नई दिल्ली। दुनिया के पांच बड़े रेल नेटवर्क में भारतीय रेलवे का नाम आता है। देश में लगभग हर जगह रेलवे की पहुंच है। हालांकि अभी भी कई ऐसे जगह हैं जहां रेलवे का विकास कार्य किया जाना बाकी है। आज रेलवे जहां भी है वहां तक पहुचने में इसे दशकों लगे हैं। साथ ही इसने कई बदलाव भी देखें हैं। इन्हीं बदलावों में से एक है कंप्यूटरकृत टिकट, जिसे आज ही के दिन साल 1986 में शुरू किया गया था।
दिल्ली से शुरू किया गया था
इस टिकट को सबसे पहले देश की राजधानी दिल्ली से शुरू किया गया था। लेकिन आज भी देश के कई हिस्सों में मैनुअल तरीके से टिकट काटे जाते हैं। हालांकि ये काम इतना आसान नहीं है। इसी को देखते हुए रेलवे ने 1986 में मैनुअल आरक्षण की जगह कंप्यूटर के जरिए आरक्षण करने का पायलेट प्रोजेक्ट को शुरू किया था और आज लगभग 90 प्रतिशत टिकट कंप्यूटर से काटे जाते हैं।
150 सालों तक मैनुअल टिकट काटे गए
मालूम हो कि कंप्यूटरकृत टिकट से पहले भारतीय रेलवे ने करीब 150 सालों तक मैनुअल टिकट काटे थे। इस कारण से ये बदलाव इतना आसान नहीं था। पहले लोगों को मैन्युल तरीके से आरक्षण करवाने के लिए पहले एक फॉर्म को भरना होता था। फॉर्म भरने के बाद उसे जमा करने के लिए लंबी लाइन लगती थी। लाइन इतनी लंबी होती थी की कभी-कभी दो से तीन दिन लग जाते थे आरक्षण करवाने में। यही कारण है कि पहले लोग अगर कहीं यात्रा करना चाहते थे तो उन्हें महीनों पहले से ही इसकी तैयारी करनी पड़ती थी।
क्रिस की स्थापना की गई
तब यात्रा से पहले ही हमें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता था। उस वक्त काउंटर पर टिकट बुकिंग कलर्क हुआ करता था। जो रिजिस्टर देखकर ट्रेन में सीट की उपलब्धता को जांचता था। आज जहां एक ही काउंटर से सभी जगहों के टिकट मिल जाते हैं। उस दौरान ऐसा नहीं होता था। तब अलग-अलग जगहों के लिए अलग-अलग काउंटर हुआ करते थे। इन्हीं सभी समस्याओं को देखते हुए भारत सरकार ने कंप्यूटर प्रणाली से टिकट काटने का फैसला किया। इसके लिए सरकार ने सभी कंप्यूटर संबंधी गतिविधियों के लिए एक अम्ब्रेला संगठन के रूप में रेलवे सूचना प्रणाली केन्द्र की स्थापना दिल्ली के चाणक्यपुरी में की। इसी प्रणाली को संक्षेप में क्रिस के नाम से जाना जाता है।
क्रिस क्या करता है
इसी प्रणाली के जरिए देश में टिकट को कंप्यूटरीकृत किया गया। जहां से आसानी से देखा जा सकता था कि किसी गाड़ी में कितने स्थान उपलब्ध है। जिसके लिए टिकट को जारी किया जा सकता है। साथ ही गाड़ी चलने से पहले चार्ट आदि भी क्रिस से ही तैयार होते हैं। यानी कुल मिलाकर कहें तो क्रिस की स्थापना के बाद से भारतीय रेलवे ने एक ऐतिहासिक बदलाव को देखा।