नई दिल्ली। 7 अक्टूबर से नवरात्र प्रारंभ Shardiya Navratri 2021 हो चुके हैं। श्रद्धालु विभिन्न तरीकों से मां को रिझाने में लगे हुए हैं। कई लोग इस दौरान दुर्गा सप्तशती का पाठ जरूर करते हैं। नवरात्रि के दिनों में दुर्गा सप्तशती (Durga Saptashati) का पाठ करने का भी विधान है। इसे बहुत ताकतवर और शुभ फल देने वाला माना जाता है। मान्यता है कि दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से किसी भी तरह के अनिष्ट का नाश होकर परिवार में सुख-समृद्धि आती है। पर क्या आपको पता है अगर इस व्रत को ठीक तरह से न किया जाए तो इसके आपको भारी परिणाम झेलने पड़ सकते हैं। आप भी जान लें दुर्गा सप्तशती पाठ करने के सही नियम क्या हैं।
राक्षस के वध के समय अधूरा न छोड़े पाठ
इस पाठ को करते समय इसे कभी भी अधूरा नहीं छोड़ा जाता है। पंडित राम गोविन्द शास्त्री के अनुसार आप जब भी पाठ करें उसका क्रम सही होना चाहिए। पाठ में माता जब किसी राक्षस का वध करती हैं उस समय उसे बीच में अधूरा न छोड़े। बल्कि उसकी समाप्ति के बाद ही पाठ का विराम दें। ऐसा न करने पर आपको पाठ के शुभ फल न मिलकर प्रतिकूल प्रभाव झेलना पड़ सकते हैं।
विधिवत हो पाठ की शुरुआत
पाठ प्रारंभ करने के पहले शिखा जरूर बांध लें। इसके बाद पूर्व दिशा में बैठ कर चार बार आचमन करके मां की रोली, कुमकुम, लाल फूल, अक्षत और जल आदि अर्पित करके पूजा का संकल्प लें। इसके बाद मां दुर्गा का ध्यान करके पंचोपचार विधि से पुस्तक की पूजा करके पाठ की शुरुआत करें। इसमें सर्वप्रथम अर्गला स्तोत्र, कीलक और कवच के पाठ करें। फिर पाठ की शुरुआत करें।
इन बातों को रखें ध्यान
ज्योतिषाचार्यों की मानें तो दुर्गा सप्तशती का पाठ करते समय शुरुआत में अर्गला स्तोत्र और कवच का पाठन उच्च स्वर में करें। जबकि समापन मंद स्वर में होना चाहिए। तो वहीं कीलक का पाठन हमेशा गुप्त रूप से किया जाना चाहिए। पाठ समाप्त होने पर एक कन्या का पूजन जरूर करें। इसके साथ ही जरूरतमंद को भी दक्षिणा भी दी जा सकती है। मां दुर्गा सप्तशती पूजन में श़ुद्धता का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए। पाठ और पूजन में हुई त्रुटियों के लिए क्षमा याचना जरूर करें।