Line Shah Baaba : अगर आप कही खड़े हैं और आपको पता चले की यह इबादत वाली जगह हैं, तो आप कैसा महसूस करेंगे? और वो जगह कोई रेलवे स्टेशन का प्लेटफॉर्म हो तो आप यकीन नहीं करेंगे। लेकिन यह सच है। भारत में एक ऐसा सेंट्रल रेलवे स्टेशन का प्लेटफॉर्म है, जहां यात्रीयों को अगर पता चल जाए कि यह इबादत करने वाली जगह है तो लोग जूते-चप्पल पहनकर नहीं जाते है। और अगर कोई गलती से चला भी जाए तो तुरंत उपर वाले से माफी मांगकर अपना मत्था टेक लेते है…
बीच प्लेटफार्म पर बनी है मजार
दरअसल, हम बात कर रहे है कानपुर सेंट्रल रेलवे स्टेशन के प्लेटफॉर्म नंबर 3 की। यहां प्लेटफार्म के बीच में एक मजार (Line Shah Baaba) बनी है। प्लेटफॉर्म पर 15 फीट लंबी और 2 फीट चौड़ी जगह को सफेद रंग से कवर किया गया है। इस मजार को लाइन बाबा (Line Shah Baaba) के नाम से जाना जाता है। इस मजार पर हर गुरूवार को बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ जुटती है। बताया जाता हैं कि यह मजार (Line Shah Baaba) कई सालों से बीच प्लेटफॉर्म पर मौजूद है। प्लेटफॉर्म पर एक बोर्ड भी लगा हुआ है। जिस पर लिखा है, हजरत सैयद लाइन शाह बाबा मजार, प्लेटफार्म नंबर 3, कृपया सफाई का विशेष ध्यान रखें।
क्या है मजार की कहानी
बताया जाता है कि यह मजार (Line Shah Baaba) कई साल पुरानी है। कहा जाता है कि हजरत सैयद लाइन शाह बाबा का प्रताप आज भी देखने को मिलता है। मजार के मौलवी रहमत अली के अनुसार करीब 50 सालों पहले जब मजार (Line Shah Baaba) वाली जगह पर रेलवे लाइन की पटरियां बिछाने का काम शुरू किया गया था। रेलवे दिन में पटरियां बिछाकर जाते थे। लेकिन अगले दिन यह पटरियां उखड़ जाती थी। पटरियों के उखड़ने का यह सिलसिला कई दिनों तक चलता रहा। एक दिन रेलवे के एक कर्मचारी को सपना आया कि यहां एक मजार (Line Shah Baaba) बना दी जाए तभी पटरियां बिछाने का काम पूरा हो पाएगा। नहीं तो पटरियां उखड़त रहेंगी। इसके बाद हजरत सैयद लाइन शाह बाबा की मजार का निर्माण कराया गया।
जिसने की हटाने की कोशिश हुआ बुरा अंजाम?
बताया यह भी जाता है कि बीच प्लेटफॉर्म पर बनी इस मजार (Line Shah Baaba) के चलते यात्रियों को असुविधा होती है। इसके लिए रेलवे के अधिकारी और ठेकेदारों ने मजार को हटाने की कोशिश की तो उसकी मौत हो गई। बताया जाता है कि ऐसा एक बार नहीं बल्कि कई बार हो चुका है। यह भी बता दें कि गुरुवार के दिन श्रद्धालुओं की भीड़ यात्रियों को उतरने नहीं देती। गुरूवार के दिन प्लेटफॉर्म पर इतनी भीड़ हो जाती है कि यात्रियों को जगह नहीं मिलती, गुरूवार के दिन मजार पर मेला जैसा महौल होता है।