नई दिल्ली। आज रविवार यानि 4 सितंबर Radha Ashtami 2022 को पूरे देश में श्री राधाष्टमी radha krisha story का त्योहार बड़ी धूमधाम से मना जा रहा है। इस दिन राधारानी का जन्म हुआ था। ऐसी मान्यता है कि hindi news यदि आप कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण को प्रसन्न करना हो, तो श्रीराधा की पूजा करनी चाहिए। अगर ऐसा किया जाता है तो श्रीकृष्ण की कृपा अपने आप हो जाती है। ज्योतिषाचार्यों की मानें तो इस दिन श्रीराधा चालीसा का पाठ करने से राधारानी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। यदि आप भी आज का मौका खोना नहीं चाहते तो यहां जाने पूरी पूरा विधि।
राधाष्टमी का महत्व समझें
ज्योतिषाचार्य कहते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण को प्रसन्न करना हो तो श्रीराधा का पूजन करो। श्रीकृष्ण की कृपा स्वयं हो जाएगी।
भगवान श्रीकृष्ण अक्सर कहा करते थे।
राधा मेरी स्वामिनी, मैं राधे को दास
जनम-जनम मोहे दीजिए
वृंदावन को वास
यानी श्रीकृष्ण राधारानी को अपनी स्वामिनी मानते थे। इतना ही स्वयं को उनका दास कहा करते थे। ये तो सभी जानते हैं श्रीकृष्ण वृंदावन से विशेष प्रेम किया करते थे। यानि भगवान अगर भगवान श्री कृष्ण को प्रसन्न करना है तो आपको राधारानी की पूजा करनी चाहिए। वहां श्रीकृष्ण की मौजूदगी तो जरूर होगी। पुराणादि में राधाजी का कृष्ण वल्लभा कहकर गुणगान किया गया है।
ज्योतिषाचार्य का कहना है कि श्रीमद देवी भागवत में श्रीराधा की पूजा की अनिवार्यता का निरूपण करते हुए कहा है कि श्री राधा की पूजा न की जाए तो भक्त श्री कृष्ण की पूजा का अधिकार भी नहीं रखता। श्रीराधा भगवान श्री कृष्ण के प्राणों की अधिष्ठात्री देवी मानी गई हैं। आज के दिन राधारानी के मंत्रों का जाप करने, राधाष्टमी की कथा पढ़ने या सुनने मात्र से व्यक्ति के जाने.अनजाने किए गए तमाम पाप मिट जाते हैं और अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
अष्टमी पूजन मुहूर्त –
अष्टमी तिथि प्रारम्भ 3 सितम्बर 2022, शनिवार के दिन दोपहर 12ः28 बजे से हो चुका है। ये 4 सितंबर रविवार के दिन सुबह 10ः39 बजे तक रहेगी। उदया तिथि के कारण इसे आज मनाया जा रहा है। आज अमृत काल दोपहर 01ः22 मिनट से 02ः53 मिनट तक है। वहीं 04 बजकर 30 मिनट से 06 बजे तक राहुकाल रहेगा। राहुकाल को छोड़कर दिनभर में किसी भी समय राधारानी का विधि विधान से पूजन किया जा सकता है। लेकिन अमृतकाल में पूजन करना श्रेष्ठ है।
ऐसे करें राधारानी का पूजन
सबसे पहले पूजा का स्थान साफ करके राधा और कृष्ण की मूर्ति स्थापित करें। राधा और कृष्ण का आवाह्न करें। इसके बाद पूजन प्रारंभ करें। मूर्ति को पंचामृत से स्नान कराकर। उनका श्रृंगार करें। इसके बाद उन्हें, रोली, अक्षत, धूप, दीप, पुष्प, नैवेद्य आदि अर्पित करें। मंत्रजाप करें और राधारानी की कथा का पाठ करें। अंत में आरती करें। संभव हो तो दिन भर व्रत रखें। नहीं रह सकते तो पूजा के बाद व्रत खोल सकते हैं।
श्री राधा चालीसा
॥ दोहा ॥
