दिलजीत सिंह मान, रतलाम। ककड़ी की जितनी भी प्रजाति है उनमें मालवा की बालम ककड़ी की बात ही अलग है … ऊपर से हरी और अंदर से केसरिया कलर की निकलने वाली बालम ककड़ी इन दिनों शहर के मार्केट में खूब उपलब्ध है। साल के इन्हीं दिनों में बालम ककड़ी की आवक होती है । बेचने वालों का कहना है कि इस बार 15 दिन बालम ककड़ी लेट आई है । हालांकि बालम ककड़ी अधिक समय तक मिलती भी नहीं है। पूरे साल में 1 महीने ही उपलब्ध रहती है जिस में अब कुल जमा 15 दिनों तक ही इसकी उपलब्धता रहती है। हालांकि कीमत के मामले में भी ये ककड़ी सब पर भारी है। शहर में अभी 30 से 70 रुपए किलो में मिलने वाली बालम ककड़ी रतलाम के सैलाना और थोड़ी-बहुत मांडव के धार जिले से आती है। मगर सबसे स्वादिष्ट और यम्मी बालम ककड़ी रतलाम जिले के सैलाना की ही होती है। शहर ही नहीं बल्कि पूरे देश मे इस बालम ककड़ी के जबरदस्त मुरीद लोग हैं और शुरू होने से लेकर खत्म होने तक लगभग रोज ही इसका बिना सेवन चलता है।
बढ़ जाती हैं कीमतें
ये बालम ककड़ी इन दिनों मिल रही है, वहीं सब्जी मंडी में भी नजर आ जाती है। हालांकि इसे हर कोई नहीं बेचता लेकिन इसके चाहने वाले कम नहीं हैं। इस ककड़ी का नाम भी बालम पता नहीं किसने, लेकिन बड़ा सोच समझकर रखा है। क्योंकि नाम के अनुरूप ही ये ककड़ी प्रेमी या पति की तरह बालम रूप में अत्यंत ही प्रिय खाने वालों को लगती है। राजस्थान में केसरिया बालम तो बड़ा जाना – पहचाना शब्द है ही … अपने मालवा के लोग भी इस बालम ककड़ी के दिवाने हैं और बड़े चाव से चाट मसाला डालकर इसका सेवन करते हैं और कुछ लोग इसकी सब्जी भी बनाते हैं। कई ग्रामीण अंचलों से इस ककड़ी को बेचने आने वाले लोगों के लिए रोजगार का भी एक जरिया है।