Kanak Bhawan Ayodhya: दुनिया में भगवान श्रीराम के कई मंदिर हैं, जिनमें से सबसे भव्य मंदिर है अयोध्या में जिसको लेकर अद्भुत और आलोकिक कथाएं प्रचलित हैं। अयोध्या के सबसे सुंदर मंदिरों में से एक है कनक भवन। जिसे लेकर कहा जाता है, कि कनक भवन को रानी कैकेयी ने माता सीता को मुंह दिखाई में दिया था। जो भगवान श्रीराम और माता सीताजी का निजी महल था।
जिस तरह टीकमगढ़ राजघराने की महारानी गणेश कुंवरि ने 16वीं शताब्दी में राजा राम की उपासना कर उनको प्रसन्न करके अयोध्या से लाकर ओरछा में स्थापित किया था। उसी तरह इस राजघराने की दूसरी महारानी वृषभानु कुंवरि ने कनक भवन का निर्माण करवाया।
टीकमगढ़ राजघराना आज भी इस कनक भवन मंदिर का मैनेजमेंट करता है। इसके अलावा भी नेपाल के जनकपुर में श्री जानकी मंदिर का को वृषभानु कुंवरि बनवाया था। आखिर क्या है इस मंदिर के पीछ का रहस्य और क्या है इसकी मान्यताएं आइए जानते हैं।
कनक भवन से जुड़ी है त्रेता युग की कहानी
भगवान राम ने त्रेता युग में जब राजा जनक की सभा में सीता स्वयंवर में भगवान शिव के धनुष तोड़ा था। तब माता सीता ने उन्हें जयमाला पहनाई थी। श्रीराम के मन में उस रात को विचार आया कि सीताजी के रहने के लिए अयोध्या में एक सुंदर महल होना चाहिए।
ये भी कहा जाता है, कि जिस समय भगवान श्रीराम सीताजी के लिए सुन्दर भवन बनाने का विचार कर रहे थे, उसी दौरान अयोध्या में महारानी कैकयी को सपने में साकेत धाम वाला दिव्य कनक भवन दिखाई दिया था। महारानी कैकेयी ने इस बात का जिक्र महाराजा दशरथ से किया और स्वप्न में दिखाई दिए कनक भवन (Kanak Bhawan Ayodhya) की प्रतिकृति अयोध्या में बनाने को कहा।
कैकयी के आग्रह पर राजा दशरथ जी ने शिल्पी विश्वकर्मा को कनक भवन बनाने के लिए अयोध्या लेकर आए। जब भवन को विश्वकर्मा ने बनाकर तैयार कियै, तो महारानी कैकेयी ने इसे अपनी बहू सीता को मुंह दिखाई में दिया था। श्रीराम और सीतजी के विवाह के बाद वह इसी भवन में रहने लगे।
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कनक भवन से जुड़ी है टीकमगढ़ की महारानी की कहानी
सन् 1855 में तिदारी के राजा विजय सिंह के घर में एक बेटी का जन्म हुआ। जिसका नाम रखा वृषभानु कुंवरि। वे श्रीराम की भक्त थीं। उनकी बुआ ने वृषभानु कुंवरि की परवरिश की थी। उनकी शादी सन् 1869 में उनकी बुआ ने टीकमगढ़ के राजा प्रताप सिंह जूदेव से करवा दी। इतिहासकार बताते हैं, कि इस राजघराने के पुरुष कृष्ण भक्त हुए, तो वहीं रानियां राम भक्त हुईं।
कनक भवन के रास्ते में सोने-चांदी की अशर्फियां बिछाई थीं
जब रानी टीकमगढ़ लौटीं तो रानी हर पल कनक भवन (Kanak Bhawan Ayodhya) और प्रभु श्रीराम की भक्ति में ही डूबी रहती थीं। कुछ साल बाद महारानी को अचानक दासी मुन्नीबाई से सूचना मिली कि महंत लक्ष्मण दास अपने शिष्यों के साथ के टीकमगढ़ तालाब के पास ठहरे हैं।