श्री राधे वुषभानुजा,
भक्तनि प्राणाधार ।
वृन्दाविपिन विहारिणी,
प्रानावौ बारम्बार ॥
जैसो तैसो रावरौ,
कृष्ण प्रिय सुखधाम ।
चरण शरण निज दीजिये,
सुन्दर सुखद ललाम ॥
॥ चौपाई ॥
जय वृषभान कुंवारी श्री श्यामा ।
कीरति नंदिनी शोभा धामा ॥
नित्य विहारिणी श्याम अधर ।
अमित बोध मंगल दातार ॥
रास विहारिणी रस विस्तारिन ।
सहचरी सुभाग यूथ मन भावनी ॥
नित्य किशोरी राधा गोरी ।
श्याम प्रन्नाधन अति जिया भोरी ॥
करुना सागरी हिय उमंगिनी ।
ललितादिक सखियाँ की संगनी ॥
दिनकर कन्या कूल विहारिणी ।
कृष्ण प्रण प्रिय हिय हुल्सवानी ॥
नित्य श्याम तुम्हारो गुण गावें ।
श्री राधा राधा कही हर्शवाहीं ॥
मुरली में नित नाम उचारें ।
तुम कारण लीला वपु धरें ॥
प्रेमा स्वरूपिणी अति सुकुमारी ।
श्याम प्रिय वृषभानु दुलारी ॥
नावाला किशोरी अति चाबी धामा ।
द्युति लघु लाग कोटि रति कामा ॥10
गौरांगी शशि निंदक वदना ।
सुभाग चपल अनियारे नैना ॥
जावक यूथ पद पंकज चरण ।
नूपुर ध्वनी प्रीतम मन हारना ॥
सन्तता सहचरी सेवा करहीं ।
महा मोड़ मंगल मन भरहीं ॥
रसिकन जीवन प्रण अधर ।
राधा नाम सकल सुख सारा ॥
अगम अगोचर नित्य स्वरूप ।
ध्यान धरत निशिदिन ब्रजभूपा ॥
उप्जेऊ जासु अंश गुण खानी ।
कोटिन उमा राम ब्रह्मणि ॥
नित्य धाम गोलोक बिहारिनी ।
जन रक्षक दुःख दोष नासवानी ॥
शिव अज मुनि सनकादिक नारद ।
पार न पायं सेष अरु शरद ॥
राधा शुभ गुण रूपा उजारी ।
निरखि प्रसन्ना हॉट बनवारी ॥
ब्रज जीवन धन राधा रानी ।
महिमा अमित न जय बखानी ॥ 20
प्रीतम संग दिए गल बाहीं ।
बिहारता नित वृन्दावन माहीं ॥
राधा कृष्ण कृष्ण है राधा ।
एक रूप दौऊ -प्रीती अगाधा ॥
श्री राधा मोहन मन हरनी ।
जन सुख प्रदा प्रफुल्लित बदानी ॥
कोटिक रूप धरे नन्द नंदा ।
दरश कारन हित गोकुल चंदा ॥
रास केलि कर तुम्हें रिझावें ।
मान करो जब अति दुःख पावें ॥
प्रफ्फुल्लित होठ दरश जब पावें ।
विविध भांति नित विनय सुनावें ॥
वृन्दरंन्य विहारिन्नी श्याम ।
नाम लेथ पूरण सब कम ॥
कोटिन यज्ञ तपस्या करुहू ।
विविध नेम व्रत हिय में धरहु ॥
तू न श्याम भक्ताही अपनावें ।
जब लगी नाम न राधा गावें ॥
वृंदा विपिन स्वामिनी राधा ।
लीला वपु तुवा अमित अगाध ॥ 30
स्वयं कृष्ण नहीं पावहीं पारा ।
और तुम्हें को जननी हारा ॥
श्रीराधा रस प्रीती अभेद ।
सादर गान करत नित वेदा ॥
राधा त्यागी कृष्ण को भाजिहैं ।
ते सपनेहूं जग जलधि न तरिहैं ॥
कीरति कुमारी लाडली राधा ।
सुमिरत सकल मिटहिं भाव बड़ा ॥
नाम अमंगल मूल नासवानी ।
विविध ताप हर हरी मन भवानी ॥
राधा नाम ले जो कोई ।
सहजही दामोदर वश होई ॥
राधा नाम परम सुखदायी ।
सहजहिं कृपा करें यदुराई ॥
यदुपति नंदन पीछे फिरिहैन ।
जो कौउ राधा नाम सुमिरिहैन ॥
रास विहारिणी श्यामा प्यारी ।
करुहू कृपा बरसाने वारि ॥
वृन्दावन है शरण तुम्हारी ।
जय जय जय व्र्शभाणु दुलारी ॥ 40
॥ दोहा ॥
श्री राधा सर्वेश्वरी,
रसिकेश्वर धनश्याम ।
करहूँ निरंतर बास मै,
श्री वृन्दावन धाम ॥
॥ इति श्री राधा चालीसा ॥
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