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MP High Court: सात जजों की नियुक्तियों को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई पूरी, मामला आदेश के लिए रखा रिजर्व!

MP High Court: न्यायपालिका में एक वर्ग विशेष के ही लोगों को प्रतिनिधित्व मिलने पर हाई कोर्ट में उठाया है सवाल, ये है पूरा मामला

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Rahul Sharma
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हाइलाइट्स

  • एमपी हाईकोर्ट में 7 जजों की नियुक्ति को दी गई है चुनौती
  • कॉलेजियम की जातिवादी और परिवारवादी व्यवस्था को भी दी चुनौती
  • हाईकोर्ट जबलपुर में सुनवाई पूरी, फैसले को रखा गया है रिजर्व
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MP High Court Judge Appointment Issue: एमपी हाई कोर्ट जबलपुर में 28 मई को एक अहम याचिका की सुनवाई हुई।

याचिका में हाईकोर्ट के नव नियुक्त सात जजों की नियुक्ति की अधिसूचना 02/11/2023 की संवैधानिकता को चुनौती (Petition Challenging Appointment of 7 Judges in MP High Court) दी गई है।

याचिका को 28 मई को विस्तृत सुनवाई कर आदेश के लिए रिजर्व कर लिया है। याचिका अधिवक्ता मारुति सोंधिया द्वारा अधिवक्ता उदय कुमार साहू के माध्यम से 4 नवंबर 2023 को दायर की गई।

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जिसमें मध्य प्रदेश हाई कोर्ट (MP High Court) एवं सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया के कॉलेजियम (Collegium of Supreme Court of India) की जातिवादी, वर्ग वादी एवं परिवारवादी व्यवस्था को भी चुनौती दी गई।

एक ही जाति के अधिवक्ताओं के नाम प्रेषित करने का आरोप

याचिका में आरोप (MP High Court judge Appointment Issue) है कि हाई कोर्ट तथा सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) द्वारा संविधान में विहित सामाजिक न्याय तथा आनुपातिक प्रतिनिधित्व के सिद्धांत को नजर अंदाज करके एक ही जाति, वर्ग तथा परिवार विशेष के ही अधिवक्ताओं के नाम पीढ़ी दर पीढ़ी हाई कोर्ट जजों की नियुक्ति हेतु प्रेषित किए जाते हैं, जो संविधान के अनुच्छेद 13,14, 15,16 एवं 17 के प्रावधानों तथा भावना के विपरीत है।

करिया मुण्डा कमेटी रिपोर्ट बनी याचिका का मुख्य आधार

भारत के संविधान में सामाजिक न्याय तथा आर्थिक न्याय की आधार शिला रखी गई है, उक्त सामाजिक न्याय को साकार करने के लिए न्यायपालिका में सभी वर्गों का अनुपातिक प्रतिनिधित्व होना आवश्यक है।

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उक्त संबंध में करिया मुंडा कमेटी की रिपोर्ट स्पष्ट रूप से व्याख्या करती है, कि हाई कोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट में एक जाति वर्ग विशेष के ही जजों की नियुक्ति होने से बहुसंख्यक समाज के लोगों को उनके संवैधानिक अधिकारों से कानून का गलत अर्थान्वयन करके उनको संवैधानिक अधिकारो से वंचित किए जाने के देश में हजारों फैसले है।

उक्त असंवैधानिक फैसलों को निष्प्रभावी करने के लिए संसद को कई बार संविधान में संशोधन करना पड़े हैं।

एमपी हाईकोर्ट में आज तक SC/ST वर्ग से कोई जज नहीं

याचिका कर्ता मारुति सोंधिया के अधिवक्ता उदय कुमार साहू द्वारा हाई कोर्ट को बताया गया कि आजादी से लेकर आज तक मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में एक भी SC तथा ST का जज नहीं बनाया गया है।

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हाई कोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम में एक भी ओबीसी एससी एसटी का प्रतिनिधि नहीं है।

कॉलेजियम द्वारा अपने मनमाने रूप से अपने चाहेतों के नाम हाई कोर्ट जजों के रूप में रिकमंड करते हैं, जो एक जातिवादी, परिवार वादी व्यवस्था को निरंतर रूप से संरक्षित किया जाता रहा है।

न्यायपालिका को स्वच्छ बनाए जाने को दृष्टिगत रखते हुए हाई कोर्ट जजों की नियुक्ति की कार्यप्रणाली पारदर्शी होना चाहिए तथा सभी वर्ग के योग्य अधिवक्ताओं का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया जाना चाहिए।

अधिवक्ता ने हाईकोर्ट को दिये उदाहरण

उदय कुमार साहू ने उदाहरण देकर बताया हाल ही में जस्टिस रवि माली मठ अपनी तीसरी पीढ़ी के हाईकोर्ट जज थे। इसी प्रकार देश के अन्य परिवारों के उदाहरण भी उदय कुमार ने कोर्ट में दिए है।

मध्य प्रदेश सहित देश की सभी न्यायपालिका में एक वर्ग जाति विशेष का ओवर रिप्रेजेंटेशन है जबकि ओबीसी एससी एसटी एवं महिलाओं का न्यायपालिका में प्रतिनिधित्व दो या तीन परसेंट ही है।

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7 जजों का बनाया अनावेदक

याचिका में अनावेदक क्रमांक केविनेट लॉ सचिव यूनियन आफ इंडिया कानून मंत्रालय, सर्वोच्च न्यायलय नई दिल्ली, मध्य प्रदेश हाईकोर्ट जबलपुर, मध्य प्रदेश शासन द्वारा मुख्य सचिव सहित अनावेदको के रूप में जस्टिस विनय सराफ, विवेक जैन, राजेंद्र कुमार वानी, प्रमोद कुमार अग्रवाल, विनोद कुमार द्विवेदी, देव नारायण मिश्रा और गजेंद्र सिंह को शामिल किया है।

कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश शील नागू की डबल बेंच में सुनवाई

उक्त याचिका की प्रारंभिक सुनवाई कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश शील नागू और जस्टिस अमरनाथ केसरवानी की खंडपीठ द्वारा की गई।

उक्त याचिका को 28 मई को विस्तृत सुनवाई कर आदेश के लिए रिजर्व कर लिया है।

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