हाइलाइट्स
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अर्चना तिवारी मिसिंग केस का खुलासा
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समाज के लिए सबक अर्चना तिवारी की साजिश
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अर्चना तिवारी की साजिश के पीछे की साइकोलॉजी
Archana Tiwari Psychology: मध्यप्रदेश में अर्चना तिवारी इसलिए भाग गई थी क्योंकि उसके घरवाले शादी का दबाव बना रहे थे। जबकि अर्चना तिवारी अकेले रहकर सिविल जज की तैयारी करना चाहती थी। ट्रेन से लापता हुई अर्चना तिवारी को 12 दिन बाद रेलवे पुलिस ने नेपाल बॉर्डर के पास से ढूंढ निकाला। जब इस पूरे मामले का खुलासा हुआ तो कई ऐसे सवाल खड़े हुए जिन्होंने समाज और हम सबको सोचने पर मजबूर कर दिया।
बंसल न्यूज डिजिटल ने वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी से इस पूरे केस में परिवार के रोल, लड़कियों की आजादी और समाज में छुपाने की प्रवृत्ति को लेकर बात की।
सवाल – सिविल जज की तैयारी कर रही अर्चना तिवारी द्वारा शादी के दबाव से बचने के लिए खुद चलती ट्रेन से लापता होने का सुनियोजित प्लान गढ़ने का मामला समाज के लिए कैसे और क्या सबक है ताकि और किसी फैमिली की बेटी ऐसा कदम न उठाए ?
वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी – जब युवाओं की राय को दबाया जाता है तो उन्हें ऐसा महसूस होता है कि उनका भविष्य में नियंत्रण खोता चला जा रहा है। चीजें उनके हाथ में नहीं रह पाएंगी। वो अपने भविष्य को लेकर काफी आशंकित हो जाते हैं। ऊहापोह की स्थिति आती है, फिर ऐसे इंपल्सिव डिसीजन लिए जा सकते हैं। आजकल सोशल मीडिया में भी ऐसे व्यवहारों को काफी बढ़ावा दिया जा रहा है। वेब सीरीज में भी बढ़ावा दिया जा रहा है। संवाद लगातार कम होता जा रहा है। इसके चलते उन्होंने (अर्चना तिवारी) ने ये कदम उठाया होगा। समाज यहां पर ये सीख सकता है कि संवाद कितना ज्यादा जरूरी है।
सवाल – क्या परिवारों में बातचीत से विवाद या मामले सुलझाने की गुंजाइश कम या खत्म हो रही है, यदि हां तो इसकी वजह क्या मानते हैं ?
वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी – माता-पिता और बच्चों के बीच में विश्वास की कमी है। साथ ही साथ हमारे भारतीय समाज है वो कहीं न कहीं उस पर सामाजिक दबाव एक बहुत बड़ा फैक्टर काम करता है। कई बार इमेज को लेकर हम अपनी बातें थोपने की कोशिश करते हैं। परिवार में अपनी बात कहने की आजादी नहीं होती, खासकर फीमेल जेंडर के लिए। वो अपनी इच्छाएं व्यक्त नहीं कर पातीं। निश्चित तौर पर संवाद एक सेतु का काम करेगा, जहां पर दोनों पीढ़ियां एक-दूसरे से बेहतर बातचीत करके ऐसी इंबेरेसमेंट वाली घटनाओं को टाल सकते हैं।
सवाल – अर्चना के माता-पिता, अन्य परिजन ने पुलिस से शादी के लिए विवाद या अर्चना के राजी न होने की बात छुपाई। समाज में छुपाने की बढ़ती प्रवृत्ति कितनी सही या गलत है ?
वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी – किसी भी समस्या को छुपाने से समस्या की डेप्थ और बढ़ती चली जाती है। समाधान और मुश्किल होते चले जाते हैं। सामाजिक दबाव के चलते हम कभी कहीं न कहीं ये स्वीकार नहीं करना चाहते कि हमारे परिवार में समस्याएं चल रही हैं या मेरे बच्चे या बच्ची के साथ में समस्याएं हैं। जिसके चलते हम डर की वजह से चीजें डिस्कस नहीं करते और कई बार कानून को भी हम गुमराह कर देते हैं या नहीं बताते। इसके पीछे भी समाज को लेकर हमारा वैलिडेशन है कि समाज हमें अच्छा ही समझे, लोग क्या कहेंगे, कहीं कोई हमारे बारे में कोई राय तो नहीं बना लेगा। इस डर के चलते लोग ऐसा करते हैं। जहां पर समाज में करुणा होगी, लोग धारणामुक्त होंगे तो ऐसे में लोग झूठ बोलना भी कम करेंगे। पुलिस या कानून को गुमराह नहीं करेंगे। बातों को नहीं छुपाएंगे।
सवाल – आज के समय में परिवार में शादी के लिए लड़कियों के साथ जोर जबरदस्ती कितनी जायज है ? इसमें माता-पिता का क्या और कैसा रोल होना चाहिए ?
वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी – माता-पिता की भूमिका शादी में एक सहयोग की होनी चाहिए, न कि आदेशात्मक। आज से जो 30-40 साल पहले हमारे यहां सामाजिक परंपरा थी कि महिलाओं को एक ऑब्जेक्ट के रूप में पुरुष प्रधान मानसिकता के चलते दूसरे घर में भेज दिया जाता था। आज जब महिला आर्थिक स्वतंत्र है। पढ़ी-लिखी है। अपने निर्णय लेने में सक्षम है। पुरुष के बराबर कंधे से कंधा मिलाकर चल सकती है। यहां पर दबाव बनाना बहुत ज्यादा अस्वस्थ हो सकता है। कोई लड़की है इसकी वजह से ही दबाव बना देने के काफी दुष्परिणाम सामने आ सकते हैं। अभी वो सबसे ज्यादा महसूस कर रहे होंगे।
सवाल – समाज में अब ऐसी लड़कियों की संख्या बढ़ रही है जो 28-30 साल की उम्र तक भी शादी के लिए राजी नहीं हो रहीं। माता-पिता, परिवार का चिंतित होना जायज नहीं है ?
वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी – शादी में देरी की जो बात है उसे थोड़ा दूसरे दृष्टिकोण से देखना चाहिए। जिस तरह से शिक्षा का स्तर बढ़ रहा है। आत्मनिर्भरता बढ़ रही है। रोजगार के अवसर बढ़ रहे हैं। महिलाओं को काफी अवसर मिल रहे हैं। अगर हम पिछले 3-4 डिकेड्स की बात करें तो निश्चित तौर पर जो शादी का औसत समय होता तो ये बढ़ जाएगा। यहां पर एक सामंजस्य बैठाने की जरूरत है क्योंकि कोई भी आदर्श एज शादी की आज की डेट में नहीं कही जा सकती। अगर आप चाहते हैं कि आपके बच्चे आत्मनिर्भर हों, शिक्षा प्राप्त करें, रोजगार से भी लग जाएं तो मुझे लगता है इसमें थोड़ी-सी फ्लेक्सिबिलिटी लाने की जरूरत है। जहां बातचीत के माध्यम से रास्ता निकल सके।
सवाल – क्या अर्चना तिवारी के खिलाफ गुमराह करने के लिए एक्शन होना चाहिए या नहीं ?
वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी – कुछ लोग कह रहे होंगे कि अर्चना के खिलाफ एक्शन हो, लेकिन हमें रूट कॉज समझना होगा। रूट में अभी भी यही है कि मैंने अपनी इच्छाएं, अपनी बातें ईमानदारी से व्यक्त कीं तो लोग मुझे क्या कहेंगे। समाज का जो डर है, परिवार का जो भय है जिसकी वजह से उसने ये कदम उठाया, उस पर हमें काम करने की जरूरत है। उस पर एक्शन लेना बेहद ही सतही हल हो सकता है। एक परेशान व्यक्ति को और ज्यादा परेशान करने जैसा हो सकता है।