रायसेन। शहर में अब सर्द हवाओं का दौर शुरू हो गया है। सुबह-शाम ठंड को असर भी आसानी से महसूस जा सकता है। इस दौरान जिले में प्रवासी पक्षियों का आने का क्रम भी शुरू हो गया है।
बता दें कि यहां पर प्रवासी पक्षी पिछले 10 सालों से आ रहे हैं जो शहर के ही तालाबों में अपना आशियाना बनाते हैं और ठंड के सीजन भर वे यहीं पर रुकते हैं।
गर्मी में होती है वापसी
साथ ही जैसे ही गर्मी का मौसम शुरू होता है। इन पक्षियों के लौटने का सिलसिला भी शूरु हो जाता है। ठंड के सीजन में आप बड़ी संख्या में बाहरी पक्षियों को शहर के जलाशयों पर देखे सकते हैं।
प्रवासी पक्षियों को देखन सेमरी बांध आ रहे लोग
शहर में पांच वर्षों से प्रवासी पक्षियों को देखने के लिए सेमरी बांध भी एक नई जगह के तौर पर उभरा है। यहां छठवीं बार परदेसी परिंदों का आना शुरू हुआ है। पक्षियों का मधुर कलरव रोमांचित करने के साथ उर्जा देने वाला होता है। यह अब बेगमगंज क्षेत्र के छोटे तालों पर देखने को मिलने से लोग इनके प्रति आकर्षित होने लगे हैं।
तालाबों में सुबह-शाह दिखा रहा मनोरम दृश्य
इन दिनों विशेषकर सेमरी जलाशय के अलावा चांदोड़ा, तुलसीपार, कीरतपुर, जैतपुरा, तुलसीपार सहित अन्य स्थानों पर प्रवासी पक्षियों की अठखेलियां मन को खूब भा रही है। सुबह के समय उक्त तालाबों का नजारा ही निराला होता है। यहां प्रवासी पक्षी लोगों का ध्यान अपनी ओर खींच लेते हैं।
28 अक्टूबर से शुरू हुआ आने का क्रम
जंगलों से लगे इन तालाबों पर प्रवासी पक्षियों का डेरा सुंदरता व दृश्य को और भी मनोरम बना रहा है। हर साल नवम्बर से ही प्रवासी पक्षियों की आमद शुरू हो जाती है। इस बार इनकी दस्तक 28 अक्टूबर से शुरू हुई है।
इन पक्षियों के आने का सिलसिला शुरू
बेगमगंज में इस बार सारस, बगुले, ब्लैक रेड स्टार्ट, लार्ज कोरमोरेंट्स (शिकारी पक्षी) लेसर व्हिसलिंग टील्स, लिटिल कोरमोरेंट्स, ब्लैक आईबिस, रडी शेलडक, ब्लैक हेडेड गुल्स, येलो लैग्ड गुल्स आदि ने सैकड़ों की संख्या में अपना डेरा जमा लिया है। इनमें सबसे ज्यादा मनभावन यलो लैग्ड गुल्स है।
इन जगहों से आने हैं प्रवासी पक्षी
पक्षियों के नजर आने की एक मूल वजह यहां हरियाली और जल स्त्रोत संग्रह का होना है। यह प्रवासी पक्षी लेह, लद्दाख, हिमालय, साइबेरिया से अपना प्रवास शुरू करते है। ऐसे में हिमाचल प्रदेश, कशमीर, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात और उत्तर प्रदेश के चुनिंदा जलीय क्षेत्रों में ठहरते हुए मध्यप्रदेश पहुंचते हैं। ठंड खत्म होते होते मार्च अप्रैल तक वापसी शुरू हो जाती है।
भोपाल में इन जगहों पर आ रहे प्रवासी पक्षी
पक्षी विशेषज्ञ मो. खालिक के ने बताया कि हर वर्ष अलग-अलग देशों व राज्यों से प्रवासी पक्षी भोपाल आते हैं। इनमें से ज्यादातर पक्षी कीटों, फलों या अनाज पर निर्भर होते हैं। कलियासोत, केरवा और वन विहार जैसे इलाकों के आसपास उन्हें इस तरह का भरपूर भोजन नहीं मिल पाता है।
इसलिए पक्षी अब ऐसे स्थानों की और बढ़ रहे हैं जहां उन्हें उनके लिए पर्याप्त भोजन मिल सके और हर प्रकार के शोर से वो दूर रहे।
दिल्ली, हरियाणा में बढ़ा प्रदूषण
इसमें स्थलीय पक्षी सिर्फ घने वनों या हल्के वनों के अलावा भी शहर के साथ साथ शहर के बाहर भी अच्छी संख्या में दिखाई देते हैं। यह पक्षी खेतों के आस पास, छोटे पानी के पोखर, तालाब, फलों के बाग़, छोटे उद्यानों में भी आसानी से दिखाई दे रहे हैं।
इसके अलावा देश में कई अलग-अलग हिस्सों पंजाब, हरियाणा,दिल्ली रीजन में पॉल्यूशन बढ़ा है। इन शहरों की एयर क्वालिटी इंडैक्स बेहतर नहीं है इसलिए यह पक्षी वहां से भोपाल की और प्रवास पर आते है।
पक्षियों के जीनों में होते हैं प्रवास के गुण
पर्यावरणविद विजयपाल बघेल का कहना है कि प्रवास पक्षियों का एक नैसर्गिक व्यवहार है। यह प्रत्यक्ष रूप से उनके अस्तित्व से संबंध रखता है। भोजन, आश्रय और प्रजनन के लिए ये पक्षी प्रवास करते हैं। उन्होंने कहा कि यदि पक्षी प्रवास नहीं करें तो उनके समक्ष प्रजनन और भोजन की बड़ी समस्या खड़ी हो जाएगी।
लंबी यात्रा तय करते हैं प्रवासी पक्षी
उन्होंने कहा कि पक्षियों में प्रवास के गुण उनके जीनों में ही होते हैं। इसलिए अनेक प्रजातियों के पक्षी निश्चित समय और मौसम के आगमन पर प्रवास यात्रा को निकल पड़ते हैं। इस दौरान कई पक्षी लंबी यात्रा पर निकल पड़ते हैं।
जीनों में अंकित प्रवास का आनुवंशिक गुण इनका मार्गदर्शन करता है। इसके चलते यह अपने गंतव्य तक पहुंचने में कामयाब हो जाते हैं।
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