हाइलाइट्स
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जैन मुनि आचार्य विद्या सागर जी का जमीन में दबाया जाएगा अस्थि कलश।
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कलश की जगह ही बनेगी समाधि।
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मुनि समय सागर महाराज को सौंपा जाएगा पद।
Jain Muni Acharya Vidyasagar: आचार्य विद्या सागर जी महाराज शनिवार 17 फरवरी की रात 2:35 बजे महा समाधि में लीन हो गए थे। उनके पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार रविवार 18 फरवरी को दोपहर को किया गया था। आज यानी मंगलवार 20 जनवरी को उनका अस्थि संचय होगा। आचार्य जी की चिता की राख लेने के लिए मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, गुजरात समेत कई राज्यों से लोग पहुंच रहे हैं।
आपको बता दें, कि जैन धर्म में अस्थियों को जल में विसर्जित नहीं किया जाता। आचार्य विद्या सागर जी की अस्थियों का कलश में संकलन कर उसे जमीन में दबाया जाएगा। जिस जगह पर आचार्य जी का अस्थि कलश दबाया जाएगा, वहीं उनकी समाधि बनाई जाएगी।
भभूति लेकर जा रहे अनुयायी
श्री आचार्य विद्या सागर महाराज के अंतिम संस्कार स्थल पर अभी भी अग्नि जल रही है। यहां से आचार्य श्री के अनुयायी नारियल चढ़ा रहे हैं और भभूति लेकर घर जा रहे हैं। इसके साथ ही देशभर से सभी संत पद यात्रा कर आ रहे हैं।
हर साल आचार्य श्री के दर्शन के लिए लोग यहां आते थे। सभी उनके जाने से काफी दुखी हैं। ऐसा लग रहा है मानो परिवार को कोई सदस्य चला गया है। आचार्य श्री भारत ही नहीं विश्व स्तर के मुनि थे। वे किसी एक धर्म, समुदाय ही नहीं बल्कि सभी संप्रदाय के लोगों को मानते थे। जिनके जाने से लोगों के आंखों से आंसू नहीं रुक रहे हैं।
मुनि समय सागर महाराज को सौंपा जाएगा पद
6 फरवरी को आचार्य विद्या सागर जी ने मुनि योग सागर से चर्चा कर आचार्य पद का त्याग कर दिया था। उन्होंने मुनि समय सागर जी महाराज को आचार्य पद देने की घोषणा भी की थी।
आचार्य विद्या सागर जी के उत्तराधिकारी बनाए गए मुनि सागर महाराज मध्य प्रदेश के रावल वाड़ी पहुंच गए। वे 43 साधुओं के साथ पैदल यात्रा कर 22 फरवरी को बालाघाट से डोगरगढ़ पहुंचेंगे। वहां उन्हें विधिवत रूप से आचार्य पद सौंपा जाएगा।
आचार्य श्री ने छोड़ दिया था संघ और आचार्य पद
आचार्य श्री विद्या सागर जी का इलाज 9 लोगों की टीम कर रही थी। जिनमें 2 नाड़ी वैद्य थे। 6 फरवरी को आचार्य श्री ने वैद्य से पूछा था कि उनके पास कितना समय है, तो वैद्य ने बताया था कि नाड़ी के मुताबिक अब ज्यादा उम्र नहीं बची है।
वसंत पंचमी के दिन आचार्य विद्या सागर जी ने विधिवत सल्लेखणा धारण कर ली थी। जाग्रत अवस्था में रहते हुए उपवास ग्रहण कर लिया था। आहार और संघ छोड़ दिया था। इसके साथ ही अखंड मौन धारण कर लिया था।