Action Against Judge: मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में उमरिया जिले के एक दुष्कर्म मामले में निचली अदालत के फैसले को रद्द कर दिया। उच्च न्यायालय ने पाया कि पॉक्सो स्पेशल जज और एडीपीओ ने नेगेटिव डीएनए रिपोर्ट को नजरअंदाज किया, जो मामले की सुनवाई में गंभीर लापरवाही थी। इसके चलते, उच्च न्यायालय ने विशेष न्यायाधीश और सहायक जिला अभियोजन अधिकारी के खिलाफ जांच के आदेश दिए हैं।
पॉक्सो के साथ इन धाराओं में दर्ज हुआ था केस
यह मामला यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम, 2012 (POCSO) के तहत दर्ज किया गया था। पीड़िता की शिकायत पर आरोपित, उसकी पत्नी और बेटे के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 363, 366-ए, 376(2)(एन) और POCSO अधिनियम की धारा 5/6 के तहत मामला दर्ज हुआ था। जांच में डीएनए रिपोर्ट भी शामिल थी, जो सागर की राज्य विधि विज्ञान प्रयोगशाला द्वारा 31 अक्टूबर 2022 को तैयार की गई थी।
जज और एडीओपी ने नजरअंदाज की रिपोर्ट
विशेष जज विवेक सिंह रघुवंशी और एडीपीओ बी. के. वर्मा को डीएनए रिपोर्ट सौंपी गई थी, लेकिन जज ने इसे नजरअंदाज कर दिया और आदेश जारी कर दिया। शासन की ओर से अधिवक्ता ने भी इस रिपोर्ट को रिकॉर्ड पर नहीं रखा और सुनवाई के दौरान आरोपी से कोई प्रश्न नहीं पूछे। जस्टिस विवेक अग्रवाल और जस्टिस देवनारायण मिश्रा की युगलपीठ ने इस मामले की सुनवाई की।
जज और एडीओपी के खिलाफा जांच के निर्देश
हाइकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया, जिसमें पाया गया कि 14 नवंबर 2022 को डीएनए रिपोर्ट निचली अदालत में प्रस्तुत की गई थी, लेकिन विशेष न्यायाधीश ने इसे चिह्नित नहीं किया और एडीपीओ ने भी इसे अभियोजन पक्ष की ओर से प्रस्तुत करने में लापरवाही बरती। यह गंभीर चूक तब सामने आई जब न्यायालय ने देखा कि अभियुक्त का बयान दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 313 के तहत दर्ज किया गया था, लेकिन डीएनए रिपोर्ट पर अभियुक्त से कोई सवाल नहीं पूछे गए। अदालत ने एडीपीओ और विशेष न्यायाधीश दोनों पर प्रथम दृष्टया लापरवाही का दोषारोपण किया और फैसला किया कि मामले को फिर से ट्रायल कोर्ट में भेजा जाए, ताकि डीएनए रिपोर्ट को सही तरीके से पेश किया जा सके।
अभियुक्त का बयान फिर लिया जाने के भी निर्देश
इसके अलावा, अदालत ने यह भी आदेश दिया कि अभियुक्त का बयान फिर से दर्ज किया जाए और इस मामले में ट्रायल 3 माह के भीतर पूरा किया जाए। हाइकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्देश जारी किया है, जिसमें कहा गया है कि मामले में डीएनए रिपोर्ट सहित सभी तथ्यों पर विचार करते हुए इसे तीन महीने के भीतर समाप्त किया जाए। साथ ही, एडीपीओ बी.के. वर्मा और विशेष न्यायाधीश विवेक सिंह रघुवंशी के खिलाफ लापरवाही के आरोपों की जांच शुरू करने का आदेश दिया गया है। जांच के बाद इसकी रिपोर्ट अदालत को देने का भी आदेश किया गया है।
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जस्टिस विवेक अग्रवाल और जस्टिस देवनारायण मिश्रा की बेंच ने सुनाया फैसला
यह फैसला डिस्ट्रिक्ट और सेशन कोर्ट के जजों की जिम्मेदारी की महत्ता को रेखांकित करता है, क्योंकि न्यायालय में प्रस्तुत साक्ष्यों पर ध्यान देना जरूरी है। किसी भी लापरवाही को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा, क्योंकि मुख्य तथ्यों को नजरअंदाज कर दिया गया है। इसके अलावा, यह भी कहा गया है कि फैसला देने से पहले सबूतों को परखना जरूरी है। यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि सभी तथ्यों पर विचार किया जाए और कोई भी महत्वपूर्ण बिंदु छूट न जाए।
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