SPY Film Review: युवा नायक निखिल सिद्धार्थ अभिनीत एक और पैन इंडिया फिल्म ‘स्पाई’ आज सिनेमघरों में रिलीज हो चुकी है।
भारत में पहले भी जासूसी और रॉ एजेंटों पर आधारित कई फिल्में बन चुकी हैं। हालाँकि, जासूसी फिल्में दर्शकों के बीच हमेशा दिलचस्प होती हैं।
अगर पटकथा और प्रस्तुति नई हो तो दर्शक उसे जरूर पसंद करेंगे। फिल्म ‘स्पाई’ के लिए ऐसी पॉजिटिव वाइब्स देखने को मिल रही हैं।
तेलुगु, हिंदी, तमिल, मलयालम और कन्नड़ भाषाओं में रिलीज़
फिल्म की टीम ने यह कहकर ‘स्पाई’ में दिलचस्पी जगाई कि वे अपनी फिल्म में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के लापता होने के पीछे के रहस्य के बारे में बात कर रहे हैं। इस वजह से इस फिल्म से काफी उम्मीदें बनी हुई हैं।
आज बकरीद त्योहार के मौके पर फिल्म ‘स्पाई’ दर्शकों के सामने आई। इसे तेलुगु, हिंदी, तमिल, मलयालम और कन्नड़ भाषाओं में रिलीज़ किया गया था।
अमेरिका में प्रीमियर शो पहले ही बंद हो चुके हैं। वहां फिल्म देख चुके लोग ट्विटर के जरिए अपनी राय जाहिर कर रहे हैं।
बताई गई सामान्य जासूसी फिल्म
एक तरफ जहां निखिल के फैंस ट्वीट कर रहे हैं कि फिल्म सुपरहिट है तो वहीं दूसरी तरफ जिन्होंने फिल्म देखी है वे कह रहे हैं कि फिल्म में कुछ खास नहीं है।
फिल्म ‘चाणक्य’ और ‘एजेंट’ की तरह यह भी एक सामान्य जासूसी फिल्म बताई जा रही है।
कुछ लोगों का मानना है कि पहला हाफ एवरेज है, लेकिन दूसरा हाफ पूरी तरह से नीरस है।
निखिल की भूमिका फिल्म की मुख्य ताकत
ऐसा कहा जा रहा है कि पहले हाफ में कुछ दृश्यों को छोड़कर एक्शन सीक्वेंस भी सामान्य हैं। कोई आकर्षक दृश्य न होने के कारण रोंगटे खड़े हो जाने की आलोचना की जाती है।
उनका कहना है कि सेकंड हाफ बहुत रूटीन है। दर्शक अंदाजा लगा लेंगे कि आगे क्या होगा।
ऐसी अवधारणाएं है कि एक जासूसी फिल्म का वर्णन इतना सपाट नहीं होना चाहिए। यदि सेकेंड हाफ मनोरंजक होता तो फिल्म का स्तर कुछ और होता।
कुछ लोगों ने ट्वीट किया कि ‘स्पाई’ बहुत अच्छी है। सेकंड हाफ में रोंगटे खड़े कर देने वाले सीन हैं।
खासकर हीरो निखिल की भूमिका फिल्म की मुख्य ताकत बतायी जा रही है।
दर्शकों का कहना है कि हीरो निखिल जासूस के रूप में बहुत फिट बैठते हैं। पूर्ण लंबाई वाली भूमिका निभाने वाले अभिनव ने अपनी भूमिका के साथ पूरा न्याय किया।
राणा डग्गुबाती ने दी कुछ राहत
ऐसा कहा जा रहा है कि फिल्म की कहानी चाहे जो भी हो, उसका फिल्मांकन शीर्ष पर होता है। कैमरामैन ने लोकेशन को बहुत अच्छे से दिखाया है।
ऐसी जासूसी कहानियों के गाने दांतों के नीचे पत्थर की तरह चिपक जाते हैं। तो वहीं गानों की कमी भी इस फिल्म के लिए प्लस पॉइंट है।
पहले भाग में शानदार पटकथा पर अच्छी तरह से काम किया गया है। कुछ लोगों का मानना है कि दूसरे हाफ में दो मिनट के लिए आए राणा दग्गुबाती ने कुछ राहत दी है।
कुछ लोगों का मानना है कि फिल्म में कुछ भी नया न होना एक बड़ा नुकसान है।
सेकंड हाफ है खिंची हुई
कुछ आलोचकों का कहना है कि जिस निर्देशक ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस के लापता रहस्य की कहानी में मिश्रण करने की कोशिश की, वह उस संबंध में सफल नहीं रहे।
इस रहस्य से कोई प्रभाव पैदा नहीं हो सका। फिल्म का रनटाइम क्रिस्प है लेकिन सेकंड हाफ में यह थोड़ी खिंची हुई लगती है। उनका कहना है कि बैकग्राउंड स्कोर भी उतना बढ़िया नहीं है, जितना होना चाहिए था।
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि अभिनेता निखिल की फिल्म ‘स्पाई’ औसत दर्जे का ही लगता है।
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