भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को 15 जुलाई के दिन देश का सर्वोच्य सम्मान भारत रत्न दिया गया था। नेहरू ऐसे पहले शख्स थे जिन्हें पीएम पद पर रहते है भारत रत्न से नवाजा गया था। इसके बाद इंदिरा गांधी को भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। देश में भारत रत्न पुरस्कार देने की शुरूआत साल 1954 से हुई थी।
भारत रत्न पुरस्कार की शुरुआत साल 1954 में की गई थी। पुरस्कार शुरू होने के दूसरे साल ही नेहरू को यह पुरस्कार देने की घोषणा की गई। जुलाई 1955 को जवाहर लाल नेहरू को विशेष रूप से आमंत्रित गणमान्य लोगों की मौजूदगी में भारत रत्न से विभूषित किया गया। देश के जाने माने पत्रकार राशिद किदवई ने अपनी एक किताब में लिखा है कि राष्ट्रपति भवन में आयोजित नेहरू के भारत रत्न सम्मान समारोह में तत्कालीन केंद्रीय गृह सचिव एवी पाई ने सम्मान पाने वाली विभूतियों के नाम पुकारे, लेकिन नेहरू का प्रशस्ति-पत्र नहीं पढ़ा गया था। प्रशस्तियों की आधिकारिक पुस्तिका में प्रधानमंत्री का महज नाम दर्ज है। इसमें उनके द्वारा की गई सेवाओं का वहां कोई जिक्र नहीं है। सामान्य रूप से यह उल्लेख परम्परागत रूप से उस पुस्तिका में किया जाता है। उस समय के लोगों का कहना था कि देश और समाज के लिए नेहरू के अप्रतिम योगदान का चंद पैराग्राफ में जिक्र करना कठिन होगा, इसलिए उसे छोड़ दिया गया।
क्या नेहरू ने खुद को दे दिया था भारत रत्न
नेहरू को भारत रत्न से सम्मानित किए जाने को लेकर एक विवाद भी है कि उन्होंने खुद को ही भारत रत्न दिए जाने की सिफारिश कर दी। सोशल मीडिया पर भी इस तरह का बातें खूब चली। आमतौर पर भारत रत्न सम्मान दिए जाने को लेकर प्रधानमंत्री की तरफ से राष्ट्रपति को सिफारिश भेजी जाती है। इसके बाद राष्ट्रपति इस पर फैसला करता है। चूंकि, जवाहर लाल नेहरू को जिस समय भारत रत्न देने का फैसला किया गया, उस समय वह विदेश दौरे पर थे। बताया जाता है कि भारत रत्न दिए जाने को लेकर जानकारी तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने नेहरू के लौटने तक किसी से साझा नहीं की थी। ऐसे में यही लगता है कि नेहरू ने खुद को भारत रत्न दे दिया था।
नेहरू ने किया था राजेंद्र प्रसाद का विरोध
आपको बता दें कि नेहरू और राजेन्द्र प्रसाद के बीच अंधरूनी दूरियां थी लेकिन दोनों नेता एक दूसरे को पूरा सम्मान देते थे। आजादी के बाद जब राष्ट्रपति चुनने का सवाल आया तो नेहरू डॉ. राजेंद्र प्रसाद के पक्ष में नहीं थे। वह चाहते थे कि तत्कालीन गवर्नर जनरल सी. राजगोपालाचारी ही राष्ट्रपति बने। हालांकि, सरदार वल्लभ भाई पटेल इसके समर्थन में नहीं थे। पटेल और राजेंद्र प्रसाद की पार्टी संगठन में अच्छी पकड़ थी। पटेल की रणनीति का नतीजा ही था कि बाद में राजेंद्र प्रसाद देश के पहले राष्ट्रपति बने। जब गुजरात में सोमनाथ मंदिर के पुनरुद्धार के बाद उसके उद्घाटन कार्यक्रम में शामिल होने के लिए राजेन्द्र प्रसाद के जाने का चल रहा था तो नेहरू ने कई कोशिशें की थी कि राजेन्द्र प्रसाद इस कार्यक्रम में शामिल नहीं हो लेकिन राजेन्द्र प्रसाद नेजरू के विरोध के बाद भी इस कार्यक्रम में शामिल हुए थे।