्क के एक फ्लैट में ठहराया गया। उस फ्लैट में एक ब्लैक एंड वाइट टीवी थी। उस समय टीवी पर दूरदर्शन का प्रसारण केवल दो घंटे होता था। टेलिफोन कनेक्शन नहीं दिया गया था। सुरक्षा इतनी कड़ी थी कि घर के चारों तरफ सुरक्षाकर्मियों के को तैनात किया गया था। शेख हसीना (Bangladesh PM Sheikh Hasina) के पति वाजिद मिया वेस्ट जर्मनी से दिल्ली आ चुके थे। उन्हें नई दिल्ली स्थित परमाणु ऊर्जा आयोग में नौकरी मिली गई और उन्होंने 1982 तक काम किया।

प्रणब दा ने निभाई अभिभावक की भूमिका

कम ही लोगों को पता होगा कि शेख हसीना (Bangladesh PM Sheikh Hasina) के अभिभावक की भूमिका पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने निभाई थी। जब हसीना (Bangladesh PM Sheikh Hasina) दिल्ली आईं तो प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने प्रणब मुखर्जी को यह जिम्मेदारी सौंपी थी कि वह अब से दिल्ली में शेख हसीना (Bangladesh PM Sheikh Hasina) के अभिभावक होंगे। प्रणब दा शेख हसीना को अपनी सबसे बड़ी बेटी के तौर पर मानते थे। हसीना के बेटे जॉय और प्रणब के बेटे अभिजीत में अच्छी दोस्ती थी। शेख हसीना (Bangladesh PM Sheikh Hasina) प्रणब दा की पत्नी के भी बेहद करीब थीं। जब 2015 में उनका निधन हुआ तो वह प्रोटोकॉल की परवाह किए बगैर दिल्ली के लिए रवाना हो गई थीं।

सुरक्षित देश लौटी हसीना

17 मई 1981 को छह साल से ज्यादा देश से बाहर रहने के बाद शेख हसीना (Bangladesh PM Sheikh Hasina) स्वदेश लौट सकीं। उनके लिए वो समय काफी दर्दनाक था। पूरा परिवार उजड़ चुका था। बांग्लादेश की आवाम उन्हें अध्यक्ष घोषित कर चुकी थी। इसके बाद वह बांग्लादेश की प्रधानमंत्री बनीं। ऐसी है शेख हसीना (Bangladesh PM Sheikh Hasina) की दर्दभरी कहानी...

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