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Aaj Ka Mudda: क्या सिर्फ वोट बैंक हैं आदिवासी? बीजेपी-कांग्रेस किसके हैं आदिवासी

Aaj Ka Mudda: छत्तीसगढ़ में चुनाव आते ही एक बार फिर तमाम राजनीतिक दलों को आदिवासियों के हक याद आने लगे हैं.

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Bansal news
Aaj Ka Mudda: क्या सिर्फ वोट बैंक हैं आदिवासी? बीजेपी-कांग्रेस किसके हैं आदिवासी

Aaj Ka Mudda: छत्तीसगढ़ में चुनाव आते ही एक बार फिर तमाम राजनीतिक दलों को आदिवासियों के हक याद आने लगे हैं. इन दिनों प्रदेश की राजनीति घूम फिरकर सिर्फ आदिवासियों पर हो रहे अत्याचारों पर आकर टिक गई है. बीजेपी हो या कांग्रेस या फिर अन्य दल सभी को अभी सिर्फ आदिवासी याद आ रहे हैं.

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29 आदिवासी सीटे

घने जंगलों में रहकर विकास की बांट जोह रहे भोलेभाले आदिवासी राजनीतिक पार्टियों के लिए वोट बैंक के जरिए के अलावा कुछ नहीं है. ऐसा हम नहीं कह रहे है प्रदेश में हो रही घटनाएं इस बात का सबूत दे रहीं हैं. 90 विधानसभा सीटों वाली छत्तीसगढ़ विधानसभा में आदिवासी बाहुल्य 29 सीटें अहम फैक्टर साबित होती है.

इसलिए दोनों ही पार्टियां इन सीटों को अपने हाथ से नहीं जाने देना चाहती है. मौजूदा समय में आदिवासियों पर हो रही घटनाओं को विपक्ष भुना रहा है. चुनावी साल में बीजेपी और अन्य विपक्षी दल आदिवासियों को साधने के लिए कांग्रेस को घेर रहे हैं. पूर्व सीएम रमन सिंह ने प्रेस कॉन्फ्रेस कर सरकार पर कई आरोप लगाए.

सुकमा घटना पर बीजेपी मुखर

बात बीजेपी की करें तो सुकमा में 6 साल की बच्ची से रेप की घटना पर बीजेपी ने आनन फानन में एक जांच दल बनाया. जिसमे ज्यादातर आदिवासी विधायकों को रखा गया. वहीं पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह लेकर पूरी बीजेपी कांग्रेस को कठघरे में खड़ा आदिवासियों को साधने का काम कर रही है.

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बीते दिनों अमित शाह के दौरे के दौरान उनकी बस्तर के राजा कमलचंद्र भंज देव से मुलाकात बीजेपी की आदिवासियों को साधने की एक रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है.

आदिवासियों को साधने के लिए कांग्रेस का प्लान?

आदिवासियों को साधने में कांग्रेस भी पीछे नहीं है. कांग्रेस के पास मौजूदा हालात में 27 सीटें हैं और आने वाले चुनाव में कांग्रेस अपनी एक भी सीटे खोना नहीं चाहती. आदिवासियों पर पकड़ को मजबूत बनाए रखने के लिए कांग्रेस ने प्रदेश की कमान दीपक बैज को दी. मरकाम से जुड़ा हुआ धड़ा कमजोर ना हो जाए इसलिए उन्हें मंत्री पद थमा दिया.

सरगुजा की सीटों पर दबदबा बनाए रखने टीएस सिंहदेव को डिप्टी सीएम की कमान दी. वैसे राजनीतिक पार्टियों को आदिवासियों में इतनी दिलचस्पी क्यों हैं. ये समझते हैं. भोलेभाले आदिवासियों पर राजनीतिक पार्टियां बाज की तरह नजरें गड़ाए रहती है कि कोई भी एक मौका मिले और हम आदिवासियों से अपनी करीबी दिखा सकें.

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लेकिन सच तो ये है,आज भी कई गांवों के आदिवासी विकास की दौड़ में पीछे हैं. बहरहाल उम्मीद यही करते है कि इस चुनाव साल में वोट बैंक के जरिए ही सही इन भोले भाले आदिवासियों का कुछ भला हो जाए.

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