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Image Source- @Swamy39
नई दिल्ली। शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे (Bal Thackeray) की आज जयंती है। 23 जनवरी 1926 को पुणे में उनका जन्म एक मराठी परिवार में हुआ था। बचपन में उनका नाम बाल केशव ठाकरे (Bal Keshav Thackeray) था। लेकिन जैसे ही वे चर्चित हुए, लोग उन्हें बाला साहब ठाकरे और हिंदू हृदय सम्राट के नाम से भी पुकारने लगे। ठाकरे हमेशा अपने बयानों को लेकर चर्चा में रहते थे। वे जो भी बोलते थे सीधे बोलते थे। बिना कोई लाग लपेट के। यही कारण है उनका विवादों से गहरा नाता था। महाराष्ट्र में दूसरे राज्यों के लोगों का विरोध कर उन्होंने अपनी पहचान पूरे देश में बनाई थी। बाला ठाकरे को लेकर कई किस्से प्रचलित हैं।
कभी किसी से मिलने नहीं जाते थे
बाला ठाकरे की एक खास बात थी। वह कभी किसी से मिलने नहीं जाते थे। जिसे मिलना होता था वो खुद ठाकरे के घर मातोश्री (Matoshree) जाया करते थे। कहा जाता है कि वो अपने घर में चांदी के सिहांसन पर बैठा करते थे और जो भी लोग उनसे मिलने जाते थे। वे सबका आदर सत्कार किया करते थे। यही कारण है कि उनके घर पर विरोधी भी हाजरी लगाने जाते थे। ठाकरे को लोग सबसे ज्यादा पसंद इसलिए भी करते थे। क्योंकि वे बिना देखे भाषण दिया करते थे। लोग जो सुनना चाहते थे ठाकरे वहीं बोला करते थे। यही कारण है कि उन्हें सूनने लाखों की संख्या में लोग आते थे।
जब ठाकरे ने कहा- मैं किसी चीज पर दुख नहीं प्रकट करता
मुंबई में हुए दंगों को लेकर फिल्म डायरेक्टर मणि रत्नम (Mani Ratnam) ने एक फिल्म बनाई थी। जिसका नाम था 'बॉम्बे'। फिल्म में शिव सैनिकों को एक समुदाय विशेष को मारते और लूटते हुए दिखाया गया था। साथ ही फिल्म के अंत में बाला ठाकरे के काल्पनिक किरदार को इस बात के लिए माफी मांगते हुए दिखाया गया था। ठाकरे ने फिल्म का विरोध किया। शिवसैनिकों ने कहा कि हम इस फिल्म को मुंबई में चलने नहीं देंगे। फिल्म के डिस्ट्रीब्यूटर थे अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachchan) वे भागे-भागे अपने दोस्त बाला ठाकरे के पास पहुंचे और पूछा कि क्या आपको इस फिल्म में शिव सैनिकों को दंगाइयों के रूप में दिखाए जाने से आपत्ति है। इस पर ठाकरे ने कहा- बिल्कुल नहीं। मुझे जो इस फिल्म में बुरी लगी वह है दंगों पर ठाकरे के चरित्र का दुख प्रकट करना। मैं कभी भी किसी चीज पर दुख प्रकट नहीं करता।
निजी सबंध को राजनीति से बिल्कुल अलग रखते थे
बाला ठाकरे राजनीति और निजी सबंध को बिल्कुल अलग कर के चलते थे। अगर किसी दूसरी पार्टी के नेता के खिलाफ उन्हें कुछ बोलना होता था तो वे बिना झिझके बोला करते थे। लेकिन वहीं अगर उन्हें शाम में उसी नेता के साथ बैठना होता था तो उनके स्वागत में वो कोई कसर नहीं छोड़ते थे। इसके सबसे सटीक उदाहरण है एनसीपी नेता शरद पवार (Sharad Pawar)। ठाकरे उन्हें अक्सर आटे की बोरी बुलाया करते थे। वहीं शाम में उन्हें उनकी पत्नी और बेटी को खाने पर बुला लेते थे।
जब उन्होंने भाजपा को कहा कमलाबाई
साल 2006 में महाराष्ट्र में राज्यसभा चुनाव होने वाले थे। एनसीपी ने सुप्रिया सुले (Supriya Sule) को अपना उम्मीदवार बनाया था। जैसे ही इस बात की भनक बाला ठाकरे को लगी, उन्होंने शरद पवार को फोन किया और कहा कि आपने मुझे बताया नहीं कि सुप्रिया बेटी चुनाव लड़ रही है। इस पर पवार ने कहा कि शिवसेना-बीजेपी गठबंधन से पहले ही मेरी पार्टी ने सुप्रिया को उम्मीदवार घोषित कर दिया था । इस कारण से ही मैंने आपको परेशान नहीं किया। इस पर ठाकरे ने कहा मुझे दूसरों से पता चल रहा है ये गलत बात है। मैनें उसे तब से देखा है जब वह छोटी सी थी। वो मेरी भी बेटी है। उसके खिलाफ मेरा कोई भी उम्मीदवार चुनाव नहीं लडेगा। पवार ने हैरान होते हुए पुछा कि ये कैसे हो सकता है। आप की पार्टी बीजेपी के साथ गठबंधन में है। इस पर ठाकरे ने कहा तुम 'कमलाबाई' की चिंता मत करो। मैं उसे देख लूंगा, मैं जो कहूंगा वहीं होगा।
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