नई दिल्ली। मोतियाबिंद से परेशान Cataracts Treatment “NPI-002” मरीजों के लिए एक अच्छी खबर आई है। वैज्ञानिकों ने एक ऐसा कमाल कर दिखाया है जिसमें एक इम्प्लांट करके आखों में बढ़ते मोतियाबिंद को रोका जा सकता है। दजअसल वैज्ञानिकों ने छर्रे की तरह दिखने वाला एक ऐसा इम्प्लांट तैयार किया है जो मोतियाबिंद का मुख्य कारण माने जाने वाले कैल्शियम को बढ़ने नहीं देता। इस इम्प्लांट को तैयार करने वाली अमेरिका की फार्मा कंपनी नेक्युटी फार्मास्युटिकल्स का दावा है, इसके जरिए काफी हद तक सर्जरी को रोका जा सकेगा।
हर किसी को नहीं कराना होगी सर्जरी
आंखों में होने वाले इस मोतियाबिंद के लिए हर किसी को सर्जरी की जरूरत नहीं पड़ेगी। वैज्ञानिकों द्वारा सुझाई गई इस नई तकनीक में एक छर्रे के जैसे दिखने वाला इम्प्लांट बनया गया है जो आंखों के इस मोतियाबिंद को बढ़ने ही नहीं देगा। इसे तैयार करने वाली अमेरिका की फार्मा कंपनी नेक्युटी फार्मास्युटिकल्स का दावा है कि इसकी सहायता से काफी हद तक सर्जरी को रोका जा सकता है।
ऐसे काम करता है नया इम्प्लांट, जल्द शुरू होगा हृयूमन ट्रायल
अमेरिकी फार्मा कम्पनी नेक्युटी फार्मास्युटिकल्स के अनुसार इस इम्प्लांट को NPI-002 नाम दिया गया है। आपको बता दें कि आमतौर पर आंखों में कैल्शियम का स्तर पर बढ़ने से मोतियाबिंद के होने की स्थिति बनती है। वैज्ञानिकों ने जो यह नया इम्प्लांट बनाया है वो इसी कैल्शियम को बढ़ने से रोकेगा। विशेष रूप से बुजुर्गों में बढ़ती मोतियाबिंद की बीमारी को रोकने के लिए नए इम्प्लांट का ह्यूमन ट्रायल बहुत जल्द शुरू होगा। जिसमें 65 वर्ष से अधिक उम्र के करीब 30 लोगों को शामिल किया जाएगा। कंपनी का यह भी दावा है कि ह्यूमन ट्रायल सफल होने पर ये इम्प्लांट एक बड़ा बदलाव साबित हो सकता है।
सीधें आंखों में किया जा सकता है इंजेक्ट —
अमेरिका की इस कंपनी ने दावा किया है कि मरीजों की आंख में इस इम्प्लांट को सीधे इंजेक्ट किया जाता है। जो आंखों में धीरे-धीरे एंटीऑक्सीडेंट्स पहुंचाता है। जिससे मोतियाबिंद का असर घटने से सर्जरी की नौबत ही नहीं आती।
क्यों होता है मोतियाबिंद?
बढ़ती उम्र के साथ—साथ आंखों में ये बीमारी आम बात है। विशेषज्ञों की मानें तो 50 साल की उम्र होेने पर शरीर में एंटीऑक्सीडेंट़्स की कमी होने के कारण आंखों में कैल्शियम जमा होने लगता है। जिसका सीधा असर आंखों के प्राकृतिक लेंस पर पड़ने लगता है। जिसके चलते यह प्राकृतिक लेंस डैमेज होने लगता है। इससे ही आंखों की पुतली पर सफेद दाग दिखाई देने के कारण सबकुछ धुंधला नजर आने लगता हैं। इसका खतरा उन लोगों को ज्यादा होता है जो स्मोकिंग करने के साथ—साथ अल्कोहल भी लेते हैं। सर्जरी के खतरे को कम करने के लिए अमेरिकी कंपनी ने यह इम्प्लांट लाई है।
भारत की स्थिति —
भारत में करीब 1.2 करोड़ लोग दृष्टिहीन हैं। जिसमें से 66.2% दृष्टिहीनता का कारण मोतियाबिंद है। हर साल आने वाले 20 लाख केस इसी के आते हैं। यूके में 64 साल की उम्र के हर तीन में से एक आदमी को मोतियाबिंद होता है। प्रतिवर्ष 3.50 लाख ऑपरेशन केवल मोतियाबिंद के ही किए जाते हैं।
दूसरे देशों में स्थिति
विश्व की बात करें तो दुनियाभर में 2 करोड़ लोग मोतियाबिंद की वजह से अपनी आखों की रोशनी खो चुके हैं। जिसमें 5 फीसदी अमेरिकी, 60 फीसदी अफ्रीकी हैं। अमेरिका की बात करें तो मोतियाबिंद के 68 फीसदी मामले 80 साल की उम्र में सामने आते हैं। महिलाओं में इसके मामले सबसे ज्यादा कॉमन हैं।