तत्काल महारानी वृषभानु कुंवरि उनके पास पहुंचीं और महल का आतिथ्य स्वीकार करने का आग्रह किया। आग्रह करने के बाद रानी ने महंत और उनके शिष्यों के स्वागत के लिए टीकमगढ़ तालाब से राजमहल के रास्ते में सोने और चांदी की अशर्फियां बिछाईं थीं। ताकि उनके पैर धरती पर न पड़ें। महारानी की सेवा से महंत बहुत खुश हुए थे।
4 साल में बना कनक भवन, 6 लाख के आभूषण और 12 गांव के मंदिर को दान
इतिहासकार बताते हैं, कि सन् 1887 में रानी अयोध्या गईं। इस बार रानी के आग्रह को महंत टाल नहीं पाए और कनक भवन की भूमि आदि सब कुछ महारानी को समर्पण कर दिया। कहा कि कनक भवन (Kanak Bhawan Ayodhya) का ऐसा निर्माण हो, जिसकी चर्चा दूर-दूर तक हो। युगों-युगों तक लोग इसे याद रखें।
रानी फिर 6 महीने बाद अयोध्या गईं, तो उनके साथ राज्य के कारीगर भी गए थे। इसके बाद कनक भवन के विशाल मंदिर का निर्माण शुरू किया गया था। कनक भवन 4 साल में बनकर तैयार हो गया। मंदिर को बनाने के बाद मंदिर में प्रभु श्रीराम की जो मूर्ति स्थापित की गई, उसकी भी एक रोचक कथा है।
कनक भवन बनने के बाद महारानी प्रभु श्रीराम की भक्ति में लीन रहने लगी। श्रीराम भगवान ने रानी को एक रात स्वप्न में दर्शन दिए। दर्शन देकर कहा कि हे रानी हम साकेत धाम में आकर तुम्हारी बनवाई हुई मूर्ति में विराजमान होंगे। अपने विवाह के समय के दूल्हा रूप में सभी भक्तों को दर्शन देंगे। जैसा श्रीराम ने रानी से स्वप्न में कहा था उसी तरह उनकी मूर्ति का निर्माण कराया गया।
सन् 1891 में मंदिर और मूर्ति की पूरे विधि विधान से प्राण प्रतिष्ठा कराई गई। साथ ही विशाल भंडारा भी कराया गया। प्राण प्रतिष्ठा में आए साधु-संतों को दान दक्षिणा दी गई।
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श्री जानकी मंदिर के निर्माण के पीछे की कहानी
जनकपुर मंदिर को लेकर इतिहासकार बताते हैं, कि त्रेता युग के समय जनकपुर का वेद पुराणों में जिक्र मिलता है, लेकिन जनकपुर की पहचान होना बहुत मुश्किल था। जनकपुर का पता करीब 400 साल पहले महात्मा सूर किशोर दास ने लगाया।
वहीं जनकपुर जो सीताजी के बचपन और स्वयंवर का साक्षी रहा। इसके साथ ही श्री जानकी मंदिर के निर्माण के पीछे की कहानी भी बुहत रोचक है। जिसके बारे में जानकर आप आश्चर्य चकित रह जाएंगे।
बता दें कि, राजा प्रताप सिंह और रानी वृषभानु कुंवरि ने कनक भवन (Kanak Bhawan Ayodhya) के निर्माण कराया इसके बाद भी उन्हें संतान प्राप्ति नहीं हुई। सन् 1896 में अपने गुरु की आज्ञा से उन्होंने देवी सीता का मंदिर जनकपुर में बनवाने का संकल्प लिया। संकल्प लेने के बाद जानकी मंदिर का निर्माण करवाना शुरू किया और इसके 1 साल में ही उन्हें पुत्र की प्राप्ति हो गई।
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