नई दिल्ली। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दो दिन Aja ekadashi 2 September 2021 बाद यानी 2 सितंबर को अजा एकादशी पड़ेगी। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को करने से अश्वमेघ यज्ञ के बराबर फल मिलता है। इस दिन भगवान विष्णु का पूजन होता है। 2 सितंबर को गुरूवार का दिन इसे और खास बना रहा है। साथ ही तुलसी पूजन व दान भी विशेष महत्व है। आइए जानते हैं इससे जुड़ी कुछ और बातें।
इस एकादशी के है और भी नाम
पंडित रामगोविन्द शास्त्री के अनुसार भाद्रपद Aja ekadashi 2 September 2021 महीने में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दो दिन बाद आने वाले इस व्रत को अजा एकादशी भी कहते हैं। इसे जया एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस साल यह 2 सितंबर यानि गुरुवार को किया जाएगा। इसमें भगवान विष्णु के उपेन्द्र रूप की पूजा और अराधना करने का विधान है। इस दिन व्रत और विष्णुजी की पूजा करने से सभी तरह के पाप दोष मिट जाते हैं।
तुलसी दान से कई यज्ञों का फल
एकादशी के दिन सुबह जल्दी तुलसी और भगवान शालग्राम की पूजा के साथ तुलसी दान का संकल्प लें। भगवान विष्णु की भी पूजा करके गमले सहित तुलसी पर पीला कपड़ा लपेट लें। जिससे पौधा ढंक जाए। इस पौधे को किसी विष्णु या श्रीकृष्ण मंदिर में दान करें। तुलसी के पौधे के साथ ही फल और अन्नदान भी किया जाना चाहिए। यह विधि आपको कई यज्ञों के समान पुण्य फल दिला सकता है।
इस दिन दो बार होगी मां तुलसी की पूजा
भगवान विष्णु का ही दिन होने से इसे हरिवासर कहा गया है। इस शुभ संयोग में भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण सहित उनके अन्य अवतारों के साथ तुलसी की विशेष पूजा की भी परंपरा है। अजा एकादशी की विशेषता यह है कि इस दिन मां तुलसी की सुबह और शाम दोनों समय पूजा की जाती है। भगवान विष्णु का पूजन और भोग इनके बिना अधूरा माना जाता है।
एकादाशी पर तुलसी पूजा
एकादशी तिथि पर सूर्योदय से पहले उठकर नहा ले। इसके बाद भगवान विष्णु के साथ तुलसी पूजा करने का संकल्प लें। तुलसी को प्रणाम करके शुद्ध जल चढ़ाएं। फिर पूजा करें। तुलसी को गंध, फूल, लाल वस्त्र अर्पित करके भोग लगाएं। घी का दीपक जलाएं। तुलसी के साथ भगवान शालिग्राम की भी पूजा करनी चाहिए।
इन बातों का रखें ध्यान
शाम के वक्त तुलसी के पास दीपक जलाना चाहिए। साथ ही मां के मंत्रों का जाप भी करना चाहिए। सूर्योदय के वक्त तुलसी को जल चढ़ाना चाहिए। सूर्यास्त के बाद जल चढ़ाना वर्जित है।
तुलसी के ये हैं मंत्र
वृंदा वृंदावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी।
पुष्पसारा नंदनीय तुलसी कृष्ण जीवनी।।
एतनामांष्टक चैव स्त्रोतं नामर्थं संयुतम।
य: पठेत तां च सम्पूज्य सौश्रमेघ फलंलभेत।।