BHOPAL:इस देश के प्रत्येक व्यक्ति को संविधान के अनुच्छेद-21(article-21) के तहत सम्मानजनक या गरिमामय जीवन जीने का अधिकार है…जी हां यही आर्टिकल देश के हर नागरिक के साथ वेश्याओं को भी ताकत देता है। कि वो अपनी मर्जी से सेक्स वर्कर का काम कर सकें।आखिर ये बात एकदम से चर्चा में आई कैसे? तो हम आपको बता दें इस बात के चर्चा में आने का कारण है सुप्रीम कोर्ट का एक आदेश ।जहां जस्टिस एल नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली बेंच जिसमें शामिल थे जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एएस बोपन्ना। इन तीन जजों की बेंच ने अपने एक महत्वपूर्ण आदेश में कहा है कि, वेश्यावृत्ति भी एक प्रोफेशन है, ऐसे में अपनी मर्जी से पेशा अपनाने वाले सेक्स वर्कर्स को सम्मानीय जीवन जीने का हक है, इसलिए पुलिस ऐसे लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई न करे।सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण आदेश में कहा है कि शीर्ष अदालत ने इस मामले को लेकर केंद्र और राज्य सरकारों के साथ पुलिस को भी कई दिशा-निर्देश जारी किए हैं।सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश का मतलब है कि अब पुलिस सेक्स वर्कर्स के काम में साधारण परिस्थितियों में बाधा नहीं डाल सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में केंद्र सरकार को अपना जवाब देने को कहा है। मामले की अगली सुनवाई 27 जुलाई को होनी है।
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सुप्रीम कोर्ट ने अपने इस फैसले में कौन से महत्वपूर्ण निर्देश दिए हैं:
1.अगर कोई सेक्स वर्कर्स अपनी इच्छा से शारीरिक संबंध बनाते हैं तो उन्हें गिरफ्तार करने या छापेमारी या ऐसी कोई कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए जिससे कि,वो परेशान हों।जो लोग सेक्स वर्कर हैं उनकी संतानो को मां की देखभाल से वंचित न करें।साथ ही अगर कोई नाबालिग वेश्यालय या सेक्स वर्कर के साथ रहते हुए पाया जा रहा है तो प्रथम दृष्ट्या ये न मान लिया जाए कि उसकी तस्करी की गई है।
2.वहीं अगर सेक्स वर्कर दावा कर रही है कि नाबालिग उसका बेटा/बेटी है, तो इसे सुनिश्चित करने के लिए टेस्ट कराया जा सकता है। अगर दावा सही है तो नाबालिग को जबर्दस्ती अलग नहीं करना चाहिए।उसे उसके मां का प्यार मिलना चाहिए।
3.चूंकि,इस देश में वेश्यालय चलाना गैरकानूनी है इसलिए ऐसे मामलों को छोड़कर जब कोई सेक्स वर्कर खुद की इच्छा से शारीरिक कार्य करे तो पुलिस उन्हें न तो प्रताड़ित करे। ना ही छापेमारी करे न ही ऐसा कोई कृत्य करे जिससे कि स्वेच्छा से कार्य करने वाले सेक्स वर्कर्स को परेशानी हो।क्योंकि भारत के हर नागरिक को कानून एक नजरिए से देखता है इसलिए जब भी कोई सेक्स वर्कर्स उनके विरुद्ध हुई हिंसा या यौन उत्पीड़न की शिकायतों पर पुलिस के पास आए तो पुलिस का दायित्व है।उन्हें हर सहायता उपलब्ध कराए जिनमें तुरंत मेडिकल और कानूनी सहायता उपलब्ध कराना शामिल है।
4.आदेश में अरेस्ट, रेड और रेस्क्यू ऑपरेशन के दौरान मीडिया की भूमिका को लेकर कहा गया है कि मीडिया को उनकी पहचान नहीं देनी चाहिए ताकि उनकी पहचान उजागर न हो सके।
5.पुलिस को कंडोम के इस्तेमाल को सेक्स वर्कर्स के अपराध का सबूत नहीं समझना चाहिए।
6.मजबूरी में फस चुके सेक्स वर्कर्स को अगर आप बचाते हैं या कोई सेक्स वर्कर स्वेच्छा से काम छोड़कर सुधरना चाहता है तो कम से कम 2-3 सालों के लिए सुधार गृहों में भेजा जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि अगर मजिस्ट्रेट फैसला करता है कि सेक्स वर्कर ने अपनी सहमति दी है, तो उन्हें सुधार गृहों से जाने दिया जा सकता है।
7.वहीं डिसिजन मेकिंग प्रोसेस को लेकर आदेश में कहा गया है कि, केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को सेक्स वर्कर्स को उनसे जुड़े किसी भी पॉलिसी या प्रोग्राम को लागू करने या सेक्स वर्क से जुड़े किसी कानून/सुधार को बनाने समेत सभी डिसिजन मेकिंग प्रोसेस में शामिल करना चाहिए।
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आखिर सुप्रीम कोर्ट का ये आदेश आया क्यों है
विदित हो कि ये आदेश सुप्रीम कोर्ट ने 2010 के एक मामले की सुनवाई करते हुए दिया है, जो मानव तस्करी और सेक्स वर्कर्स के रिहैबिलिटेशन से जुड़ा है। साथ ही यहां आपको एक बात बताना अत्यधिक जरूरी है कि,सुप्रीम कोर्ट का वेश्यावृत्ति पर आदेश अंतरिम है न कि अंतिम आदेश कोर्ट के दिशा-निर्देश तब तक लागू रहेंगे जब तक सरकार इस पर कानून नहीं बनाती है।’’वहीं कानूनविदों का कहना है कि,”सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले में आर्टिकल-21, 14 और 19 के तहत दो प्रमुख बातें कही गई हैं,एक प्रत्येक व्यक्ति को जीवन का अधिकार है दूसरा प्रत्येक व्यक्ति को सम्मानजनक जीवन का अधिकार है। सम्मानजनक जीवन के तहत रोजगार का भी अधिकार है।
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सुप्रीम कोर्ट ने क्यों दिया ये फैसला
भारत दुनिया के उन देशों में शामिल है, जहां वेश्यावृत्ति वैध है, बशर्ते वो सेक्स वर्कर की रजामंदी से हो। दुनिया के टॉप-100 देशों में से जिन 53 देशों में वेश्यावृत्ति वैध है, भारत भी उनमें से एक है।
भारत में सेक्स वर्कर्स के साथ आमतौर पर पुलिस का रवैया बेहद क्रूर रहता है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में भी इसका जिक्र करते हुए कहा, ‘’ये देखा गया है कि सेक्स वर्कर्स के प्रति पुलिस का रवैया बेहद निर्दयी और हिंसक रहता है। ये ऐसा है जैसे ये एक ऐसा वर्ग है, जिनके अधिकारों को मान्यता नहीं है।’’
कोर्ट ने साफ किया कि सेक्स वर्कर्स को भी संविधान में सभी नागरिकों को मिले बुनियादी मानवाधिकार और अन्य अधिकार प्राप्त हैं। कोर्ट ने साफ किया है पुलिस को सभी सेक्स वर्कर्स के साथ सम्मानजनक व्यवहार करना चाहिए और उन्हें मौखिक या शारीरिक रूप से प्रताड़ित, उनके साथ हिंसा या उन्हें जबरन सेक्शुअल एक्टिविटी में शामिल होने के लिए मजबूर नहीं करना चाहिए।
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