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नयी दिल्ली, पांच जनवरी (भाषा) कृषि निर्यात से संबंधित संस्था एपीडा ने अपनी रेड मीट नियमावली से ‘हलाल’ शब्द को हटा दिया है और यह स्पष्ट किया है कि निर्यात के उद्देश्य से जानवरों का वध आयातक देश या खरीदार की मांस संबंधी जरूरत के अनुसार किया गया है। इस कदम का दक्षिणपंथी संगठनों ने स्वागत किया है।
कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) द्वारा जारी संशोधित रेड मीट नियमावली में लिखा है, ‘‘जानवरों का वध देश/ आयातक की जरूरत के अनुसार किया गया है।’’
सूत्रों ने कहा, ‘‘नई नियमावलि से हलाल शब्द को हटा दिया गया है, क्योंकि इससे भ्रम पैदा हो रहा था। चाहे मांस हो या कोई अन्य उत्पाद, यह मूल रूप से आयात करने वाले देश और खरीदार की जरूरत पर निर्भर करता है।’’
उन्होंने कहा कि हालांकि, इस कदम का जमीन पर ज्यादा असर नहीं होगा, लेकिन यह प्रतीकात्मक है, क्योंकि इस्लामिक देश सिर्फ हलाल प्रमाणित मांस के आयात की अनुमति देते हैं।
विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) के राष्ट्रीय प्रवक्ता विनोद बंसल ने इस कदम का स्वागत किया है।
बंसल ने पीटीआई-भाषा से कहा कि भारत में उत्पादों के हलाल प्रमाणन की प्रथा बंद होनी चाहिए, क्योंकि इससे अनुसूचित जाति और जनजाति के समुदायों की आजीविका प्रभावित हो रही है।
भारत दुनिया में भैंस के मांस का निर्यात करने वाला सबसे बड़ा देश है जबकि वियतनाम इसका सबसे बड़ा आयातक देश है। भारत से मांस का निर्यात और उत्पादन 1969 में शुरू हुआ।
भाषा
पाण्डेय महाबीर
महाबीर
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