भोपाल। एमपी अजब है सबसे गजब है, MPT के इस विज्ञापन को तो आपने जरूर देखा होगा। इसी कड़ी में आज हम आपको मध्य प्रदेश के एक ऐसे गांव के बारे में बताएंगे जहां, पूजा स्थल पर सोना-चांदी या मिठाई नहीं, बल्कि यहां नारियल के साथ लोहे के सांकल( कुंडी) चढाए जाते हैं। छतरपुर जिले के बरट गांव के लोगों का मानना है कि ऐसा करने से वे बीमारियों से सुरक्षित रहते हैं।
गांव का नाम मंदिर के नाम पर रखा गया है
गांव में यह परंपरा 70 साल से अधिक समय से चली आ रही है। छतरपुर जिला मुख्यालय से करीब 20 किमी दूर बसे इस गांव में पूजा और प्रसाद चढ़ाने की अलग ही परंपरा है। बरट में तालाब किनारे भगवान शंकर का बटेश्वर धाम मंदिर है। इस मंदिर के नाम पर ही इस गांव का नाम बरट पड़ा। भगवान शंकर के इस मंदिर परिसर में एक पेड़ है जो लोहे के सांकल से पूरी तरह से लदा हुआ है।
इस दिन लोग चढ़ाते हैं सांकल
बता दें कि दुर्गानवमीं के दिन इस मंदिर में बरट के साथ आसपास के गांव के लोग भी बड़ी संख्या में आकर बीमारियों से बचने और मन्नत पूरी होने पर सांकल चढ़ाते हैं। ग्रामीण बताते हैं कि यह प्रथा काफी पुरानी है। माना जाता है कि जब भारत में 1940 के दौरान गांव-गांव में हैजा फाला था। तब इस गांव के लोगों ने इससे बचने के लिए पेड़ पर सांकल चाढ़ाना शुरू किया था और तब गांव में किसी को भी हैजा नहीं हुआ था और न ही किसी की मौत हुई थी।
स्थानीय लोग क्या कहते हैं
1940 के बाद अब हर साल हर परिवार दुर्गा नवमीं और रामनवमीं के दिन अपने परिवार की रक्षा और बीमारी से बचने के लिए यहां आकर सांकल चढ़ाते हैं। स्थानीय लोगों की माने तो देश-विदेश में पिछले 3 साल से कोरोना फैला हुआ है, लेकिन इस गांव में अब-तक कोई संक्रमित नहीं हुआ है। उनका मानना है कि यह सब इस पूजा के कारण ही हुआ है।
सांकल को निकाला नहीं जाता
लंबे समय से यह मंदिर मन्नत का केंद्र बना हुआ है। गांव के जो लोग अब शहर में जाकर बस गए हैं, वे भी यहां आकर सांकल चढ़ाना नहीं भुलते। पेड़ पर लगे किसी भी सांकल को निकाला नहीं जाता है। समय-समय पर ये सांकल स्वयं पेड़ के अंदर समा जाते हैं।