EVM Facts: चुनाव और चुनाव के बाद जिस चीज की सबसे ज्यादा चर्चा होती है वह है ईवीएम मशीन (Electronic Voting Machine)। पिछले कुछ वर्षों से चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद EVM हैकिंग के आरोप लगते रहे हैं। ऐसे में आज हम आपके साथ साझा करेंगे इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन से जुड़ी कुछ बेहद दिलचस्प जानकारियां, जिसे शायद ही आप जानते होंगे।
कैसे काम करती है मशीन
EVM, वोटों को रिकॉर्ड करने वाली एक इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस है। जो बैटरी से चलती हैं। इसमें दो यूनिट होती हैं। पहली कंट्रोल और दूसरी बैलेटिंग यूनिट। दोनों एक दूसरे से पांच मीटर लंबी केबल से जुड़ी होती हैं। जब आप वोट डालने के लिए पोलिंग बुथ पर जाते हैं, तो चुनाव अधिकारी बैलेट मशीन के जरिए वोटिंग मशीन को ऑन करता है। इसके बाद ही आप अपने पसंदीदा उम्मीदवार के चुनाव चिन्ह के आगे वाले बटन को दबाकर वोट कर सकते हैं।
भारत के लिए इन्होंने बनाई थी पहली EVM
पहले लोग बैलेट पेपर के जरिए वोट करते थे। लेकिन मतदान के दौरान हुई धांधली को देखते हुए चुनाव आयोग ने ईवीएम के जरिए चुनाव कराने का फैसला किया। भारत के लिए पहली ईवीएम, एमबी हनीफा ने बनाई थी और पहली बार इसका इस्तेमाल साल 1981 में केरल की परूर विधानसभा में 50 मतदान केंद्रों पर किया गया था। साल 1988 में जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 में संशोधन कर नई धारा 61ए जोड़ी गई। इस संशोधन के जरिए चुनाव आयोग को मतदान में ईवीएम मशीनों का इस्तेमाल करने का अधिकार दिया गया।
IIT मुंबई के फैकल्टी मेंबर ने इसके डिजाइन को तैयार किया है
अधिकार मिलने के एक साल बाद साल 1989 में भारत इलेक्ट्रॉनिक लिमिटेड और इलेक्ट्रॉनिक्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड की साझेदारी में ईवीएम के मॉडल को तैयार करने का ऑर्डर दिया गाय। मालूम हो कि इन मशीनों के इंडस्ट्रियल डिजाइनर IIT मुंबई के फैकल्टी मेंबर थे। 1998 में नए डिजाइन किए गए EVM का इस्तेमाल मध्यप्रदेश, राजस्थान और दिल्ली के कुल 16 विधानसभा सीटों पर किया गया। वहीं पहली बार पूरी तरह से ईवीएम मशीनों का इस्तेमाल साल 2004 के आम चुनावों में किया गया था।
31 देश अब तक ईवीएम का इस्तेमाल कर चुके हैं
भारत के अलावा चुनावों में अब तक 31 देश ईवीएम का इस्तेमाल कर चुके हैं। हालांकि, इनमें से सिर्फ चार ही देश ऐसे हैं, जो राष्ट्रीय स्तर पर इसका इस्तेमाल करते हैं। वहीं, कुछ देश ऐसे भी हैं जिन्होंने एक बार इसका इस्तेमाल करने के बाद इसे इस्तेमाल करने से मना कर दिया। भारत में भी समय-समय पर ईवीएम का विरोध किया जाता रहा है। 2009 के आम चुनावों में पहली बार भाजपा ने अपनी हार का श्रेय ईवीएम में गड़बड़ी को दिया था। कुल मिलाकर कहें तो सभी दल समय-समय पर अपनी हार का दोष ईवीएम पर मढ़ते रहे हैं। यही वजह है कि अब वीवीपैट को भी ईवीएम से जोड़ दिया गया है। जिसमें मतदाता अपने वोटिंग उम्मीदवार का चुनाव चिन्ह देख सकता है।
दो तरह की होती हैं मशीन
EVM में दो तरह की मशीन होती हैं। M2 EVM और M3 EVM। M2 में नोटा समेत 64 उम्मीदवारों के निर्वाचन कराए जा सकते हैं। इसके लिए 4 बैलेटिंग यूनिटों को जोड़ना पड़ता है। एक मशीन पर 16 उम्मीदवार होते हैं। वहीं M3 में नोटा समेत 384 उम्मीदवार चुने जा सकते हैं। इसके लिए 24 बैलटिंग यूनिटों को जोड़ा जा सकता है। ध्यान रहे, इस मशीन की कंट्रोल यूनिट में डाटा तब तक सुरक्षित रहता है, जब तक कि उसे जानबूझकर हटाया न जाए।
कितनी होती है एक EVM की कीमत
वहीं अगर ईवीएम की कीमत की बात करें तो एम2 ईवीएम की कीमत करीब 8670 रुपये है। वहीं, एम3 की कीमत करीब 17,000 रुपये प्रति यूनिट है। EVM मशीन चुनाव आयोग के लिए किसी वरदान से कम नहीं है, क्योंकि भारत में चुनाव कराना और तय समय पर सब कुछ करना EVM के कारण ही आसान हो पाया है। पहले जहां वोटों की गिनती में 30 से 40 घंटे का समय लगता था, वहीं अब महज 3 से 5 घंटे के अंदर हो जाता है।