Archeology Department : भारत अपनी पुरानी सभ्यता को लेकर पूरी दुनिया में विख्यात है। खुदाई के दौरान ऐसी कई चीजें मिलती है जो कई सालों पुरानी होती है। जब भी खुदाई के दौरान कोई चीज मिलती है तो पुरातत्व विभाग (Archeology Department) को बुलाया जाता है। पुरातत्व विभाग (Archeology Department) को इसलिए बुलाया जाता है ताकि पता लगाया जा सके की मिली हुई वस्तु कितनी पुरानी है। पुरातत्व विभाग (Archeology Department) जो बताता है वही सही माना जाता है। लेकिन आपके मन में एक सवाल उठता होगा की आखिरकार पुरातत्व (Archeology Department) वाले कैसे पता लगाते है कि चीज कितनी पुरानी है।
कार्बन डेटिंग प्रक्रिया से लगाते है पता
पुरातत्व विभाग (Archeology Department) वाले कार्बन डेटिंग प्रक्रिया के माध्यम से चीजों की उम्र का पता लगाते है। यह एक प्रकार से तकनीक है। जिसका इस्तेमाल किसी समय जीवित सामग्री की अनुमानित आयु निर्धारित करने के लिए किया जाता है। इसे रेडियोकार्बन डेटिंग (Radiocarbon Dating) भी कहा जाता है। रेडियोकार्बन डेटिंग (Radiocarbon Dating) एक नमूने में मौजूद कार्बन या जैविक अवशेष की उम्र का अनुमान लगाने की एक विधि है।
किसने की कार्बन डेटिंग की खोज
रेडियोकार्बन डेटिंग (Radiocarbon Dating) तकनीक का आविष्कार 1949 में शिकागो विश्वविद्यालय के विलियर्ड लिबी ने किया था। इसके अविष्कार के लिए उन्हें 1960 में रसायन विज्ञान के नोबेल पुरस्कार दिया गया था। उन्होंने कार्बन डेटिंग (Radiocarbon Dating) के माध्यम से पहली बार लकड़ी की आयु पता की थी। रेडियो कार्बन डेटिंग (Radiocarbon Dating) तकनीक किसी भी चीज की बिल्कुल सटीक उम्र नहीं बता सकती। इसका कारण यह है कि दुनिया भर में सभी स्थानों का वायुमंडल अलग-अलग होता है। कार्बन डेटिंग (Radiocarbon Dating) के माध्यम से पता लगाया जा सकता है कि किसी अवशेष का उसके नष्ट होते समय आकार क्या रहा होगा। इसके आधार पर एक अनुमान लगाया जाता है। यह बिल्कुल सटीक नहीं होता।