Happy National Youth Day 2022: आज यानी 12 जनवरी को स्वामी विवेकानंद की जयंती मनाई जा रही है, उनके जन्म के उपलक्ष्य में इस दिन को पूरे देश में राष्ट्रीय युवा दिवस (National Youth Day) के रूप में मनाया जाता है। 19वीं सदी में भारत की धरती पर नरेंद्रनाथ के रूप में एक ऐसे व्यक्ति का जन्म हुआ, जिसने अपने विचारों से दुनिया में क्रांति ला दी।
कोलकाता में हुआ था जन्म
स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में हुआ था। स्वामी विवेकानंद का असली नाम नरेंद्रनाथ दत्त था। वह वेदांत के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु थे। छोटी उम्र से ही उन्हें अध्यात्म में रुचि हो गई थी। पढ़ाई में अच्छे होने के बावजूद जब वह 25 साल के हुए तो अपने गुरु से प्रभावित होकर नरेंद्रनाथ ने सांसारिक मोह माया त्याग दी और संयासी बन गए। संन्यास लेने के बाद उनका नाम विवेकानंद पड़ा। 1881 में विवेकानंद की मुलाकात रामकृष्ण परमहंस से हुई।
रामकृष्ण परमहंस के प्रिय शिष्य थे
रामकृष्ण परमहंस अपने शिष्यों को नर-नारायण की सेवा के लिए प्रेरित करते थे। रामकृष्ण परमहंस के बारे में कहा जाता है कि वे इतनी सरलता, सहजता और व्यवहारिकता से अध्यात्म की चर्चा करते थे कि उनके सानिध्य में आने वाला प्रत्येक व्यक्ति अपने आप को परिवर्तित किए बिना नहीं रह पाता था। परमहंस मानते थे कि नर-सेवा ही नारायण-सेवा है। स्वामी विवेकानंद रामकृष्ण परमहंस के सबसे प्रिय शिष्य थे। स्वामी विवेकानंद के आदर्श शख्सियत के पीछे इन्ही का हाथ माना जाता है।
जिससे भी मिलते उसे अपना बना लेते
स्वामी विवेकानंद भी अपने गुरू की तरह बने। वे जिस भी किसी शख्स से मिलते उसे अपना बना लेते। अपने वैचारिक फलक को विस्तार देने के लिए वे अक्सर देश-दुनिया की यात्रा करते रहते थे। इसी क्रम में एक बार उनके विचारों से प्रभावित होकर एक विदेशी महिला ने उनसे शादी करने का प्रस्ताव रखा। स्वामी विवेकानंद ने हंसते हुए उस महिला से पूछा आखिर मुझसे ही क्यों, आप जानती नहीं कि मैं एक सन्यासी हूं?
महिला चरणों में गिर गई
महिला ने कहा- हां जानती हूं, लेकिन मैं आपके जैसा ही गौरवशाली, सुशील और तेजमयी पुत्र चाहती हूं और ये तभी संभव है जब आप मुझसे विवाह करेंगे। विवेकानंद ने कहा- हमारी शादी तो संभव नहीं है। लेकिन एक उपाय है आज से मैं ही आपका पुत्र बन जाता हूं, आप मेरी मां बन जाओ। आपको मेरे रूप में मेरा जैसा बेटा मिल जाएगा और मुझे विवाह करने की भी आवश्यकता नहीं पड़ेगी। इतना कहना था कि विदेशी महिला स्वामी विवेकानंद के चरणों में गिर गई और बोली प्रभु आप साक्षात ईश्वर के रूप हैं।
संस्कृति का निर्माण हमारा चरित्र करता है
इसी तरह स्वामी विवेकानन्द विदेश गए तो उन्हें भगवा वस्त्र और पगड़ी देख कर लोगों ने पूछा, – आपका बाकी सामान कहां है ? स्वामी जी बोले कि बस मेरे पास इतना ही सामान है, इस तरह के जवाब पर कुछ लोगों ने मजा लेते हुए कहा कि यह कैसी संस्कृति है आपकी तन पर केवल एक भगवा चादर लपेट रखी है। कोट पतलून जैसा कुछ भी पहनावा नहीं है ?इस पर स्वामी विवेकानंद जी मुस्कुराए और बोले कि हमारी संस्कृति आपकी संस्कृति से भिन्न है। आपकी संस्कृति का निर्माण आपके दर्जी करते है। जबकि हमारी संस्कृति का निर्माण हमारा चरित्र करता है।
लोग हैरान थे
एक और विदेश यात्रा पर उनके स्वागत के लिए कई लोग आये हुए थे उन लोगों ने स्वामी विवेकानंद की तरफ हाथ मिलाने के लिए हाथ बढाया और इंग्लिश में हेलो कहा जिसके जवाब में स्वामी जी ने दोनों हाथ जोड़कर नमस्ते कह कि उन लोगो को लगा की शायद स्वामी जी को अंग्रेजी नहीं आती है तो उन लोगो में से एक ने हिंदी में पूछा आप कैसे हैं? तब स्वामी जी ने कहा कि आई एम फाइन थैंक यू। उन लोगो को बड़ा ही आश्चर्य हुआ उन्होंने स्वामी जी से पूछा की जब हमने आपसे इंग्लिश में बात की तो आपने हिंदी में उत्तर दिया और जब हमने हिंदी में पूछा तो आपने इंग्लिश में कहा इसका क्या कारण है। इस सवाल के जवाब में स्वामी जी ने कहा कि जब आप अपनी मां का सम्मान कर रहे थे तब मैं अपनी मां का सम्मान कर रहा था और जब आपने मेरी मां का सम्मान किया तब मैंने आपकी मां का सम्मान किया।