जयपुर। सस्ते कृत्रिम रंगों और गुलाल की अधिक उपलब्धता तथा बाजार में वजूद होने के बावजूद होली के उत्सव को लेकर देश के विभिन्न हिस्सों से बढ़ती मांग के साथ पारंपरिक ‘गुलाल गोटा’ फिर से बाजार में अपनी जगह बना रहा है। प्राकृतिक रंगों से भरे लाख के छोटे गोल आकार के गेंदों को ‘गुलाल गोटा’ के नाम से जाना जाता है। यह पारंपरिक रूप से जयपुर में निर्मित होते हैं। कुछ मुस्लिम परिवार इस काम में पीढ़ियों से जुटे हैं। जयपुर रंगों से भरी इन अनोखी लाख गेंदों से होली खेलने के लिए प्रसिद्ध है। यह परंपरा 400 साल पुरानी है जब तत्कालीन शाही परिवार के सदस्य गुलाल गोटे से होली खेलते थे।
गुलाल गोटा बनाने वाले कारीगरों और निर्माताओं का कहना है कि 4-5 साल पहले गुलाल गोटे की मांग में गिरावट आई थी और तुलनात्मक रूप से सस्ते कृत्रिम रंगों की प्रचुरता के कारण बाजार में गुलाल गोटे के कुछ ही खरीदार थे लेकिन अब पिछले कुछ वर्षों से, मांग में उछाल देखा गया है। इन गेंदों को लाख सामग्री से बनाया जाता है। छोटी रंगीन लाख की गेंदों जैसी आकृतियों में ढाला जाता है, जो बहुत पतली और खोखली होती हैं। लाख के गोलों में प्राकृतिक रंग/गुलाल भरा जाता है।
दूर से कोई उन्हें मिठाई समझने की गलती भी कर सकता है। पानी के गुब्बारों और पिचकारियों के विपरीत गुलाल गोटे को राहगीरों पर फेंके जाने पर चोट नहीं लगती। गुलाल गोटे भारत भर के मंदिरों में भी अपना रंग बिखेरते हैं, खासकर जयपुर के गोविंद देवजी मंदिर और मथुरा और वृंदावन के मंदिरों में। गुलाल बनाने वाले कारीगर अवाज मोहम्मद ने बताया, ‘‘हमारी वर्तमान पीढ़ी के अधिकांश लोग सिंथेटिक (कृत्रिम) गुलाल, पानी के गुब्बारों और पिचकारी के साथ होली का आनंद लेते हैं, बहुत कम लोग जानते हैं कि होली में सुंदर गुलाल गोटा का उपयोग भी किया जाता है। हालांकि, अब युवा पीढ़ी भी इसकी ओर आकर्षित हो रही है।’’
मोहम्मद ने बताया कि उनके बच्चों ने भी पिछले दशकों में लाख की सुंदर गेंदें बनाने की कला सीखी है। त्योहार के अवसर पर गुलाल गोटे की मांग बढ़ने और अधिक ऑर्डर होने के कारण वे होली के त्योहार से लगभग दो महीने पहले से गुलाल गोटा बनाना शुरू कर देते हैं। उन्होंने बताया, ‘‘गुलाल गोटे की सबसे अच्छी बात यह है कि ये इतने पतले और नाजुक होते हैं कि इन्हें आसानी से हाथ से तोड़ा जा सकता है।
गुलाल गोटे अब भी पूर्व शाही परिवारों द्वारा सबसे अधिक पसंद किए जाते हैं और ये उनके होली समारोह का एक हिस्सा हैं।’’ अवाज मोहम्मद राजस्थान स्टूडियो के द्वारा गुलाल गोटा बनाने की कला का प्रसार कर रहे हैं, यह एक ऐसा संगठन है जो कला प्रेमियों को कलाकारों के साथ व्यक्तिगत कला स्मृति चिन्ह बनाने के लिए एक मंच दे रहा है।
गुलाल गोटा निर्माण उन कलाओं में से एक है जिसे संगठन बढ़ावा दे रहा है। राजस्थान स्टूडियो के मुख्य कार्यकारी अधिकारी कार्तिक घग्गर ने मीडिया को बताया, ‘‘गुलाल गोटा एक सुंदर भारतीय शिल्प और परंपरा है जो दुनिया भर में लोकप्रियता हासिल कर रही है। भारतीय कला रूपों को गहराई से जानने के लिए, इस कला से इनके प्यार को देखते हुए, हम राजस्थान में कलाकारों के साथ जुड़े और कला प्रेमियों की रुचि और उस्ताद कारीगरों के जुनून को पाटने के लिए मंच तैयार किया।’’
एक अन्य कारीगर मणिहारों का रास्ता निवासी परवेज मोहम्मद ने बताया कि गुलाल गोटा की मांग दूसरे शहरों से भी आ रही है। उन्होंने कहा, ‘‘व्यक्तिगत समूहों और मंदिरों के अलावा, गुलाल गोटा अब व्यापक रूप से कार्यक्रमों और पार्टियों में भी इस्तेमाल किया जा रहा है। मांग में वृद्धि के पीछे यह भी एक कारण है।’’ उन्होंने बताया, ‘‘एक समय था जब गुलाल गोटे की मांग काफी कम हो गई थी और हम परेशान थे। अब न केवल जयपुर बल्कि देश के अन्य हिस्सों से भी मांग और ऑर्डर में वृद्धि के कारण स्थिति बेहतर है।’’
मोम्मद ने बताया, ‘‘यह मुख्य रूप से इसकी विशिष्टता के कारण है कि लोग इसे पसंद करते हैं। यह पर्यावरण के अनुकूल है, किसी को नुकसान नहीं पहुंचाता है और सिंथेटिक रंगों की तरह इसका कोई दुष्प्रभाव नहीं होता है।” उन्होंने बताया कि गुलाल गोटा के बाजार में मानक आकार के 6 पीस 150 रुपये में उपलब्ध हैं। पुरानी कथाओं के अनुसार, जयपुर में शाही परिवार के सदस्य अपने राज्यों में घूमते थे और राहगीरों पर गुलाल गोटा फेंकते थे।
शहर में गुलाल गोटा बनाने का काम करीब 300 साल से भी अधिक समय से चल रहा है। जयपुर में रंग बेचने वाले फुटकर विक्रेता प्रकाश वर्मा ने बताया कि सिंथेटिक रंगों की तुलना में गुलाल गोटे थोड़े महंगे होते हैं और आमतौर पर लोग सस्ते रंगों को प्राथमिकता देते हैं, लेकिन पिछले साल गुलाल गोटे की अधिक संख्या में बिक्री हुई थी। उन्होंने कहा, ‘‘इस साल भी उन्हें गुलाल गोटे की अच्छी बिक्री की उम्मीद है। यह एक अनोखी चीज है और युवा पीढ़ी इसे अधिक पसंद करती है।