नई दिल्ली। अगर आप ग्रामीण इलाके या सेमीअर्बन इलाके में रहते हैं तो सुबह-सुबह मुर्गे की बांग जरूर सुनी होगी। लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि मुर्गा सुबह ही बांग क्यों देता है? इस चीज को कम ही लोग जानते हैं। इसके अलावा कई लोग यह भी जानना चाहते हैं कि मुर्गा ही बांग क्यों देता है मुर्गी क्यों नहीं देती? तो आइए आज हम आपको इन सभी सवालों के जवाब बताते हैं।
मुर्गे को सर्केडियन क्लॉक भी कहा जाता है
दरअसल, मुर्गे सुबह होने के समय को बहुत सटीक भांपते हैं। ये सब होता है उनके शरीर की बनावट और उसकी अंदरूनी खूबियों की वजह से। यही कारण है कि मुर्गा को सर्केडियन क्लॉक यानी जैविक घड़ी का भी नाम दिया गया है।
मुर्गियां बांग क्यो नहीं देती?
लेकिन सवाल यहीं खत्म नहीं होता। अब बात उठती है कि आखिर मुर्गा सुबह ही बांग क्यों देता है शाम को क्यों नहीं? बतादें कि इसके पीछ विज्ञान है दरअसल, सुबह के समय मुर्गे में हार्मोनल ऐक्टिविटी सबसे ज्यादा होती है। यही कारण है कि मुर्गे सुबह में ही बांग देते हैं। वहीं मुर्गियों की बात करें तो उनके हार्मोंस मुर्गे से अलग होते हैं। इसी अंतर की वजह से मुर्गियां बांग देने की बजाय पक-पक करती रहती हैं।
वैज्ञानिकों ने बांग को लेकर एक शोध किया था
गौरतलब है कि जापान के वैज्ञानिकों ने मुर्गे के बांग को लेकर एक शोध किया था। जिसमें पता चला कि मुर्गे सुबह होने से पहले मध्यम प्रकाश में ही सुबह होने का एकदम सही अंदाज लगा लेते हैं और अपनी बांग से सूचित कर देते हैं कि आसमान में सूर्य की किरणों का आगमन हो चुका है। विज्ञानियों का मानना है कि मुर्गों का व्यवहार उनकी इंटरनल घड़ी और सिरकेडियन रिद्म जो कि एक जैविक प्रक्रिया है और जानवरों के साथ-साथ पौधों में भी होती है के अनुसार नियंत्रित होती है
शोध में वैज्ञानिकों ने क्या किया?
इस प्रयोग के लिए वैज्ञानिकों ने मुर्गो के दो समूह बनाए, पहले समूह को दिन के उजाले में रखा गया और दूसरे समूह को 12 घंटे तक मंद रोशनी में रखा गया और उनके व्यवहार को समझा गया। प्रयोग में पाया गया कि जैसे ही मंद प्रकाश को तेज किया गया यानी उजाला किया गया, उस समूह के मुर्गे बांग देने लगे। यानी साफ हो गया कि सुबह होते ही वे सूरज की रोशनी को समझ जाते हैं और बांग देने लगते हैं।